रूसी तेल खरीदने से एक साल में भारत को कितनी हुई बचत? जानिए हैरान कर देने वाले आंकड़े
भारत द्वारा रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने के फायदे को लेकर बड़ी-बड़ी बातें होती रहीं थीं, पर ये हकीकत नहीं है. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था CLSA की नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को रूसी तेल से सालाना सिर्फ करीब 2.5 बिलियन डॉलर का फायदा हो रहा है.

India Russia Oil Trade: भारत द्वारा रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने के फायदे को लेकर लंबे समय से बड़ी-बड़ी बातें कही जा रही थीं, लेकिन हकीकत कुछ और है. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था CLSA की नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को रूसी तेल से सालाना सिर्फ करीब 2.5 बिलियन डॉलर (लगभग 21,900 करोड़ रुपए) का फायदा हो रहा है. जबकि अब तक मीडिया और विश्लेषकों की रिपोर्ट्स में यह लाभ 10 से 25 बिलियन डॉलर तक बताया जाता रहा है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक
रिपोर्ट का कहना है कि यह लाभ भारत की GDP का महज 0.6 प्रतिशत है, यानी वास्तविक असर बहुत सीमित है. गौरतलब है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है और यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से उसने रूस से तेल की खरीद में भारी इजाफा किया है.
युद्ध से पहले जहां रूस से भारत का तेल आयात मात्र 1 फीसदी था. वहीं, अब यह हिस्सा बढ़कर लगभग 40 फीसदी हो गया है. फिलहाल भारत की कुल 5.4 मिलियन बैरल प्रतिदिन की जरूरत का करीब 36 फीसदी तेल रूस से आता है. इसके अलावा, इराक से 20%, सऊदी अरब से 14%, UAE से 9% और अमेरिका से 4% तेल आयात होता है.
CLSA की रिपोर्ट के अनुसार, शुरू में भारत को रूसी तेल पर अच्छी छूट मिली थी. वित्त वर्ष 2024 में रिफाइनर्स को औसतन 8.5 डॉलर प्रति बैरल की बचत हो रही थी. लेकिन वित्त वर्ष 2025 में यह घटकर 3 से 5 डॉलर और हाल के महीनों में तो सिर्फ 1.5 डॉलर प्रति बैरल रह गई. शिपिंग, इंश्योरेंस और रीइंश्योरेंस जैसी लागतों के चलते वास्तविक मुनाफा और कम हो जाता है.
बचत का दायरा काफी छोटा
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रूसी तेल की गुणवत्ता अपेक्षाकृत कमजोर है और इसे बेहतर ग्रेड वाले तेल के साथ मिलाकर इस्तेमाल करना पड़ता है. इस वजह से लागत और बढ़ जाती है. सरकारी आंकड़े भी यही संकेत देते हैं कि शुरुआती दौर में जितनी बड़ी बचत हो रही थी, अब उसका दायरा काफी छोटा हो गया है.
भारत ने कई बार स्पष्ट किया है कि रूस से तेल खरीदना किसी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं है और यह पूरी तरह उसकी ऊर्जा सुरक्षा की जरूरतों पर आधारित फैसला है. वहीं, पश्चिमी देशों ने इस पर आलोचना भी की है और आरोप लगाया है कि भारत सस्ता रूसी तेल लेकर उसे परिष्कृत कर अन्य देशों, खासकर यूरोप, को बेचकर लाभ कमा रहा है.
CLSA ने दी चेतावनी
CLSA ने चेतावनी दी है कि अगर भारत अचानक रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 90 से 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है, जिससे वैश्विक महंगाई और बढ़ जाएगी. रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि अब रूसी तेल का मुद्दा आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक हो गया है और भारत ने दोहराया है कि वह अपने व्यापारिक फैसले स्वतंत्र रूप से लेगा.


