ॐलोक आश्रम: 75 साल में आध्यात्म ने कितनी प्रगति की है? भाग-4

युवाओं को यही संदेश है कि जीवन में अगर ऊपर बढ़ना है आगे बढ़ना है तो सबसे पहले अपनी जड़ों से जुड़ें, अपने मूल्यों से जुड़ें अपने मूल्यों को पहचाने। अपनी सभ्यता-संस्कृति से जुड़ें। क्योंकि अगर पेड़ केवल ऊपर रहेगा उसकी जड़े गहरी नहीं होंगी तो कभी ऊपर नहीं जा सकता।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

युवाओं को यही संदेश है कि जीवन में अगर ऊपर बढ़ना है आगे बढ़ना है तो सबसे पहले अपनी जड़ों से जुड़ें, अपने मूल्यों से जुड़ें अपने मूल्यों को पहचाने। अपनी सभ्यता-संस्कृति से जुड़ें। क्योंकि अगर पेड़ केवल ऊपर रहेगा उसकी जड़े गहरी नहीं होंगी तो कभी ऊपर नहीं जा सकता। ऊपर जाने के लिए उतना ही उसे नीचे भी जाना पड़ता है। उनता ही अपनी जड़ों को मजबूत करना पड़ता है। आप अपनी जड़ों को मजबूत करें, आध्यात्मिकता से जुड़ें और आपके पास तो प्रभु का दिया हुआ इतना बड़ा वरदान है श्रीमदभगवद गीता जो मुस्लिम होते हुए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पढ़ा करते थे। बहुत सारे ऐसे विद्धान हैं जो इनको पढ़ा करते हैं। विदेशों में भगवद गीता बहुत पढ़ी जाती है और हमारे देश में ही देश के युवा भगवद गीता से दूर हैं। आप अगर भगवद गीता पढ़ोगे तो दुनिया में आपको अगर किसी तरह की कोई समस्या हो तो उसके लिए इसके बाहर जाने की आवश्यकता ही नहीं है। 

अपने जीवन को जीने के ढंग बनाए थे। हमारा प्राचीन जीवन बड़ा ही सटीक जीवन था। जीवन लोग इस तरह से जीते थे कि वहां खुशी अपने आप आ जाती थी। हम खुशियों के पीछे भागते नहीं थे। जीवन को चार भागों में विभाजित किया। ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम। जीवन को किस तरह आगे ले जाना है। ये भारतीय मूल्य थे। पाश्चात्य मूल्य में जीवन को खुशियों के पीछे भागना है। व्यक्ति चाहता है कि मैं खुश रहूं। ज्यादा से ज्यादा पैसे हमारे पास आ जाएं। ज्यादा से ज्यादा चीजों को हम इकट्ठा कर लें। हमारे पास सारी सुख-सुविधाएं मौजूद रहें। इसका परिणाम यह होता है कि जो वेल टू डू बच्चे होते हैं जिनके मां-बाप समर्थ होते हैं, सक्षम होते हैं, जिनके पास पैसा होता है। वो नशे की लत में पड़ जाते हैं वो गलत रास्ते पर चले जाते हैं। उसका कारण यही है कि वो खुशियों के पीछे भागने लगते हैं और कुछ दिन में जीवन में उसको खुशियां मान रहे होते हैं।

शराब हो गया, नशा हो गया, ड्रग्स हो गया उसके वो गुलाम बन जाते हैं। इस तरह से उनके चक्कर में वो फंस जाते हैं कि जब जीवन में वो पीछे मुड़कर देखते हैं तो उनको लगता है कि जो व्यक्ति बहुत पीछे थे जो कहीं नहीं थे वो आज बहुत ऊपर पहुंच गए हैं। भौतिक जीवन में भी बहुत सुखी हैं और वो व्यक्ति नीचे आ गए हैं। सृष्टि का ऐसा क्रम चलता हुआ दिखाई दे रहा है। उसका कारण यही है कि वो धर्म से कट गए हैं। आध्यात्मकिता से कट गए हैं, वो सुखों के पीछे भागने लगे हैं। जीवन में आपको सुखों के पीछे नहीं भागना है आपको जीवन में अपनी दिशा तय करनी है और आपको उस दिशा में चलना है। सुख अपने आप, खुशियां अपने आप आपके पीछे आती जाएंगी। जीवन को इस तरह आपको आगे बढ़ाना है और यही आध्यात्मिकता है।

आध्यात्मिकता का मतलब मंदिर जाकर अगरबत्ती लेकर पूजा करना या भगवान की मूर्ति कै सामने बैठे रहना या फिर तीर्थ यात्रा करना, धार्मिक स्थानों का भ्रमण करना नहीं है। आध्यात्मिकता का मतलब है अपने मूल्यों से जुड़ना। अपनी संस्कृति से जुड़ना। अपने आप से जुड़ना। अपने आप से बात करना कि हम किसलिए पैदा हुए है। जीवन का क्या उद्देश्य है। जीवन का क्या ध्येय है। हम ऐसे ही सौ साल बिताकर चले जाएंगे। हम किसके पीछे भागते रहेंगे। आज आप इस खुशी के पीछे भागोगे, कल आप उस खुशी के पीछे भागोगे तो पीछे भागते-भागते आपकी जिंदगी कट जाएगी।

युवाओं को ये जानना जरूरी है। उसकी अपने आप से मुलाकात होनी जरूरी है। मुलाकात इसलिए हमें अपने आप से नहीं हो पाती कि हम हर वो बहाना ढूंढ़ते हैं हर वो साधन ढूंढ़ते हैं जो हमें अपने आप से दूर कर दे। आज कल हमारे हाथ में जो हमारा मोबाइल है वो हमें अपने आप से दूर कर रहा है। सोशल मीडिया से तो जुड़ जाते हैं लेकिन हम अपने आप से कट जाते हैं। थोड़ा समय अपने आप से मुलाकात होने के लिए जरूरी है। दो मिनट की आपकी अपने आप से मुलाकात जीवन में इतनी शक्ति दे देगी कि आप आगे चले जाओगे और अपने आप से जो पांच मिनट की मुलाकात है वही सच्ची आध्यात्मिकता है और यही आध्यात्मिकता आपको जीवन में आगे ले जाएगी।

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26 November 2022, 02:26 PM IST

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