मुश्किल में तेजस्वी यादव
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव मुश्किल में घिरते नजर आ रहे हैं। दरअसल, आईआरसीटीसी घोटाला मामले में सीबीआई ने तेजस्वी यादव की जमानत रद्द कराने के लिए 17 सितंबर को अदालत का रुख किया था।
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव मुश्किल में घिरते नजर आ रहे हैं। दरअसल, आईआरसीटीसी घोटाला मामले में सीबीआई ने तेजस्वी यादव की जमानत रद्द कराने के लिए 17 सितंबर को अदालत का रुख किया था। दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने सीबीआई की अपील पर तेजस्वी यादव को नोटिस जारी कर 28 सितंबर तक उनका जवाब मांगा है। सीबीआई का कहना है कि तेजस्वी यादव जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि यह केस 2006 का है, जब लालू यादव यूपीए-1 सरकार में रेल मंत्री थे। इस मामले में एक निजी कंपनी को आईआरसीटीसी के पुरी और रांची स्थित दो होटलों का कॉन्ट्रैक्ट देने में अनियमितताओं की बात सामने आई थी। हालांकि कोर्ट ने इस मामले में अक्टूबर 2018 में तेजस्वी यादव और उनकी मां राबड़ी देवी को जमानत दे दी थी। दरअसल, गत दिनों तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान राजद के विधायक के घर एनआईए के छापे के बाद आक्रोशित होकर जांच एजेंसियों के अधिकारियों को धमकाते हुए नजर आए थे कि जांच एजेंसियों के परिवार नहीं हैं क्या? वे नौकरी से रिटायर नहीं होंगे क्या? कहने का आशय यह है कि जमानत पर रिहा व्यक्ति को कोर्ट की तरफ से शर्त रखी जाती है कि आपके खिलाफ जो जांच चल रही है, उसमें सहयोग करेंगे। लेकिन डिप्टी सीएम की कुर्सी मिलते ही तेजस्वी यादव की भाषा-शैली बदल गई और वे कथित रूप से अधिकारियों को धमकाने के तेवर में नजर आने लगे। हैरानी की बात है कि तेजस्वी यादव ने केंद्रीय राज्यमंत्री नित्यानंद राय को भी धमकाने की कथित रूप से कोशिश की थी। हालांकि तेजस्वी ने उनका नाम नहीं लिया था लेकिन उन्होंने कहा था कि यह बिहार है, महाराष्ट्र नहीं। यहां सब कुछ का हिसाब लिया जाता है। तेजस्वी की इस तरह की कार्यशैली और व्यवहार सामने आने के बाद सीबीआई को यह आभास हो गया कि तेजस्वी अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं। इसलिए, उनकी बेल रद्द करवाने के लिए सीबीआई ने अदालत का रुख किया है। अब इस प्रकरण में बिहार राजद के नेताओं ने राजनीतिक हमले शुरू कर दिए हैं।
राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि इतने दिनों तक सीबीआई कहां सोई हुई थी। अब अचानक उनकी नींद खुल गई है। वह भी तब जब नीतीश कुमार भाजपा गठबंधन से अलग होकर राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हुए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि सीबीआई ने मामले को चार साल तक लटका कर रखा? केस और पहले दर्ज हुआ था। शिवानंद ने यह भी सवाल उठाया कि देश की सबसे काबिल, सक्षम और कुशल जांच एजेंसी सीबीआई को ऐसे मामलों की जांच में कितना समय लगना चाहिए। वहीं, राजद के एक अन्य नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि विरोधियों को सबक सिखाने के लिए किसी भी तरह का षड्यंत्र रच सकते हैं। सिद्दीकी का कहना है कि सीबीआई लगातार राजद के बड़े नेताओं और साथ ही उनके निकट के लोगों पर दबिश बना रही है।
यह कितनी हास्यास्पद बात है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जब जांच एजेंसियां कार्रवाई करती है तो विपक्षी दल के नेता बौखला जाते हैं। वे अपना अपराध छुपाने के लिए उल्टा तर्क-वितर्क का सहारा लेकर बातों को जनता के सामने तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं। सीबीआई के पास केवल सौ-दो सौ केस नहीं होते हैं। हजारों केसों के निपटारे में समय तो लगेगा। अब तो देखा जा रहा है कि मामले में त्वरित सुनवाई भी हो रही है। हमें किसी जांच एजेंसी की व्याख्या करने के पहले उसकी तह में जाना चाहिए। क्योकि, इससे उसकी कार्यशैली किसी से छिपी नहीं रहती है। हमें देखना होगा कि उनके ऊपर भी काम का दबाव होता है जिसके कारण सुनवाई में देरी होती है। लेकिन अपने नेताओं के बचाव में एजेंसियों पर सवाल उठाना युक्ति संगत नहीं लगता है।