'अगर सरदार पटेल की सुनी होती, तो आज PoK हमारा होता!' – PM मोदी का सीधा वार कांग्रेस पर
PM मोदी ने एक रैली में कहा कि आज़ादी के वक्त सरदार पटेल चाहते थे कि सेना तब तक न रुके जब तक पीओके वापस न ले लिया जाए लेकिन उनकी बात को अनदेखा किया गया. आखिर क्यों नहीं मानी गई पटेल की बात? पूरी खबर पढ़िए, जानिए इतिहास के उस मोड़ की कहानी जिसने कश्मीर का भविष्य तय कर दिया.

PM Modi Sharp Dig at Congress: PM मोदी ने हाल ही में एक चुनावी रैली में कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को लेकर बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि अगर आज़ादी के वक्त सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह मानी गई होती तो शायद आज कश्मीर की तस्वीर कुछ और होती. PM मोदी ने सीधे तौर पर जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरदार पटेल चाहते थे कि जब तक PoK वापस ना ले लिया जाए, सेना का अभियान नहीं रुकना चाहिए. लेकिन उनकी सलाह को तवज्जो नहीं मिली.
सरदार पटेल की सोच और नेहरू से मतभेद
दरअसल, कश्मीर को लेकर पटेल का रुख शुरू में बहुत ज्यादा सख्त नहीं था लेकिन जब पाकिस्तान ने जूनागढ़ जैसे हिंदू बहुल इलाके पर मुस्लिम नवाब के नाम पर कब्जा जमाने की कोशिश की तब पटेल का नजरिया बदल गया. उन्हें लगा कि अगर जिन्ना ऐसा कर सकते हैं तो भारत को भी कश्मीर में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहिए.
राजमोहन गांधी ने अपनी किताब ‘Patel: A Life’ में लिखा है कि पटेल ने कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ को शतरंज की बिसात पर रानी, राजा और प्यादे जैसे बताया था — यानी देश की एकता में बेहद अहम.
नेहरू और पटेल के बीच इस मुद्दे पर कई बार टकराव भी हुआ. 26 अक्टूबर 1947 की एक बैठक में जब जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री महाजन ने फौरन सेना भेजने की मांग की तब नेहरू ने उन्हें टालने की कोशिश की. लेकिन पटेल ने साफ शब्दों में कहा, 'बिलकुल महाजन! आप पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं.'
संयुक्त राष्ट्र में मामला ले जाने पर भी विरोध
जब भारत ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का फैसला किया तो पटेल इससे नाखुश थे. हालांकि उन्होंने खुलकर विरोध नहीं किया लेकिन मन ही मन सहमत नहीं थे. गांधी जी ने तब कहा था कि 'अब कश्मीर नेहरू का मामला हो गया था और पटेल ने इस पर ज़्यादा जोर नहीं दिया.'
इसी दौरान, जब माउंटबेटन ने लाहौर जाकर जिन्ना से बातचीत करने की सलाह दी तो पटेल ने दो टूक कह दिया, 'जब हम सही हैं और ताकतवर हैं तो पाकिस्तान जाकर हाथ जोड़ना देश की जनता कभी माफ नहीं करेगी.' नेहरू को ये बात माननी पड़ी और लाहौर यात्रा रद्द हो गई.
पटेल की चुप्पी और अंत की चिंता
पटेल को कई अहम फैसलों में नजरअंदाज किया गया, चाहे वो कश्मीर को विशेष दर्जा देने की बात हो या फिर वहां के राजा को हटाने का मामला. जयप्रकाश नारायण ने बाद में कहा कि शायद पटेल ने जानबूझकर चुप्पी साध ली थी क्योंकि वे व्यावहारिक सोच वाले थे. 1950 में पटेल ने जेपी को पत्र लिखते हुए कहा था, 'कश्मीर का समाधान नहीं हो सकता.'
PM मोदी का इशारा आज के हालात की तरफ
PM मोदी का यह बयान सिर्फ इतिहास की चर्चा नहीं थी बल्कि उनका इशारा साफ था कि कश्मीर पर आज जो स्थिति बनी हुई है, उसकी जड़ें उस समय की गलतियों में छिपी हैं. उन्होंने पटेल को याद करके यह संदेश देने की कोशिश की कि अगर आजादी के बाद सेना को PoK पर पूरी तरह से नियंत्रण करने दिया गया होता तो आज की कई समस्याएं पैदा ही नहीं होतीं.


