बाटला हाउस में बुलडोजर से डरकर 40 लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, CJI ने दिया बड़ा निर्देश
याचिकाकर्ता का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को आदेश दिया था कि ध्वस्तीकरण से कम से कम 15 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य है, लेकिन उनके घर पर यह नोटिस केवल 26 मई को चिपकाया गया जिसमें कहा गया कि घर खाली किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट अगले सप्ताह दिल्ली के जामिया नगर स्थित बाटला हाउस में अवैध संपत्तियों को ध्वस्त करने के प्रस्ताव के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगा. गुरुवार, 29 मई 2025 को याचिकाकर्ताओं ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग करते हुए अपील दायर की थी. उनका दावा है कि उन्हें बिना उचित सुनवाई के अपने घर खाली करने का नोटिस दिया गया है, इसलिए मामले को जल्द से जल्द सुना जाना चाहिए.
दिल्ली हाईकोर्ट का रुख
मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई और न्यायाधीश ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रारंभिक सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील को निर्देश दिया कि वे नगर निगम द्वारा जारी किए गए ध्वस्तीकरण नोटिस के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख करें.
वकील ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के तहत ध्वस्तीकरण से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है, लेकिन नगर निगम ने केवल 26 मई को एक नोटिस उनके घर पर चिपकाया है, जिसमें सीधे संपत्तियां खाली करने को कहा गया है. उन्होंने कहा कि इस मामले में किसी भी तरह की सुनवाई नहीं हुई और यदि सुनवाई होती तो उन्हें कुछ राहत मिल सकती थी.
40 याचिकाकर्ताओं का दावा
पीठ ने याचिका को अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई. रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 40 याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि वे बाटला हाउस के खसरा नंबर 271 और 279 की वास्तविक मालिक हैं. उनका कहना है कि दोनों बिल्डिंग को बिना उचित कारण मनमाने तरीके से ध्वस्त करने का निर्णय लिया गया है. उन्होंने बताया कि यह मामला पहले निजी विवाद था, जिसे बाद में अवमानना के तहत बदलकर ध्वस्तीकरण का आदेश दे दिया गया.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार किसी इमारत को गिराने से पहले 15 दिन का नोटिस देना जरूरी होता है, लेकिन प्रशासन ने केवल नोटिस चिपकाकर उन्हें बिना सुनवाई के खाली करने को कहा है.
कई घरों को नोटिस जारी
हाल ही में, दिल्ली के ओखला के जामिया नगर इलाके में कई घरों को नोटिस जारी कर ध्वस्त करने का आदेश दिया गया है. नोटिस में कहा गया है कि ये संपत्तियां उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की जमीन पर अवैध अतिक्रमण हैं और 15 दिनों के अंदर हटाई जाएंगी. यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के 8 मई के निर्देश के बाद की गई है, जिसमें दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को अनधिकृत संरचनाओं को हटाने का आदेश दिया गया था.


