ॐलोक आश्रम: किस चीज में अंधा होना समस्या है? भाग-1

भगवदगीता का प्रारंभ होता है धृतराष्ट्र के प्रश्न से, धृतराष्ट्र जो कि अंधे हैं, अंधा होना समस्या नहीं है, समस्या है, मोह में अंधा होना। धृतराष्ट्र केवल आंखों से अंधे होते पर मोह में अंधे नहीं होते तो शायद महाभारत का युद्ध नहीं होता।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

भगवदगीता का प्रारंभ होता है धृतराष्ट्र के प्रश्न से, धृतराष्ट्र जो कि अंधे हैं, अंधा होना समस्या नहीं है, समस्या है, मोह में अंधा होना। धृतराष्ट्र केवल आंखों से अंधे होते पर मोह में अंधे नहीं होते तो शायद महाभारत का युद्ध नहीं होता। जब व्यक्ति मोह में अंधा हो जाए तो उसे सही और गलत का ज्ञान नहीं होता। अगर व्यक्ति के पास केवल आंखें न हों तो उसे केवल रंग का ज्ञान नहीं होता लेकिन अगर मोह हो गया तो मोह विवेक को खा लेता है। हमारे जीवन में दो चीजें होती हैं एक बुद्धि होती है, बुद्धि यह बतलाती है कि कैसे करना है और विवेक यह बतलाता है कि क्या करना है। क्या करना सही है और क्या करना गलत है। ये ज्ञान हमारा विवेक देता है लेकिन अगर मोह आ गया तो हमारा विवेक शांत हो जाता है।

वो यह नहीं बतलाता है कि क्या सही है और क्या गलत, अगर वो कहने की भी कोशिश करे तो मोह उसे दबा देता है। यही हुआ धृतराष्ट्र के साथ, पुत्रमोह में इतने अंधे हो गए कि उन्हें अपने बेटे की गलतियां, गलतियां नहीं दिखीं। धृतराष्ट्र संजय से पूछ रहे हैं कि कुरुक्षेत्र और धर्मक्षेत्र में मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया। व्यक्ति जो अपने जीवन में नहीं कर पाता है जो इच्छा उसकी दबी रह जाती है वो इच्छा वो अपने पुत्र पर डाल देता है। धृतराष्ट्र राजा बनना चाहते थे वो अधिकार पांडु को मिल गया। कहीं न कहीं उनके जीवन में उन्हें राजा बनने की बड़ी इच्छा थी और वो इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने अपने पुत्र दुर्योधन को चुना।

हम अपनी दबी हुई इच्छा को पूरा करने के लिए अपने पुत्र को चुन लेते हैं। हम अपना उत्तराधिकारी चुन लेते हैं। हम जीवन में शायद आईएएस नहीं बन पाए तो बेटा बन जाए, हम क्रिकेटर नहीं बन पाए तो बेटा बन जाए। हम कुछ भी जो नहीं कर पाए वो हम अपने पुत्र के लिए करना चाहते हैं और हमारी ये इच्छा इतनी तीव्र होती है, इतनी प्रबल होती है कि हम ये भूल जाते हैं कि उस काम को करने में क्या सही मार्ग है और क्या गलत मार्ग है। बस हम चाहते हैं कि किसी तरह काम हो जाए। समस्या यहीं खड़ी होती है। इस बात में कोई बुराई नहीं कि हम अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दें, अच्छे संस्कार दें, बडे सपने दें इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन इस बात में बुराई जरूर है कि हम अपनी महत्वकांक्षाएं उस बच्चे पर लाद दें। हमें ध्यान होना चाहिए कि हमने बच्चा पैदा किया है गुलाम पैदा नहीं किया है।

जब हम अपनी इच्छाएं अपने बच्चे पर लादना प्रारंभ करते हैं तो न केवल समस्या हमारे लिए होती है, समस्या उस बच्चे के लिए भी होती है। हो सकता है वो वच्चा वो करने के लिए बना ही न हो जो हम सोच रहे हैं। अगर एक मां-बाप अपने बच्चे को फुटबॉलर बनाना चाहते हैं हो सकता है बच्चा फुटबॉल खेलने के लिए बना ही न हो वह कविता के लिए बना हो लेकिन उसको फुटबॉल में लगा दिया गया उसको उस काम में लगा दिया गया। यहां से जीवन में समस्या प्रारंभ होती है। भगवदगीता में भी कहा गया है कि जो गलत कर दिया गया है उसको रोकना होगा। आज अगर आप अपने जीवन में अपने बच्चों से अपनी इच्छा पूरी करवा रहे हैं तो उसपर विचार करना है उसको रोकना है। 

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29 December 2022, 04:41 PM IST

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