जलवायु परिवर्तन या कुछ और... भारत में इस साल क्यों जल्दी आया मानसून?
2025 में भारत में मानसून का आगमन समय से पहले हुआ, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाता है. समुद्र की सतह का तापमान बढ़ने और वायुमंडलीय नमी में वृद्धि ने मानसून की शुरुआत को तेज किया.

भारत में मानसून का आगमन इस साल समय से पहले हो गया है. इस बार केरल, तमिलनाडु, कर्नाटका और महाराष्ट्र में मानसून ने एक से दो हफ्ते पहले दस्तक दी. सोमवार को मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में मानसून का असर देखा गया. ये संकेत करता है कि अब हम मौसम के पैटर्न में बदलाव देख रहे हैं और जलवायु परिवर्तन इसके पीछे एक बड़ा कारण हो सकता है.
मानसून का इतना जल्दी और एक साथ इतने बड़े इलाकों में फैलाव एक दुर्लभ घटना है. हालांकि, ये भारत के मौसमी इतिहास में पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले 1971 में भी ऐसा हुआ था, जब मानसून ने एक ही दिन में कर्नाटका और महाराष्ट्र के बड़े हिस्से में दस्तक दी थी. ऐसे बदलावों को समझने के लिए और उनके प्रभावों को समझने के लिए, हमें जलवायु परिवर्तन की बढ़ती भूमिका पर ध्यान देना होगा.
मानसून का ऐतिहासिक आगमन
इस साल मानसून का आगमन पहले से एक ऐतिहासिक घटना बन चुका है. सामान्यतः ये जून के पहले हफ्ते में केरल पहुंचता है, लेकिन इस बार 24 मई को ही इसका आगमन हो गया. ये 2009 में हुई घटना के बाद सबसे पहले हुआ है, जब मानसून ने 23 मई को केरल में दस्तक दी थी.
वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र की सतह का तापमान बढ़ गया है, जिससे मानसून की शुरुआत में तेजी आई है. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के मुताबिक, ग्लोबल वॉर्मिंग का मानसून पर प्रभाव सीमित हो सकता है, लेकिन वैश्विक पैटर्न इस बात को संकेत देते हैं कि ये जलवायु परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है.
हिमालय और यूरेशियन बर्फ की कमी
ग्लोबल वॉर्मिंग ने यूरेशियन और हिमालय क्षेत्र में बर्फ के कवर को घटा दिया है. जनवरी से मार्च 2025 तक, बर्फ की मात्रा 1990-2020 के औसत से 15% कम थी. बर्फ की कमी का असर अल्बेडो (परावर्तकता) पर पड़ता है, जिससे भूमि की सतह का तापमान बढ़ता है और मानसून की हवा तेज होती है.
वायुमंडलीय नमी का बढ़ना
एक डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ वायुमंडलीय नमी में 6-8% की बढ़ोतरी होती है. 2025 में वैश्विक तापमान पहले से 1.2°C ज्यादा होने के कारण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में मई में उच्च नमी स्तर देखा गया. इससे मानसून की बादल बनाने की प्रक्रिया में तेजी आई. कर्नाटका-गोवा तट के पास हाल में आए दबाव ने इस असर को और बढ़ा दिया.
सोमाली जेट और क्रॉस-इक्वेटोरियल फ्लो
सोमाली जेट, जो मॉरीशस और मेडागास्कर के पास से उठता है, मई 2025 में ज्यादा सक्रिय था. ये जेट नमी से लदी हवा को अरब सागर से भारत के पश्चिमी तटों पर ले जाता है, जिसमें केरल, कर्नाटका, गोवा और महाराष्ट्र शामिल हैं. इस साल इसकी ताकत में बढ़ोतरी हुई है, जो मानव निर्मित प्रभावों को दर्शाती है. मॉनसून की गतिविधियों में बदलाव के लिए कई मौसमी घटनाओं का योगदान रहा है.


