वहां सुनक और यहां सियासी विरोध की सनक

भारतीय मूल के ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनते ही भारत में जिस तरह राजनीतिक घमासान शुरू होने के आसार बन रहे थे उसकी हवा देखते ही देखते निकल गई।

Janbhawana Times
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भारतीय मूल के ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनते ही भारत में जिस तरह राजनीतिक घमासान शुरू होने के आसार बन रहे थे उसकी हवा देखते ही देखते निकल गई। लगभग आधा दर्जन राजनेताओं के बयानों पर आम धारणा यह रही कि यह खालिस राजनीतिक विरोध की सनक है। किसी ने कहा यह तुष्टिकरण की राजनीति का एक और नमूना है और किसी की राय रही, लोकतांत्रिक तरीके और परंपराओं की अनदेखी कर समुदाय विशेष को महत्व देने की वकालत की जा रही है। बड़ा झटका कांग्रेस के पी. चिदम्बरम और शशि थरूर को लगा है। उन्हीं की पार्टी ने उनके बयानों से पल्ला झाड़ लिया। इन दोनों की ताजा बयानबाजी से एक बात जरूर साफ हुई कि कांग्रेस में ऐसे नेताओं की फौज बढ़ रही जिन्हें नहीं मालूम होता है कि किसी संवेदनशील और गंभीर विषय पर कब, कहां, कितना बोलना चाहिए। विषय विशेष पर वो पार्टी के स्टैंड से भी अनभिज्ञ रहते हैं। नि:संदेह सुनक का प्रधानमंत्री बनना भारतीयों के लिए गर्व की बात है। यह एक सकारात्मक संकेत है। 

हैरानी चिदम्बरम और थरूर बयानों को लेकर हुई। उन्होंने कहा, ‘भारत को ब्रिटेन से सबक लेना चाहिए। दोनों ने उम्मीद जताई कि एक दिन भारत में भी किसी अल्पसंख्यक को यह पद मिल सकता है।‘ तय माने, दोनों ही अपने ज्ञान और दृष्टिकोण पर फूले नहीं समा रहे होंगे। मान बैठे हों कि इस तीरंदाजी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा दोनों ही चकरा जाएंगे। कांग्रेस में उनके हाथों को चूमने के लिए होड़ लग जाएगी। लेकिन, पांसा उल्टा पड़ गया। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने एक प्रेस कांफें्रस में कहा कि ‘भारत में विविधता का वर्षों तक सम्मान होता रहा है। डा.जाकिर हुसैन, फखरूद्दीन अली अहमद और डा.एपीजे कलाम भारत में राष्ट्रपति रहे। इनके अलावा बरकतुल्लाा खान और एआर अंतुले यहां मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जिसे जनादेश मिलेगा वह प्रधानमंत्री बनेगा।

 लोकतांत्रिक तरीके से यदि कोई निर्वाचित होता है तो हमें क्या आपत्ति होगी?’ कोई और समय होता तो शायद कांग्रेस चिदम्बरम और थरूर के बयानों को उनके निजी विचार करार देकर अपना चेहरा बचाने की कोशिश कर लेती। इस समय यह संभव नहीं था। चुप रह जाने से थरूर और चिदम्बरम के विचारों पर कांग्रेस की सहमति की मुहर लग जाती। सीधा असर कांग्रेस की बची-खुची राजनीतिक संभावनाओं पर पड़ता। एक संदेश यह जा सकता था कि अल्पसंख्यकों के साथ अतीत में हुए कथित भेदभाव के लिए कांग्रेस भी जिम्मेदार रही है। उधर, भाजपा के आक्रामक तेवर कांग्रेस की परेशानी और अधिक बढ़ाने वाले होते। भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने थरूर और चिदम्बरम की प्रतिक्रियाओं को ‘एक नया झमेला’ निरूपित कर दिया था। कुछ लोगों ने सवाल उठाये कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में किसी अल्पसंख्यक को प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया? सोशल मीडिया पर यह सवाल देखने में आया कि किसी अल्पसंख्यक को कांग्रेस का नेतृत्व सौंपने की पहल पिछले सात दशकों में क्यों नहीं की गई। बहरहाल, जयराम रमेश के बयान के बाद चिदम्बरम और थरूर दोनों की बोलती बंद है।

सुनक मामले में कुछ और विपक्षी नेताओं के बयान आए हैं। तृणमूल की सांसद महुआ मोइत्रा ने भाजपा पर बहुसंख्यकवाद की राजनीति का आरोप लगाते हुए भारत में भी अल्पसंख्यकों को ब्रिटेन जैसा अवसर दिए जाने की जरूरत बताई। महुआ मोइत्रा के बयान से एक बात साफ है कि उन्हें ब्रिटेन और भारत के सियासी हालातों की बहुत जानकारी नहीं है। संभव है कि थरूर और चिदम्बरम की प्रतिक्रियाओं को देख कुछ बोलने की लालसा उनमें भी जोर मार दी हो। बहती गंगा में डुबुकी लगाने का मौका नहीं गंवाने के इरादे से महुआ ने चिदम्बरम और थरूर का डायलॉग दोहरा दिया। मुखर राजनेता मानी जाती रहीं महुआ से सवाल की अवश्य बनती है। उन्हें जवाब देना चाहिए कि वह पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार का नेतृत्व किसी अल्पसंख्यक को सौंपे जाने मांग अपनी नेता ममता बनर्जी से क्यों नहीं करतीं? 

क्या अल्पसंख्यकों को ब्रिटेन जैसा अवसर पश्चिम बंगाल में देकर तृणमूल कांग्रेस देश-दुनिया के सामने एक उदाहरण नहीं पेश कर देगी? मुंह तो पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और एआईएमआईएम के प्रमुख अससुद्दीन ओवैसी ने भी खोला लेकिन उनकी बातें बेसिर-पैर की, संकीर्णता से ओतप्रोत महसूस हुईं। दोनों के बयानों में तर्क कम और राजनीतिक क्षुद्रता ज्यादा थी। महबूबा मुफ्ती ने नस्लीय अल्पसंख्यक के ब्रिटेन में प्रधानमंत्री चुने जाने की तारीफ करते हुए कहा कि ‘भारत में हम अभी तक सीएए और एनआरसी जैसे भेदभाव वाले कानूनों में फंसे हुए हैं। महबूबा की प्रतिक्रिया में राजनीतिक धूर्तता सड़ांध साफ महसूस की जा सकती है। पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने महबूबा पर कटाक्ष किया, काश वह जम्मू-कश्मीर में किसी अल्पसंख्यक को मुख्यमंत्री स्वीकार कर पातीं। ओवैसी एक कदम और आगे निकल गए। ओवैसी ने कहा एक दिन इस देश का प्रधानमंत्री हिजाबधारी महिला बनेगी। जिस राजनीतिक दल के प्रमुख पदों पर एक भी महिला नहीं है उसका प्रमुख देश में हिजाबधारी महिला के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी कर रहा है। 

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06 November 2022, 08:14 PM IST

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