क्या होता है प्रो-टेम स्पीकर अकबरुद्दीन ओवैसी की इस पद में नियुक्ति पर क्यों हो रहा है विवाद

प्रो-टेम स्पीकर में प्रो-टेम (Pro-tem) शब्द लैटिन भाषा के शब्द प्रो टैम्पोर (Pro Tempore) का संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ होता है- कुछ समय के लिए. वास्तव में, राज्य विधानसभाओं या लोकसभा के स्पीकर के पद पर आसीन कार्यचालक/कार्यवाहक (ऑपरेटिव) व्यक्ति, जो अस्थायी रूप से यह पद धारण करता है, उसे ही प्रो-टेम स्पीकर कहा जाता है.

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What is Pro-Tem Speaker : तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने AIMIM विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी को विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर की पद की शपथ दिलाई. अब ओवैसी नवनियुक्त विधायकों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे. इसके बाद बीजेपी ने ऐलान कर दिया है कि उसके विधायक ओवैसी के सामने शपथ नहीं लेंगे और समारोह का बहिष्कार करेंगे. इसके बाद अकबरुद्दीन ओवैसी विवादों में आ गए हैं. हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है, जब अकबरुद्दीन विवाद में घिरे हों. आज हम आपको यह बताएंगे कि प्रो-टेम स्पीकर क्या है और उसकी शक्तियां क्या हैं...

'प्रो-टेम स्पीकर' में 'प्रो-टेम' (Pro-tem) शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'प्रो टैम्पोर' (Pro Tempore) का संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ होता है- 'कुछ समय के लिए'. वास्तव में, राज्य विधानसभाओं या लोकसभा के स्पीकर के पद पर आसीन कार्यचालक/कार्यवाहक (ऑपरेटिव) व्यक्ति, जो अस्थायी रूप से यह पद धारण करता है, उसे ही 'प्रो-टेम स्पीकर' कहा जाता है. एक 'प्रो-टेम स्पीकर' को, आम चुनाव या राज्य विधानसभा चुनावों के बाद, नए स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुने जाने तक सीमित अवधि के लिए कार्य करना होता है.

यदि केंद्र में प्रधानमंत्री अपने पद की शपथ ले चुके होते हैं और सरकार मौजूद होती है, तो संसदीय मामलों के मंत्रालय के माध्यम से सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन, लोकसभा के सदस्यों में से ही किसी के नाम को, प्रो-टेम स्पीकर के पद पर नियुक्ति हेतु राष्ट्रपति के पास भेजता है. राज्य के मामले में, यदि राज्य में मुख्यमंत्री शपथ ले लेते हैं तो उनके द्वारा सदन सदस्यों में से कुछ नाम राज्यपाल के पास भेजे जाते हैं, जिनमें से एक नाम को राज्यपाल 'प्रो-टेम' स्पीकर के रूप में स्वीकार करते हुए ऐसे व्यक्ति को इस पद की शपथ दिलाते हैं. 

प्रो-टेम स्पीकर की जिम्मेदारियां

जहां नव निर्वाचित सदन ने अपने स्थायी स्पीकर का चुनाव नहीं किया है, वहां स्थायी स्पीकर चुने जाने तक, सदन की गतिविधियों को चलाने के लिए, सदन के सदस्यों के बीच में से किसी एक को प्रो-टेम स्पीकर के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया जाता है. हालांकि यह जरूरी नहीं है कि केवल चुनावों के बाद ही प्रो-टेम स्पीकर की नियुक्ति की जरूरत पैदा हो. यह नियुक्ति उस हर परिस्थिति में जरूरी हो जाती है, जब सदन में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद एक साथ खाली हो. ऐसा उनकी मृत्यु की स्थिति के अलावा, दोनों के साथ इस्तीफा देने की परिस्थितियों में हो सकता है.

अगर आसान भाषा में कहें तो चुनाव के बाद यह जरूरी होता है कि सदन में एक स्थायी मौजूद स्पीकर हो, जो सदन की कार्यवाही को सुचारु रूप से चला सके. अब सदन के स्थायी स्पीकर को चुनने और सदन की कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिए, सर्वप्रथम यह जरूरी होता है कि सदन में सदस्य होने चाहिए और सदन का सदस्य होने के लिए चुनाव जीतने के बाद शपथ लेना अनिवार्य होता है, बिना शपथ के कोई भी व्यक्ति औपचारिक रूप से किसी सदन का सदस्य नहीं कहा जा सकता है.

