संकट में पाकिस्तान
श्रीलंका की तरह पाकिस्तान भी गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। पाकिस्तान में महंगाई दर पिछले एक दशक के उच्चतम स्तर पर है। देश में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें और बिजली के भाव भी आसमान छू रहे हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक स्थिति में है। जनता का शासन-व्यवस्था के प्रति विश्वास घट रहा है।
श्रीलंका की तरह पाकिस्तान भी गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। पाकिस्तान में महंगाई दर पिछले एक दशक के उच्चतम स्तर पर है। देश में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें और बिजली के भाव भी आसमान छू रहे हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक स्थिति में है। जनता का शासन-व्यवस्था के प्रति विश्वास घट रहा है। अर्थव्यवस्था उस स्थिति में पहुंच गई है जहां रिकवरी मुश्किल ही नहीं, असंभव लगती है। देश ने दिशा खो दी है। एक समग्र राष्ट्र के लिए दो चीजें अत्यावश्यक होती हैं-सुचारू रूप से चलने वाला आर्थिक तंत्र और राजनीतिक स्थिरता। ये दोनों पहलू एक-दूसरे के पूरक हैं। शासन-प्रशासन राजनीतिक ध्रुवीकरण का शिकार है। गलत प्राथमिकताओं पर एकाग्रता के कारण गवर्नेंस के लिए मूलभूत नीतियों की अवहेलना की प्रवृत्ति ने पाकिस्तान को भयावह संकट के सामने ला खड़ा किया है। राजनीतिक और आर्थिक विफलताओं के कारण देश अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और बड़े देशों से कर्ज पर जीने के लिए मजबूर हो गया है। ये अब बार-बार इस्लामाबाद से कर्ज को चुकता करने के लिए कह रहे हैं। इनमें वे देश भी शामिल हैं, जिन्हें पाकिस्तान अपना मित्र कहता है।
संक्षेप में, पाकिस्तानियों के लिए यह जानकारी हासिल करना बड़ी पहेली है कि कोई चीज किस हद तक उनकी अपनी है या सब गिरवी रखी हुई है। पाकिस्तान कर्ज में डूबा हुआ है। उसकी राहत का उपाय एक ही है, ज्यादा से ज्यादा कर्ज लेना। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से एक अन्य समझौता करने पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। आईएमएफ ने दो अरब डॉलर की मंजूरी के लिए कागजात तैयार कर लिए हैं, जिन पर पाकिस्तान को भरे हुए और निर्दिष्ट स्थानों पर दस्तखत करने हैं। आईएमएफ ने कर्ज के लिए कड़ी शर्तें रखी हैं। वह पाकिस्तान को सुस्पष्ट रूप से निर्देशित कर रहा है कि वह कर्ज में मिले एक-एक पैसे को कैसे खर्च करे। पाकिस्तान को अपना बजट आईएमएफ के अनुकूल बनाना होगा।
यानी आईएमएफ के निर्देशानुसार करों को बढ़ाना, ईंधन कीमतों में वृद्धि करना और लगभग दैनिक आधार पर अपने फाइनेंस के मॉनिटरिंग की अनुमति देना आदि। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए वित्तीय बंधक बनने के करीब ही है। अन्य आर्थिक मुद्दे भी हैं, जिन्हें संबोधित करने की जरूरत है। उसने चीन, सऊदी अरब और यूएई से जो भारी मात्रा में कर्ज लिया है, उसे चुकाने का कोई भी खाका तैयार नहीं है। इन देशों और आईएमएफ से लिए कर्ज को चुकाने की क्षमता पाकिस्तान की नहीं है। वह सतत राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद से बुरी तरह घिरा हुआ है। साथ ही इन समस्याओं से प्रभावशाली तरीके से निपटने में अक्षम है। सरकार को पता ही नहीं है कि धीरे-धीरे बिगड़ते इस हालात का मुकाबला कैसे करना है। इस परिदृश्य को पिछले वर्ष अक्टूबर में चित्रित किया गया था और आज की स्थिति में एक यूएस डॉलर पाकिस्तानी दो सौ रुपये से ज्यादा का है, पेट्रोल प्रति लीटर ढाई सौ रुपये बिक रहा है और महंगाई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुसार 21.32 फीसदी हो गई, जो हाल के वर्ष में सबसे ज्यादा है। मुद्रास्फीति इतनी ऊंचाई पर है कि आम पाकिस्तानी दयनीयता और कष्टों के बोझ तले दबा है।