आखिर क्यों NATO की सदस्यता के नाम पर यूक्रेन को 14 वर्षों से झांसा दे रहा है अमेरिका, जानिए
नाटो की सदस्यता पर एक बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने कहा था कि यूक्रेन एक रियल नेशन स्टेट नहीं है। इसलिए उसको नाटो में शामिल नहीं कर सकते।
रूस और यूक्रेन की लड़ाई के कुछ सबसे बड़े कारणों में से एक उसका नाटो की तरफ ज्यादा झुकाव भी है। इस झुकाव की बजह न तो एक दिन है न ही इसका सदस्य बनने को लेकर यूक्रेन कुछ दिनों या महीनों से कोशिश कर रहा था। आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि यूक्रेन की ये कोशिश अप्रेल 2008 से शुरू हुई थी। अब उसके इस सपने को चौदह वर्ष बीत चुके हैं। फिर भी आज वह इससे दूर है। दरअसल, यूक्रेनी राष्ट्रपति इस जंग के बाद तीन बार नाटो को लेकर बड़ा बयान दे चुके हैं।
यूक्रेन को लेकर पूर्व राष्ट्रपति बुश ने क्या कहा था ?
नाटो की सदस्यता पर एक बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने कहा था कि यूक्रेन एक रियल नेशन स्टेट नहीं है। इसलिए उसको नाटो में शामिल नहीं कर सकते। इसके वाबजूद भी यूक्रेन की नाटो से जुड़ने की महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई। बुश के अलावा अमेरिका के एक अन्य राष्ट्रपतियों ने कभी भी यूक्रेन को नाटो की सदस्यता देने या न देने पर इतना स्पष्ट नहीं कहा था। इतना ही नहीं वल्कि इस जंग से पहले तक अमेरिका लगातार ये बात कहता रहा था कि नाटो यूक्रेन की हर संभव रक्षा करेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी हुआ नहीं।
राष्ट्रपति जेलेंस्की का नाटो को लेकर बयान
एक बयान में राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा था कि नाटो के ग्रीन सिग्नल के बाद ही रूस ने यूक्रेन के शहरों को निशाना बनाया था। इसके बाद राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बन सकता है, क्योंकि जब वो राष्ट्रपति बने थे तभी उन्होंने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इसकी मुख्य वजह थी अमेरिका और नाटो का व्यवहार। इस सब के बाद उन्होंने कहा कि नाटो को साफतौर पर ये बताना चाहिए कि वो यूक्रेन को सदस्यता देगा कि नहीं। उन्होंने यह भी कहा था कि वो यूक्रेन को इसलिए भी सदस्यता देने से बच रहा है, क्योंकि नाटो रूस से डरता है।
रूस हमेशा नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है
नाटो की सदस्यता की बात करें तो आज इसके सदस्यों की संख्या 30 तक पहुंच चुकी है। वर्ष 2000 के बाद भी नाटो ने अपने विस्तार की प्रक्रिया को लगातार जारी रखे हुए है। वहीं, यदि रूस की बात करें तो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हमेशा से ही नाटो की विस्तारवादी नीतियों के विरोधी करते आ रहे हैं। यूक्रेन रूस की सीमा से लगा हुआ है इसलिए वह नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने और नाटो की फौज और उसके घातक हथियार उसकी सीमा पर तैनात कर दिए जाएं। इसी वजह से रूस किसी भी सूरत से अपने पड़ोसी देशों में ऐसा नहीं होने देना चाहता है। आपको बता दें कि रूस और अमेरिका के बीच आज भी शीतयुद्ध जैसे हालात ही हैं, क्योंकि इन दोनों में ही खुद को विश्व के महाशक्ति के रूप में बनाए रखने की लालसा है।
क्या है बुडापेस्ट ज्ञापन ?
यहां पर बुडापेस्ट ज्ञापन की बात इसलिए बतानी जरूरी है, क्योंकि सोवियत संघ के विघटन के बाद दिसंबर 1991 में यूक्रेन एक आजाद देश के रूप में अलग हो गया था। इसके बाद दिसंबर 1994 में एक बुडापेस्ट ज्ञापन साइन किया गया था। जिस पर रूस, अमेरिका, यूक्रेन ने साइन किए थे। जिसके तहत यूक्रेन ने अपने यहां के सभी परमाणु हथियारों को रूस को वापस कर दिए थे। रूस ने यूक्रेन में मौजूद सभी परमाणु ठिकानों को भी बंद कर दिया था। इस मेमोरेंडम पर साइन करने वाले सभी देशों ने यूक्रेन को उसकी रक्षा का भी भरोसा दिलाया था।