अब चूंकि सदन में सदस्यों को शपथ दिलाने के बाद ही किसी व्यक्ति को स्थायी स्पीकर के पद पर नियुक्त किया जा सकता है, इसलिए शपथ दिलाने के लिए ही एक प्रो-टेम स्पीकर को नियुक्त किया जाता है. हमें यह भी जानना चाहिए कि एक प्रो-टेम स्पीकर, अनुचित रूप से वोट करने पर किसी सांसद के वोट को डिसक्वालिफाई कर सकता है. यही नहीं, मतों के टाई हो जाने की स्थिति में, प्रो-टेम स्पीकर अपने मत का इस्तेमाल, निर्णायक फैसला लेने के लिए कर सकता है.

प्रो-टेम स्पीकर की नियुक्ति

आमतौर पर, सदन के वरिष्ठतम सदस्य को इस पद के लिए चुना जाता है. वह सदन को नए एवं स्थायी स्पीकर का चुनाव करने में सक्षम बनाता है. नए स्पीकर के निर्वाचित होने के बाद, प्रो-टेम स्पीकर के कार्यालय का अस्तित्व समाप्त हो जाता है.


संविधान में क्या है प्रावधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 180 (1), राज्य के राज्यपाल को सदन का प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त करने की शक्ति देता है. अनुच्छेद कहता है कि यदि सदन के स्पीकर का पद खाली हो, और उस पद को भरने के लिए कोई डिप्टी स्पीकर मौजूद न हो, तो स्पीकर के कार्यालय के कर्तव्यों को "विधानसभा के ऐसे सदस्य द्वारा निष्पादित किया जाएगा, जैसा कि राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त कर सकता है." जैसा कि हमने जाना कि परंपरागत रूप से, सदन के वरिष्ठतम विधायक को सदन के प्रो-टेम स्पीकर के रूप में चुना जाता है. हालांकि राज्यपाल के लिए इस परंपरा का पालन करना अनिवार्य नहीं है. 

प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर विवाद क्यों होता है?

अब तक हम जान चुके हैं कि सदन के वरिष्ठतम विधायक को सदन के प्रो-टेम स्पीकर के रूप में चुना जाता है. हालांकि राज्यपाल के लिए इस परंपरा का पालन करना अनिवार्य नहीं है. कई बार राज्यपाल प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखते, जिसके कारण विवाद खड़ा होता है.

प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर पहले कभी विवाद हुआ ?  

हां, साल 2018 में, कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा नेता के. जी. बोपैया को सदन के 'प्रो-टेम स्पीकर' के रूप में नियुक्त कर शपथ दिला दी थी. हालांकि उस समय सदन के वरिष्ठतम सदस्य, कांग्रेस के आर. वी. देशपांडे थे. इस पर विवाद होने पर भाजपा नेता के. जी. बोपैया को सदन के प्रो-टेम स्पीकर के रूप में नियुक्त करने पर राज्यपाल ने कहा था कि उन्होंने राज्य विधानसभा के सचिव द्वारा सौंपे गए नामों की एक सूची से बोपैया के नाम को चुना है. 

प्रो-टेम स्पीकर के पास क्या शक्तियां हैं? 

चूंकि संविधान में प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियों को लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, इसलिए इस मुद्दे को लेकर काफी अलग-अलग विचार हैं. हालांकि एक प्रो-टेम स्पीकर को एक स्थायी स्पीकर के समान सभी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती है, लेकिन उसके पास तमाम शक्तियां, दायित्व के रूप में अवश्य होती हैं.

क्या इसके बारे में कोर्ट के कोई आदेश- निर्देश हैं?

प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियों के संबंध में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने वर्ष 1994 में सुरेंद्र वसंत सिरसट के मामले में कहा था कि जब तक कि स्थायी स्पीकर का चुनाव नहीं हो जाता है, तब तक एक प्रो-टेम स्पीकर, सदन के नियमित स्पीकर के समान "सभी शक्तियों, विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा के साथ सभी उद्देश्यों के लिए" कार्य करता है. वहीं, ओडिशा उच्च न्यायालय ने गोदावरिस मिश्र बनाम नंदकिशोर दास, स्पीकर उड़ीसा विधानसभा के मामले में भी इस बात को लेकर सहमति व्यक्त की, जब अदालत ने कहा कि "प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियां, एक निर्वाचित अध्यक्ष की शक्तियों के बराबर हैं."

First Updated : Saturday, 09 December 2023