ॐलोक आश्रम: 75 साल में आध्यात्म ने कितनी प्रगति की है? भाग 3

आध्यात्म आत्मा है। जितनी मजबूत आत्मा होगी उतना ही मजबूत शरीर होगा। जैसे हम अगर किसी बड़े भवन की नींव रखना चाहें या किसी बड़े भवन को बनाना चाहें तो सबसे पहले हमें उसकी नींव मजबूत बनानी पड़ेगी।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

आध्यात्म आत्मा है। जितनी मजबूत आत्मा होगी उतना ही मजबूत शरीर होगा। जैसे हम अगर किसी बड़े भवन की नींव रखना चाहें या किसी बड़े भवन को बनाना चाहें तो सबसे पहले हमें उसकी नींव मजबूत बनानी पड़ेगी। बड़े पिलर बनाने पड़ेंगे, बेसमेंट तगड़ा बनाना पड़ेगा उसका तभी वह ऊपर तक जा सकता है नहीं तो बिल्डिंग ज्यादा ऊंचा तक नहीं जा पाएगी और बिल्डिंग गिर जाएगी। अगर कोई छोटा बच्चा है वो बहुत बड़ा सपना देखना चाहता है, वो दुनिया का सबसे बड़ा अमीर आदमी बनना चाहता है। दुनिया के किसी भी फील्ड में टॉपमोस्ट पर जाना चाहता है। ऐसी परिस्थिति में सबसे पहले आपको अपनी सभ्यता-संस्कृति से sजुड़ना होगा। आध्यात्मिक होना होगा। वेदों, उपनिषदों के जो मूल्य हैं उन मूल्यों को पकड़ना होगा।

अगर आप राजनीतिक परिदृश्य में देखो, कई सामाजिक परिदृश्य में देखो तो एक तरफ आपको ऐसे व्यक्ति दिखाइ देंगे जो पैदा हुए बड़े सुविधापूर्ण ढंग से। पैदा होते ही अच्छे स्कूल में पढ़े। कॉन्वेंट में पढ़े जहां हर तरह की सुख-सुविधा मौजूद थीं। विदेश पढ़ने गए। दूसरी तरफ आपको कुछ ऐसे बच्चे दिखेंगे जो बड़े अभावों में पले। किसी व्यवस्थित सरकारी तंत्र में भी नहीं पढ़ पाए। ऐसे ही पढ़ते रहे। छोटे-मोटे व्यवसाय किए लेकिन जिस व्यक्ति ने छोटे-मोटे व्यवसाय किए कोई पर्याप्त शिक्षा की व्यवस्था भी नहीं हो पाई। जीवन में संघर्ष किया।

ऐसा व्यक्ति उच्च पदों पर हैं। उच्च राजनैतिक नेतृत्व पर हैं और जिसके पास सारी सुविधाएं थी वो राजनैतिक नेतृत्व के लिए संघर्ष कर रहा है। राजनैतिक ही नहीं अनेक क्षेत्रों में देखोगे आप कि यह पद्धति चल रही है। ऐसा क्यों हैं। क्योंकि जिस व्यक्ति को सारी चीजें मिल गईं उसने भारतीय मूल्यों को नहीं पहचाना। यहां की आध्यात्मकिता को नहीं पहचाना। यहां के संस्कारों को नहीं पहचाना। उनको चीजें तो अच्छी मिल गईं लेकिन अपना मूल्य नहीं पहचानने के कारण वह यहां व्यवस्थित नहीं हो पाया वह यहां आगे नहीं बढ़ पाया। उसकी नींव कमजोर थी वो थोड़ा ऊपर उठा और झुक गया, गिर गया। जिसकी नींव मजबूत थी धीरे-धीरे ही सही एक दिन उसकी बिल्डिंग बड़ी ऊंची हो जाती है।

हम तुरंत सफलता चाहते हैं अगर आप जीवन में तुरंत सफलता चाहते हैं तो आप छोटे बनेंगे। आपने देखा होगा कि जो पेड़ बहुत जल्दी बढ़ते है और बहुत जल्दी उसपर फूल आने लगते हैं, फल आने लगते हैं वैसे पेड़ जल्दी खत्म हो जाते हैं। वैसे पड़े जल्दी नष्ट हो जाते हैं। जो पेड़ ऐसे होते हैं जिनमें एक साल, दो साल, पांच साल आपको तैयार करना पड़ता है तब उनके फल आते हैं वो ज्यादा देर तक जीते हैं। ऐसे पेड़ सालों-साल जीते हैं। अगर आप जीवन में बड़े बनना चाहते हैं, सफल बनना चाहते हैं तो आपके जीवन में धैर्य होना चाहिए। आपको धीरे-धीरे जीवन में आगे बढ़ना है। आपके फलने की उम्र बाद में आएगी। उतने बड़े आप तभी बन पाएंगे जब आप देश की जड़ों से जुडे हों। भारत देश की जड़ आध्यात्मिकता है। यहां के धर्म की जड़ सनातन की आध्यात्मिकता है।

हम किसी भी पंथ में पैदा हुए हो सकते हैं क्योंकि पैदा होना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन जो रास्ता है जिस रास्ते पर हमें चलना है। वो हमें पता होना चाहिए कि श्रेष्ठ रास्ता कौन सा है। किन रास्तों पर चलकर हम इस जीवन में सुखी रह सकते हैं। हम प्रसन्न रह सकते हैं हम सबको साथ लेकर चल सकते हैं। वह रास्ता सनातन का ही रास्ता है जो सबको साथ लेकर चलता है। सबको प्रसन्न करके चलता है और सबका कल्याण मानकर चलता है। अगर हम ऐसे किसी रास्ते पर चलने की बात कर रहे हैं जो सिर्फ हमें सुख देता है और दूसरों को दुख देता है तो ऐसे में तो दूसरा सुखी रह पाएगा और न हम खुद सुखी रह पाएंगे। क्योंकि हम दूसरों को दुख देने की कल्पना करते हैं तो सबसे पहले दुखी हम हो जाते हैं। ऐसा नहीं हो सकता है कि हम दूसरों पर कीचड़ फेंके और हमारे हाथ में कीचड़ न लगे। कीचड़ के दो-चार छींटे हमारे ऊपर भी पड़ेंगे।

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25 November 2022, 04:30 PM IST

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