विश्व पटल पर उभरता भारत

प्रत्येक हिंदुस्तानी के लिए यह गर्व की बात है कि विभिन्न क्षेत्रों में हमारा देश आज विश्व पटल पर उभरते हुए अलग पहचान बना रहा है। बात कोरोना काल के दौरान सहयोग की रही हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के समय की रही हो या फिर सैन्य शक्ित की ही हो भारत आज सभी के बीच मजबूती के साथ खड़ा है।

Janbhawana Times
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प्रत्येक हिंदुस्तानी के लिए यह गर्व की बात है कि विभिन्न क्षेत्रों में हमारा देश आज विश्व पटल पर उभरते हुए अलग पहचान बना रहा है। बात कोरोना काल के दौरान सहयोग की रही हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के समय की रही हो या फिर सैन्य शक्ित की ही हो भारत आज सभी के बीच मजबूती के साथ खड़ा है। भारत की पहचान विश्व गुरु की रही है, जिसे वह फिर से हासिल करने में एक-एक कदम आगे बढ़ रहा है।

बात यदि हम कोरोना काल की करें तो कोरोना काल में भारत अलग छाप छोड़ने में सफल रहा है।  बड़ी आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत ने बेहतर कोविड प्रबंधन के रूप में एक मिसाल कायम की।  हालांकि आर्थिक मोर्चे पर इस प्रबंधन की कुछ तात्कालिक कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन अब उसमें तेजी से सुधार हो रहा है। भारत न केवल एक बड़ी हद तक खुद सुरक्षित रहा, बल्कि उसने पड़ोसियों का ध्यान रखने के लिए पार्श्व में पड़े दक्षेस जैसे संगठन को पुन: सक्रिय करने का प्रयास किया। कोरोना संकट की शुरुआत से पहले मास्क, पीपीई किट और अन्य वस्तुओं के उत्पादन एवं उपलब्धता में भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इसी संकट के दौरान भारत ने इन वस्तुओं के उत्पादन में महारत हासिल कर दुनिया को अपनी क्षमताओं से अवगत कराया। इस वैश्विक संकट के दौरान भारत स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों के अग्रणी आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा। आज पूरी दुनिया में भारत की वैक्सीन कूटनीति की धूम मची हुई है, जबकि चीन के ऐसे ही प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाये। अफ्रीका के गुमनाम देशों से लेकर कैरेबियाई देश सेंट लूसिया तक भारत की वैक्सीन पहुंची है। टीके की आपूर्ति में पड़ोसी देशों का प्राथमिकता के आधार पर ध्यान रखा गया। कोरोना संकट काल में वैश्विक परिदृश्य पर भारत के ऐसे उभार का श्रेय नि:संदेह देश के राजनीतिक नेतृत्व को जाता है। उसने दर्शाया कि भारत के पास भले ही संसाधनों की कमी हो, लेकिन इच्छाशक्ति की नहीं। कोरोना संकट ने कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की भी कलई खोलकर रख दी। इनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी का नाम सबसे ऊपर रहा। पूरी दुनिया में कोहराम मचा देने वाली इस आपदा के ख़िलाफ़ यह संस्था एक प्रस्ताव तक पारित नहीं कर सकी। डब्ल्यूएचओ तो इस दौरान दिशाहीन सा रहा। अन्य वैश्विक संस्थाएं भी अपना अर्थ खोती दिखीं। कोरोना के बाद वाली दुनिया में इन संस्थाओं को अपना रवैया बदलना पड़ेगा, अन्यथा वे और अप्रासंगिक होती जाएंगी। इसे ही ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने संबोधन में इन संस्थाओं में सुधार के लिए ज़ोरदार पैरवी की थी। उनकी दलीलों को कई वैश्विक नेताओं का समर्थन मिला।

चीन को आशंका सता रही थी कि यदि उसने भारत के साथ तनातनी बढ़ाई तो दुनिया उसके पक्ष में लामबंद हो सकती है। इसी कारण पाकिस्तान भी संघर्ष विराम की पेशकश करता दिखा। भविष्य में भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-सामरिक मोर्चों पर भारत का वर्चस्व बढ़ेगा। वैश्विक गवर्नेंस ढांचे में भी उसकी भूमिका बढ़ेगी। वास्तव में यह भारतीय विदेश नीति और वैश्विक ढांचे के लिए एक निर्णायक पड़ाव है। भारतीय नेतृत्व को इस स्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहिए। सैन्य शक्ित में वर्तमान विश्व रैंकिंग में, चीनी सेना शक्ति सूचकांक में तीसरे स्थान पर है। चीन के पास 2 मिलियन सक्रिय कर्मियों की ताकत और 250 मिलियन डॉलर का रक्षा बजट है। इसके विपरीत, भारत 14 लाख सक्रिय कर्मियों की ताकत और 49.6 अरब डॉलर के रक्षा बजट के साथ चौथे स्थान पर है। भारत इस सूची में चौथे स्थान पर है।

भारत की विदेश नीति पिछले 67 वर्षों से बैकफुट पर थी। वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विदेश नीति में परिवर्तन हुआ है। 2014 के बाद विदेशों में भारत की छवि सुधरी है। पिछले कई वर्षों में गलत विदेश नीति के कारण भारत से भी आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़े राष्ट्र मजबूत हो गए पर भारत पिछड़ता चला गया। जबकि आज भारत एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। हालिया परिदृश्य पर जाएं तो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन के अशांत जिनजियांग के हालात से जुड़े मसौदे के प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत दूर रहा है। उइगर मुसलमानों के साथ व्यवहार मामले में चीन के खिलाफ ये प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि, चीन के साथ सीमा पर तनाव के बावजूद भी भारत ने उसका साथ दिया है। भारत चीन के खिलाफ प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा। मानवाधिकार समूह चीन के उत्तर-पश्चिमी चीनी प्रांत में मानवाधिकार हनन की घटनाओं को लेकर सालों से आवाज उठाते रहे हैं। चीन पर आरोप लगाया गया है कि 10 लाख से ज्यादा घरों को उनकी इच्छा के खिलाफ हिरासत में रखा गया है। भारत और 10 अन्य देशों ने मतदान से दूरी बनाई जिसके कारण चीन के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव खारिज हो गये। आज भारत अपने फैसले स्वयं लेने के लिए स्वतंत्र है।

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08 October 2022, 06:49 PM IST

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