उत्तराखंड में कुदरत के गहरे संकेतों को समझिए सरकार
2013 में 16-17 जून की रात ग्लेशियर टूटने और बादल फटने की वजह से उत्तराखंड और केदारनाथ में प्रलंयकारी बाढ़ का खौफनाक मंज़र था। इस जल प्रलय में पानी के साथ पहाड़ों से बहकर आए बड़े-बड़े पत्थरों ने भारी तबाही मचाई थी।
साल 2013 में 16-17 जून की रात ग्लेशियर टूटने और बादल फटने की वजह से उत्तराखंड और केदारनाथ में प्रलंयकारी बाढ़ का खौफनाक मंज़र था। इस जल प्रलय में पानी के साथ पहाड़ों से बहकर आए बड़े-बड़े पत्थरों ने भारी तबाही मचाई थी। अचानक आए जल सैलाब में जहां हजारों जिंदगियां बह गयीं वहीं न जाने कितने लोग लापता हो गये। पता ही नहीं चला कि वो कहां गुम हो गए। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो केदारनाथ में आई आपदा में 3,183 लोगों का पता आज तक नहीं चल पाया है।
एक बार फिर उत्तराखंड के पहाड़ कुछ गहरे संकेत दे रहे हैं।इन संकेतों में बहुत कुछ छिपा हुआ है।हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि गढ़वाल रीजन के चमोली जिले के जोशीमठ में ज़मीन धंसने की खबरें मिली हैं।ऐसा क्यों हो रहा है। केदार घाटी के जल प्रलय की उस भयानक घटना को हम अभी तक नहीं भूल पाए हैं।
अचानक ज़मीन धंसने की घटना ने राज्य सरकार और प्रशासन की भी ज़मीन हिला दी है। ज़मीन धंसने की घटना से लोग बेहद खौफज़दा हैं।उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि आखिर कुदरत उनके साथ ऐसा मज़ाक क्यों कर रही है।सवाल ये है कि कहीं ये घटना पहाड़ों में अनियोजित विकास बनाम विनाश की ओर इशारा तो नहीं कर रही है?
उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर अनियोजित विकास का आरोप सरकारों पर लगता रहा है।जंगल काटे जा रहे हैं।टिंबर माफिया हावी है।उपजाऊ ज़मीन पर माफियाओं की मिलीभगत से कंकरीट के जंगल खड़े हो रहे हैं।नया भू-कानून सरकार लागू नहीं कर रही जिससे उपजाऊ ज़मीन कौड़ियों के दाम बिक रही है।उस ज़मीन पर आलीशान रिजॉर्ट खोले जा रहे हैं।लेकिन सरकार सिर्फ दावे करती है कि हालात संभल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से बहुत सारी परेशानियां हैं।जोशीमठ में ज़मीन धंसने की घटना का भूगर्भशास्त्री अध्ययन भी कर रहे हैं।
हम ये जानते हैं कि हिमालयी क्षेत्र में भूकंप का खतरा लगातार बना रहता है, क्योंकि उत्तराखंड का समूचा पहाड़ी और मैदानी इलाका सीस्मिक ज़ोन यानि भूकंपीय परिधि में है।भूकंप के छोटे-मोटे झटके पिछले दिनों लगातार महसूस होते रहे हैं।ऐसे में ज़मीन धंसने की ये घटना सरकारों को और लोगों को खबरदार कर रही है।जो लोग मुनाफे के लिए पेड़ों पर आरी चला रहे हैं वे संभल जाएं।
प्राकृतिक संपदा का बेज़ां दोहन ना करें।आज जोशीमठ में घबराए लोग घरों के अंदर जाने से डर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि किसी भी वक्त हादसा हो सकता है।उनका घर भी ज़मीदोज हो सकता है।ये लोग खुले आसमान के नीचे हैं।उत्तराखंड की पुष्कर धामी सरकार के सामने चुनौती है कि वो घबराए हुए लोगों के अंदर भरोसा पैदा करे और ये पता लगाने की कोशिश करे कि पहाड़ों में ज़मीन धंसने की घटनाएं क्यों हो रही हैं।इस मामले में एक्सपर्ट्स की मदद लेकर आगे बढ़ा जा सकता है।
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