परवाना और जुगनू | इक़बाल

परवाना परवाने की मंज़िल से बहुत दूर है जुगनू क्यों आतिशे-बेसूद से मग़रूर है जुगनू

Lalit Hudda
Lalit Hudda

परवाना

परवाने की मंज़िल से बहुत दूर है जुगनू

क्यों आतिशे-बेसूद से मग़रूर है जुगनू

 

जुगनू

अल्लाह का सो शुक्र कि परवाना नहीं मैं

दरयूज़ागरे-आतिशे-बेगाना[3] नहीं मैं

 

मेरा गुनाह मुआफ़

मैं भी हाज़िर था वहाँ ज़ब्ते-सुख़न  कर न सका

हक़ से जब हज़रते- मुल्ला को मिले हुक़्मे-बहिश्त

 

अर्ज़ की मैंने इलाही मेरी तक़सीर[6] मुआफ़

ख़ुश न आएँगे इसे हूरो-शराबो-लबे-ख़िश्त

 

नहीं फिरदौस[8] मुक़ामे-जदलो-क़ाल-ओ-मुक़ाल

बहसो-तकरार इस अल्लाह के बन्दे की सरिश्त

 

है बदआमोज़ी-ए-अक़वामो-मलल काम इसका

और जन्नत में न मस्जिद, न कलीसा न कनिश्त

calender
05 August 2022, 05:32 PM IST

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