ॐ लोक आश्रम: क्रोध पर नियंत्रण कैसे हो? भाग-3
हम सबसे पहले जीवन को समझने का प्रयास करें कि जीवन है क्यों। हम इस संसार में आए हैं हम 60 साल, 70 साल, 80 साल जितने साल इस जीवन में रहेंगे तो उस 70-80 साल में हमें क्या करना है और किस तरह का जीवन हम चाहते हैं किस तरह के जीवन को सफल जीवन माना जाएगा।
हम सबसे पहले जीवन को समझने का प्रयास करें कि जीवन है क्यों। हम इस संसार में आए हैं हम 60 साल, 70 साल, 80 साल जितने साल इस जीवन में रहेंगे तो उस 70-80 साल में हमें क्या करना है और किस तरह का जीवन हम चाहते हैं किस तरह के जीवन को सफल जीवन माना जाएगा। ये बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है और इस प्रश्न का जब हम उत्तर ढ़ूंढ़ेंगे और उस दिशा में आज से 70 साल में आगे कुछ करके इस जन्म से जाना चाहते हैं और अगले जन्म में आना चाहते हैं। इस प्रश्न को अगर हम देखेंगे और इसपर विचार करेंगे तो स्वभावत: क्रोध हमारे जीवन से बाहर हो जाएगा। क्योंकि हम अपने दूरवर्ती लक्ष्यों को देख लेंगे हम अपने पासवर्ती लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे और हम अपनी सहज प्रवृति के अनुसार अपना कार्य करेंगे।
सबसे पहले अपने जीवन हमें अपने आप को समझना होगा कि मैं क्यों पैदा हुआ हूं मैं इस समाज में क्या कर सकता हूं। समझने पहले मुझे जानना है कि मैं सबसे अच्छा क्या कर सकता हूं जब मैं खाली होता हूं तो मैं क्या करता हूं। हम अपने विचारों को दूसरे के ऊपर थोपे नहीं। अगर हम अपना जीवन जीएंगे और दूसरों को उनका जीवन जीने देंगे तो बहुत अर्थों में हम धीरे-धीरे समाज में बहुत निर्लिफ्त भाव से जीएंगे और जब हम निर्लिप्त भाव से जीएंगे अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तो हम सुख और दुख से परे एक आनंद की अवस्था में पहुंच जाएंगे और वैसी अवस्था में हम क्रोध पर अपने आप विजय प्राप्त कर लेंगे।
जीवन के साथ ही मृत्यु जुड़ा हुआ है और जीवन के साथ मृत्यु का भय भी जुड़ा हुआ है। दुनिया में जैसे ही कोई जीव आता है वो सबसे पहले अपनी रक्षा करता है। एक चींटी से लेकर एक वायरस तक अपनी जीवन की रक्षा करने का पूरा प्रयास करता है। जीवन का लक्षण है कि अपने जीवन को लेकर उसकी रक्षा का प्रयास करना। मनुष्य चूंकि चिंतनशील है विचारशील है उसको लगता है कि हमारे सारे प्रयत्नों का खात्मा वहीं पर हो जाएगा जहां मेरा जीवन समाप्त हुआ। बहुत सारे दार्शनिक विचारक हैं जितने भी धर्म आए हैं उन्होंने मृत्यु के बाद की बातें अपने-अपने ढंग से तार्किक ढंग से अपने विचारों से कहने की कोशिश की है क्योंकि मनुष्य हमेशा सोचता है कि मरने के बाद क्या होता है सारे शास्त्रों में मरने के बाद की बात की चर्चा की गई है क्योंकि मनुष्य को लगता है कि हमारे सारे प्रयत्नों का अंत कहीं यहीं तो नहीं हो जाएगा।
मृत्यु का भय एक अनिवार्य, स्वाभाविक और मानवीय है और सारे प्राणियों में ये होता है। भगवना बुद्ध ने इस भय को लेकर विचार किया और एक रास्ता बतलाया कि किस तरह से इसको पार कर सकते हो। उससे पहले कठोपनिषद् में यमराज ने नचिकेता को बतलाया कि मृत्यु के भय से कैसे पार जा सकते हैं। भगवान कृष्ण ने गीता में बतलाया कि मृत्यु के भय से कैसे पार जा सकते हैं। उसका सारांश ये है कि हम इस बात को समझ लें कि मृत्यु इस शरीर के हो रही है मेरी मृत्यु नहीं हो रही है। मैं अपने आप को इस शरीर से जोड़ देता हूं। जबकि ये शरीर एक हार्डवेयर है और मैं एक सॉफ्टवेयर हूं, मैं इस शरीर के बाद भी जिंदा रहूंगा और इस शरीर के पहले भी मैं जिंदा था यह शरीर मेरा एक बीच की अवस्था है।