बिना तलाक के बिखरता रिश्ता, जानें भारतीय परिवारों में 'साइलेंट डिवोर्स' की बढ़ती समस्या का असली कारण?
Silent Divorce in India: भारत में कई घरों में 'साइलेंट डिवोर्स' की हकीकत है. कागजों और समाज की नजरों में शादी बरकरार रहती है लेकिन बंद दरवाजों के पीछे न भावनात्मक न शारीरिक जुड़ाव होता है और यह अनकहा सच कड़वाहट, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और बच्चों पर लंबे समय तक असर डालता है.

Silent Divorce in India: दीपा और नितीश यह एक शादी शुदा जोड़ा है जो दिसंबर में अपनी 20वीं शादी की सालगिरह मनाने वाले हैं लेकिन उनके रिश्ते की सच्चाई कुछ और ही है. यह एक ऐसा रिश्ता है जो कागजों पर तो मौजूद है लेकिन भावनात्मक रूप से कब का खत्म हो चुका है. एक साथ रहते हुए भी दोनों की जिंदगियां अब अलग-अलग दिशाओं में बह रही हैं. न कोई संवाद, न स्पर्श, न कोई जुड़ाव सिर्फ एक मौन समझौता जिसे आजकल साइलेंट डिवोर्स कहा जाता है. ऐसे रिश्तों की झलक भारतीय समाज में आम होती जा रही है. बाहर से सब सामान्य लगता है. त्योहारों पर तस्वीरें, पारिवारिक आयोजनों में साथ उपस्थिति लेकिन घर के अंदर एक चुप्पी पसरी होती है जो हर भावना को निगल चुकी होती है.
क्या होता है साइलेंट डिवोर्स?
विशेषज्ञों के अनुसारसाइलेंट डिवोर्स वह स्थिति होती है जब पति-पत्नी भावनात्मक और शारीरिक रूप से एक-दूसरे से पूरी तरह कट चुके होते हैं लेकिन सामाजिक दबाव, बच्चों या वित्तीय निर्भरता के चलते एक साथ रहने को मजबूर होते हैं. डॉ. मनोवैज्ञानिक और मैरिज काउंसलर बताते हैं कई जोड़े सिर्फ बच्चों या समाज के डर से एक साथ रहते हैं लेकिन उनके रिश्ते में साथीपन की आत्मा मर चुकी होती है. बातचीत केवल जरूरी कामों तक सीमित होती है. बिजली का बिल, बच्चों की फीस, या सब्जी लानी है या नहीं.
क्यों बना रहता है ऐसा रिश्ता?
काउंसलर सुवर्णा वारड़े कहती हैं कि हमारी संस्कृति में तलाक को अब भी नकारात्मक रूप में देखा जाता है. यही वजह है कि लोग रिश्ते खत्म होने के बावजूद भी उन्हें निभाने का दिखावा करते हैं. इसके अलावा, आर्थिक निर्भरता, बच्चों के भविष्य की चिंता और बदलाव का डर भी ऐसे रिश्तों को बनाए रखते हैं. लोगों को नया जीवन शुरू करने का डर होता है. पुराने रिश्ते की आदत हो जाती है, चाहे उसमें कोई खुशी न बची हो. यही आदत उन्हें उस रिश्ते में रोके रखती है.
समाज का दबाव और परिवार की उम्मीदें
संयुक्त परिवारों में तलाक को केवल दो लोगों का निर्णय नहीं माना जाता बल्कि पूरे खानदान की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता है. ऐसे में पति-पत्नी केवल सामाजिक अपेक्षाओं को निभाने के लिए साथ रहते हैं, जबकि भावनात्मक रूप से पूरी तरह अलग हो चुके होते हैं. चुप्पी में छिपे इस टूटे रिश्ते का असर धीरे-धीरे पूरे परिवार पर पड़ता है. मैरिज काउंसलर के अनुसार जब पति-पत्नी के बीच भावनात्मक निकटता नहीं रहती तो वे अकेलेपन, हताशा और डिप्रेशन जैसी मानसिक स्थितियों का शिकार हो सकते हैं. यह सिर्फ उनके रिश्ते को नहीं बल्कि बच्चों की मानसिकता को भी प्रभावित करता है. बच्चे झगड़े नहीं देखते लेकिन वे घर की ठंडी खामोशी को महसूस कर लेते हैं. इससे उनके भीतर रिश्तों को लेकर असुरक्षा और डर पैदा हो सकता है.
जब लगातार समाज के सामने झूठी मुस्कान ओढ़ते हैं, तो वे भीतर से टूटने लगते हैं. इस नकली जीवन को निभाने में उनकी आत्मसम्मान और मानसिक ऊर्जा दोनों क्षीण होने लगती हैं. साइलेंट डिवोर्स सिर्फ एक टर्म नहीं बल्कि एक गहरा भावनात्मक संकट है जो लाखों भारतीय घरों में मौजूद है. यह स्थिति न केवल मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी खत्म कर देती है. इस तरह का रिश्ता व्यक्ति को मानसिक रूप से इतना कमजोर कर देता है कि वे आत्मसम्मान खो बैठते हैं. ये लोग रिश्ते में फंसे हुए महसूस करते हैं न पूरी तरह साथ, न पूरी तरह अलग.


