जानिए क्या होता है रोज़ा और साथ ही इसका महत्व?

स्लामी कैलेंडर के अनुसार रोज़े के महीने को 9वां महीना माना जाता है और तो और 27वां रात को शब - ए - कद्र को कुरआन का अवतरण किया जाता है,

Poonam Chaudhary
Poonam Chaudhary

मुस्लिम में 5 बुनियादी स्तंभों में से एक स्तंभ होता है रोज़ा का। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार रोज़े के महीने को 9वां महीना माना जाता है और तो और 27वां रात को शब - ए - कद्र को कुरआन का अवतरण किया जाता है, तो देर किस बात की चलिए जानते हैं क्या महत्व होता है रोज़े का-

महीने का रोज़ा

मुस्लमानों में यह रोज़ा और महीना बेहद ही खास , पवित्र और खुशियों भरा होता है। इस पूरे एक महीने में सभी मुस्लिम बड़ी ही शिद्द्त से रोज़ा रखते हैं और अल्लाह से इबादत करते हैं। इसमें अपने मन और तन दोनों को साफ रखकर किसी भी प्रकार के बुरे विचार न रखकर इस रोज़े को रखा जाता है।

चाँद का महत्व

कभी - कभी रोज़ा 29 दिन के लिए होता है, तो वहीं कभी 30 दिन तक के लिए रखा जाता है। चाँद का दीदार होने पर ही इसका आखरी दिन निश्चित किया जाता है और जिसके बाद बहुत ही हर्षोल्लास और मज़े के साथ खुशियां मनाई जाती है। चाँद के दीदार पर कई तरह के मज़ेदार पकवान बनाये जाते हैं और एक दूसरे को ईदी भी आदान प्रदान की जाती है।

क्या है रमजान का महत्व?

रमजान के समय को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इसमें ऐसा माना जाता है की इन दिनों पैगंबर मुहम्मद के सामने कुरआन पहली बार आया था। जिसके बाद से रमजान मनाना शुरू किया गया।

कैसे मनाया जाता है रोज़ा

रोज़े के दौरान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक खाना खाना और पानी पीने की सख्त मनाही होती है। केवल शाम की नमाज़ पढ़ने के बाद इफ्तार का रोज़ा खोलते हैं और भोजन और पानी का सेवन करते हैं।

रोज़े का महीना होता है पाक

रमजान के इस महीने को बेहद ही पाक माना जाता है। मुस्लिम अल्लाह की दिल से इबादत करते हैं। बेसहारा लोगों की मदद करते हैं और कुरआन पढ़ते हैं और पूरे रोज़े इबादत में मग्न रहते हैं।

ईद - उल - फितर है बेहद ही खास

पूरे 1 महीने के रोज़े के बाद करीबन 30 दिन बाद ईद - उल - फितर का त्यौहार आता है। जिसमें सभी मुस्लमान नए - नए कपडे पहनते हैं और बड़ी ही खुशियों के साथ चाँद का दीदार करते हैं।

जानिए कैसे हुई थी रोज़े की शुरुआत

मुहम्मद साहब मक्के से मदीना जाने के बाद ही 1 साल बाद सभी मुस्लिमों को रोज़ा रखने को कहा था। जिसके बाद इस तरह से दूसरी हिजरी में रोज़ा रखने की यह परम्परा शुरू हुई।

calender
30 March 2023, 01:37 PM IST

जरुरी ख़बरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो