रोज़ तुम्हारे ख़त पढ़ते हैं | अर्पित 'अदब'

हम से अधिक मौन रातों में शोर मचाते सन्नाटों में तुम तक जाती राहों को बस रोती आँखों से तकते हैं रोज तुम्हारे ख़त पढ़ते हैं.

Janbhawana Times
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हम से अधिक मौन रातों में

शोर मचाते सन्नाटों में

तुम तक जाती राहों को बस

रोती आँखों से तकते हैं

रोज तुम्हारे ख़त पढ़ते हैं.

 

रोज ग़मों का ताना-बाना

रोज दर्द की नई निशानी

रोज रात को रोज रात से

हम ने सीखी रात निभानी *ऐसा नही ख्याल नही है

तुम को लेकिन कम लिखते हैं,

रोज तुम्हारे ख़त पढ़ते हैं.

 

रोज़ प्रेम की उम्र बढ़ेगी

और घटेंगें साल हमारे

यहाँ हमारे अधर जलेँगेँ

वहां जलेँगेँ गाल तुम्हारे

कुछ-कुछ जीवित अपनापन है

कुछ-कुछ तुम से भी दिखते हैं

रोज तुम्हारे ख़त पढ़ते हैं

calender
05 August 2022, 06:08 PM IST

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