ॐलोक आश्रम: हम दबाव में कब आते हैं? भाग-1
भगवान कृष्ण से अर्जुन ने कहा कि हमारे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में लेकर चलें। मैं देखना चाहता हूं कौन मेरे साथ युद्ध करना चाहते हैं जो दुर्योधन के पक्ष में खड़े हैं।
भगवान कृष्ण से अर्जुन ने कहा कि हमारे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में लेकर चलें। मैं देखना चाहता हूं कौन मेरे साथ युद्ध करना चाहते हैं जो दुर्योधन के पक्ष में खड़े हैं। भगवान कृष्ण ने वैसा ही किया और जब अर्जुन ने देखा तो उसकी स्थिति विकट हो गई। अर्जुन के हाथ से गांडीव छूट रहा है। हाथ और शरीर में कंपन हो रहा है अर्जुन को ऐसा लग रहा है कि मैं युद्ध हार जाऊंगा। अर्जुन को लग रहा है कि सारी परिस्थितियां मेरे विपरीत हैं। भीष्म हैं जिनको हराया नहीं जा सकता। द्रोण हैं वो अजेय हैं। ऐसे-ऐसे महारथी हैं मैं कैसे जीतूंगा। उसके बाद की अवस्था ऐसी है कि अर्जुन कहते हैं कि मैं युद्ध नहीं कर सकता। जो स्थिति उस समय अर्जुन की है हममें से बहुतों की स्थिति उस तरह की हो जाती है।
जिसे हम कहते हैं परफॉरमेंस प्रेशर। आपने देखा होगा कि जब भी कोई बड़ा टूर्नामेंट होता है तो उसमें हमारा स्टार प्लेयर परफॉर्म नहीं कर पाता है। बहुत बार ऐसा होता है कि स्टार प्लेयर फेल हो जाता है। वो रन नहीं बना पाता है। फुटबॉलर है तो गोल नहीं कर पाता है। क्योंकि जनता की इतनी आकांक्षाएं इतनी उम्मीदें उन पर होती हैं कि वो प्रेशर में आ जाता है और वो अपना स्वाभाविक प्रदर्शन नहीं कर पाता है। हम अपने स्वाभाविक कर्म नहीं कर पाते अगर हम दबाव में आ जाएं। दबाव क्यों होता है हमारे अंदर, हम दबाव में क्यों आ जाते हैं जब हम परिणामों के बारे में सोचने लगते हैं। जब हम सोचते हैं कि हम जीतेंगे नहीं जीतेंगे, हम हारेंगे नहीं हारेंगे, अगर हार गए तो क्या होगा लोग हमें क्या कहेंगे। रणभूमि में भी अर्जुन इस तरह के दबाव में थे।
दरअसल हमारे शरीर का हमारे मन का बड़ा गहरा संबंध है। जब हमारे मन में तनाव आ जाता है हम डर जाते हैं। हम अवसाद की स्थिति में होते है तो हमारा शरीर भी शिथिल पड़ जाता है। उसमें जान सी नहीं रहती। इसी तरह से जब हमारे शरीर में कष्ट रहता है तो हमे कहीं मन नहीं लगता है। तन और मन का संबंध बड़ा अद्वितीय है ये एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। तन और मन के संबंध के कैसे मजबूत बनाया जाए। मन को किस तरह से मजबूत बनाया जाए कि ये विपरीत परिस्थितियों में भी न झुके न मुड़े। अगर भगवान कृष्ण अर्जुन के साथ नहीं होते तो शायद युद्ध प्रारंभ होने से पहले ही अर्जुन युद्ध से चले जाते और खत्म हो जाता।
हमारे जीवन में एक गुरु का होना जरूरी है जो हमें बताएं कि हमें क्या करना है क्योंकि परिस्थितियां विपरीत आएंगी। हम कितना भी अनुमान क्यों न लगा लें लेकिन उससे कई गुना ज्यादा विपरीत परिस्थितियां आएंगी। बड़े-बड़े योजना बनाने वाले भी फेल हो जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमें हमारा गुरु ही इससे निकलने का मार्ग बतलाता है। अर्जुन की समस्या आज हर युवा की समस्या है। हर युवा को लग रहा है कि हम इस जीवन का किस तरह से जीएंगे। हमारी नौकरी कैसे लगेगी। हम किस तरह से अपने बिजनेस में सफल होंगे। किस तरह से मैं आईआईटी क्वालीफाई कर सकेंगे किस तरह से मैं यूपीएससी क्वालीफाई कर सकूंगा। एक खिलाड़ी सोचता है किस तरह से टीम में मेरा स्थान हो पाएगा। बहुत सारे युवा अवसाद में चले जाते हैं बहुत सारे युवा आत्महत्या कर लेते हैं।