1965 की जंग में वो रात जब शास्त्री जी ने लिया ऐसा फैसला, पाकिस्तान कांप उठा – 'हम ही लाहौर पहुंच जाते हैं!'
1965 की जंग में भारत की सेना बस 10 मिनट में लाहौर ले सकती थी लेकिन शास्त्री जी ने लिया ऐसा फैसला जिसने सबको चौंका दिया. लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि सेना ने लाहौर पर कब्जा नहीं किया, क्या था वो फैसला? जानो पूरी कहानी जो आज भी पाकिस्तान को डराती है!

Shastri Decision in the 1965 War: भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन 1965 की जंग में भारत ने ऐसा जवाब दिया था कि पाकिस्तान आज भी उस दिन को याद कर सिहर उठता है. उस वक्त देश के प्रधानमंत्री थे लाल बहादुर शास्त्री, जिनकी सादगी जितनी मशहूर थी, उतना ही दमदार था उनका नेतृत्व. इस ऐतिहासिक फैसले के पीछे एक बेहद साहसी सोच और देश के प्रति उनकी निष्ठा छुपी थी.
आधी रात को PM हाउस पहुंचे सेना प्रमुख
सितंबर 1965 की बात है, जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ शुरू की और हालात बहुत बिगड़ने लगे. उस वक्त सेना प्रमुख ने रात को शास्त्री जी से मिलने का समय मांगा और उन्हें बताया कि अब चुप रहने का वक्त नहीं है, पाकिस्तान को जवाब देना जरूरी है.
शास्त्री जी का साहसी आदेश – "सेना को लाहौर की ओर बढ़ाओ"
बात करते ही शास्त्री जी ने सेना प्रमुख से साफ शब्दों में कहा – “अगर जरूरत हो तो सीमा पार कीजिए, देश की सुरक्षा सबसे पहले है.” उनके इस आदेश से भारतीय सेना को खुली छूट मिल गई और अगले ही दिन युद्ध का रुख ही बदल गया.
सेना की चाल से कांपा पाकिस्तान – लाहौर बस कुछ किलोमीटर दूर
सेना ने पंजाब और राजस्थान की ओर से हमला बोलते हुए पाकिस्तान के कई इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया. लाहौर के करीब तक सेना पहुंच चुकी थी, और जानकारों के मुताबिक बस 10 मिनट और लगते, भारत लाहौर पर कब्जा कर लेता. पाकिस्तान के कई टैंक ध्वस्त कर दिए गए और उसका मनोबल टूटने लगा.
युद्धविराम की अपील, और दिल्ली जितनी जमीन भारत के कब्जे में
हालात पाकिस्तान के लिए बेकाबू हो गए. मजबूरन, संयुक्त राष्ट्र को बीच में आना पड़ा और 20 सितंबर को युद्धविराम की घोषणा हुई. भारत इस युद्ध में 710 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर चुका था – जो दिल्ली के आधे क्षेत्रफल के बराबर है.
उन्हें दिल्ली आने की जरूरत क्या थी, हम लाहौर पहुंच जाते हैं!
युद्ध के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्री जी ने जो कहा, वो आज भी सुनने वालों को जोश से भर देता है. उन्होंने कहा, “अयूब खान कहते थे वो दिल्ली तक आएंगे, मैंने सोचा उन्हें आने की जरूरत क्या है, हम ही लाहौर पहुंच जाते हैं.” इस एक लाइन में उनके आत्मविश्वास और रणनीति की झलक मिलती है.
लाहौर न लेने पर आज भी है बहस, लेकिन शास्त्री जी ने शांति को चुना
कई लोग आज भी मानते हैं कि भारत को लाहौर पर कब्जा कर लेना चाहिए था, पर शास्त्री जी ने अंतरराष्ट्रीय दबाव और संतुलन को ध्यान में रखते हुए शांति का रास्ता चुना. उन्होंने दिखा दिया कि युद्ध जीतना बड़ी बात नहीं, शांति को संभालना सबसे बड़ी जीत होती है.
ताशकंद समझौते के बाद रहस्यमयी मौत
1966 में ताशकंद समझौता हुआ, जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की पुष्टि हुई. लेकिन उस समझौते के तुरंत बाद 11 जनवरी 1966 को शास्त्री जी की रहस्यमयी हालात में मौत हो गई. उनकी मौत आज तक एक अनसुलझा सवाल बनी हुई है.
शास्त्री जी – सादगी में छिपा शेर, जिसने बिना शोर के पाकिस्तान को दिखाया अपना दम
1965 की जंग सिर्फ हथियारों की नहीं थी, ये एक सोच और नेतृत्व की भी जंग थी. शास्त्री जी ने साबित कर दिया कि एक सादा इंसान भी जब अपने देश के लिए खड़ा होता है, तो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन सकता है.


