ॐ लोक आश्रम: हम अपने अवसर को कैसे पहचानें? भाग-1
यह मानव स्वभाव है कि मनुष्य जीवन में हमेशा सुख चाहता है। मनुष्य ये चाहता है कि हर अच्छाई उसके साथ होती रहे उसके फल उसे मिलते रहें।
यह मानव स्वभाव है कि मनुष्य जीवन में हमेशा सुख चाहता है। मनुष्य ये चाहता है कि हर अच्छाई उसके साथ होती रहे उसके फल उसे मिलते रहें। वो यह भी चाहता है कि दूसरे सारे अपना कर्तव्य करते रहें लेकिन उसे अपने कर्मों को करने की छूट मिल जाए वो इच्छानुसार कर्म कर सके। वह वो काम कर सके जो काम करना उसे अच्छा लगता हो। सभी व्यक्ति अपने मनोनुकूल काम करना चाहता है। अपनी इच्छापूर्ति करना चाहता है। हर व्यक्ति वही चाहता है कि जो मुझे अच्छा लगता हो और दूसरी सब अपनी जिम्मेदारी उठाएं। अपनी जिम्मेदारी कम से कम उठाना चाहता है। एक बच्चे को अच्छा लगता है कि उसके मां-बाप का कर्तव्य है कि वो मुझे अच्छा खाना दें, अच्छा कपड़ा दें, मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाएं, मेरे मनोरंजन का इंतजाम करें और मैं वो करूं जो मुझे अच्छा लगता है।
इसी तरह पत्नी पति के लिए सोचती है, पति पत्नी के लिए सोचता है। कुल मिलाकर कहें तो लोग कम श्रम के अपने-अपने जीवन का सर्वाधिक आनंद उठाना चाहता है। इसी तरह हर व्यक्ति की ऐसी ही सोच है चाहे वो बड़ा हो या छोटा हो लेकिन अगर व्यक्ति ऐसा सोचेगा अपनी मनमानी करेगा, अपनी इच्छा से चलेगा तो क्या ये समाज चल सकता है। क्या हर व्यक्ति का कल्याण हो सकता है। क्या उस व्यक्ति के खुद का कल्याण हो सकता है जो ऐसा चाहता है। यह विचारणीय प्रश्न है। जब हम विपरीत परिस्थिति में फंस जाते हैं जब हमारी परीक्षा की घड़ी आती है तो हम बहुत तनाव में आ जाते हैं और ये सोचते हैं कि अगर ये परीक्षा टल जाए तो अच्छा है लेकिन हमें इस परिस्थिति का सामना करना चाहिए। परीक्षा टल भी जाए तो क्या वो परीक्षा दोबारा नहीं आएगी।
अगर मनुष्य की मानसिकता यही बनी रहेगी तो जब दूसरी बार फिर परीक्षा आएगी तो वो सोचेगा कि ये फिर से टल जाए यानी वो बार-बार इस चीज से घबराएगा और परीक्षा देना नहीं चाहेगा। पहली बात तो हमें अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से करना चाहिए दूसरी बात अगर हमने अच्छी पढ़ाई की है फिर भी परीक्षा से डर लग रहा है तो हम पढ़ाई से ना भागें। हम परिणाम को छोड़ दें और अपने काम को करते रहें। बिना परिणामों की चिंता किए अपने कर्म में पूरी ईमानदारी से जुटे रहें।
अर्जुन के सामने समस्या यही थी। सारी तैयारी कर ली और अंत समय में युद्ध से भागने लगा। ऐसे में भगवान कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तुम जो ये युद्ध कर रहे हो यह किसी के ऊपर एहसान नहीं कर रहे हो ये तुम्हारी ड्यूटी है। अपने कर्तव्य का पालन करने में किसी तरह का डर नहीं होना चाहिए। क्योंकि न तो तुम्हारा पैदा होना तुम्हारे हाथ में था और ना तुम्हारा मरना तुम्हारे हाथ में है।