पुतिन कैसे बने तानाशाह? 300 मौतों का बदला लेने के लिए 80 हजार को उतारा मौत के घाट

व्लादिमीर पुतिन ने पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति पद की शपथ ली है. पुतिन ने दुनिया को संदेश दिया है कि वह रूस के शक्तिशाली नेता हैं और आने वाले वर्षों तक रूस के नेता रहेंगे. 1992 से 2024 तक पुतिन ने अपनी छवि एक फौलादी, सख्त नेता के रूप में बनाई.

Dimple Kumari
Dimple Kumari

व्लादिमीर पुतिन ने पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति पद की शपथ ली है. पुतिन ने दुनिया को संदेश दिया है कि वह रूस के शक्तिशाली नेता हैं और आने वाले वर्षों तक रूस के नेता रहेंगे. 1992 से 2024 तक पुतिन ने अपनी छवि एक फौलादी, सख्त नेता के रूप में बनाई. आज वह यूरोप और अमेरिका को टक्कर देने की ताकत वाला विश्व नेता है. पुतिन के इतिहास को देखा जाए तो वह एक जासूस थे. केजीबी में रहते हुए उन्होंने कई ऑपरेशन्स को अंजाम दिया है. 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया. तब कई केजीबी एजेंटों ने पश्चिम में शरण ली. कुछ ने डबल एजेंट की भूमिका निभाई. लेकिन पुतिन ने देश के साथ गद्दारी नहीं की. उनकी यही खासियत उन्हें राजनीति में ले आई.

व्लादिमीर पुतिन का जन्म 1952 में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता सोवियत संघ की नौसेना में कार्यरत थे. उनकी मां एक छोटी फैक्ट्री में काम करती थीं. 1975 में वह रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी में शामिल हो गये. कदम दर कदम वह एजेंट से गुप्त अधिकारी बन गया. 1989 में जर्मनी रूस के ख़िलाफ़ हो गया, जो रूस के लिए सबसे बड़ा बदलाव था. जर्मनी पहले रूस से प्रभावित था. बर्लिन की दीवार गिरने के बाद जर्मनी पूरी तरह से अमेरिका के साथ हो गया. रूस को तब सोवियत संघ के नाम से जाना जाता था. इस संघ में कुल 15 देश थे. संघ के विघटन के बाद ये सभी देश अलग हो गये. उस समय, यूएसएसआर में एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, यूक्रेन, मोल्दोवा, बेलारूस, जॉर्जिया, आर्मेनिया, अजरबैजान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल थे. 

जब सोवियत संघ टूटा तो मिखाइल गोर्बाचेव रूस के राष्ट्रपति थे. वह रूस के सबसे असफल राष्ट्रपति बने. उन्होंने 1989 में तालिबान को नियंत्रित करने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजी. लेकिन रूसी सेना को वहां से भागना पड़ा. बर्लिन की दीवार गिरी, गोर्बाचेव भी इसे रोक नहीं सके. 1991 में यूएसएसआर टूट गया. अंततः मिखाइल गोर्बाचेव को अपना पद छोड़ना पड़ा. उनकी जगह बोरिस येल्तसिन रूस के राष्ट्रपति बने. बोरिस येल्तसिन को लगा होगा कि रूस में सरकारी मशीनरी बेकार है. इससे स्लाइड पर काफी दबाव पड़ता है. अगर हमें अमेरिका की तरह प्रगति करनी है तो निजीकरण जरूरी है. बोरिस येल्तसिन ने सरकारी मशीनरी को बंद करके निजीकरण की शुरुआत की. लेकिन इसका उल्टा असर हुआ. अर्थव्यवस्था और ढह गई. लोगों की नौकरियां चली गईं. येल्तसिन का विरोध शुरू हो गया. फिर एंट्री हुई व्लादिमीर पुतिन की.

पुतिन ने जनता को कैसे प्रभावित किया?

1991 में व्लादिमीर पुतिन सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल बने. अनातोली सोबचाक रूस के सबसे बड़े शहर सेंट पीटर्सबर्ग के मेयर थे. पुतिन ने सोबचाक से मुलाकात की. उन्होंने पुतिन को सेंट पीटर्सबर्ग शहर का डिप्टी मेयर बनाया. डिप्टी मेयर का पद संभालते ही पुतिन ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगा दी. व्यवस्था में सुधार हुआ है. सड़क पर एक बदलाव देखने को मिला. यहीं से रूस में व्लादिमीर पुतिन के नाम की चर्चा शुरू हो गई. वे तेजी से आये. उस समय वैलेन्टिन बोरिसोविच युमाशेव रूसी राष्ट्रपति के सलाहकार थे. वह बोरिस के दामाद थे. उन्होंने पुतिन को फोन किया. पुतिन राष्ट्रपति बोरिस के सलाहकार बन गए. इसके बाद पुतिन और बोरिस गहरे दोस्त बन गये. धीरे-धीरे रूसी राजनीति में पुतिन का प्रभाव बढ़ता गया. राष्ट्रीय राजनीति में उनकी छवि उभरी.
 

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08 May 2024, 02:08 PM IST

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