ॐलोक आश्रम: ईश्वर तक पहुंचने का सबसे सुगम रास्ता कौन सा है? भाग-2

आपको अपने अंदर की शक्तियां जागृत करनी होगी। अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है। ज्ञान क्या है कि आप ध्यान लगाकर बैठो, ध्यान के लिए बैठो और आपको संसार का ज्ञान हो।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

आपको अपने अंदर की शक्तियां जागृत करनी होगी। अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है। ज्ञान क्या है कि आप ध्यान लगाकर बैठो, ध्यान के लिए बैठो और आपको संसार का ज्ञान हो। केवल संसार की बाह्य वस्तुओं को आपको नहीं प्राप्त करना है बल्कि परमपिता परमात्मा की ओर आपको जाना है उस दिशा में आपको बढ़ना है। आपको अपने चैतन्य स्वरूप को अंदर खोजना है। अपनी अन्तर्रात्मा को अपने चित्त को निर्मल करना है। इस बात का अगर आपको ज्ञान है और अभ्यास से आप आगे बढ़ रहे हो तो वह श्रेष्ठ है। अगर आपको सत और असत का ज्ञान है।

सत क्या है असत क्या है। सही क्या है गलत क्या है। इनका ज्ञान है आपको और आप ध्यान कर रहे हो तो ज्ञान और अभ्यास से यह ध्यान श्रेष्ठ है। क्योंकि ध्यान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा आप परमात्मा के रास्ते पर आगे जाते हो। ध्यान आपकी शक्तियों का जागरण है। ध्यान से आपके अंदर की शक्तियां जागृत हो जाती हैं। ध्यान से आपके शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है। जब आप ध्यान में होते हो तो समस्त संसार से दूर होते हो। अभ्यास उसके लिए तैयारी है। पहले तो आप अभ्यास करते हो फिर उस अभ्यास का जो परिणाम होता है उसका उपयोग करते हो वह ज्ञान की अवस्था आती है। उसका जब उपयोग करने लगते हो तब ध्यान की अवस्था आती है और ध्यान करते-करते एकाग्रचित होते-होते, तल्लीन होते-होते आप समाधि की ओर बढ़ने लगते हो। वह ध्यान की अवस्था है जब आप ईश्वर का ध्यान करते हो। ध्यान से कर्म फलों का त्याग श्रेष्ठ है। व्यक्ति जो कुछ भी कर्म करता है वो फल प्राप्ति के लिए कर्म करता है। आप कितनी भी कोशिश कर लो फलों से आपको मोह नहीं छूट सकता।

फलों की इच्छा के बिना आप कोई काम कर ही नहीं सकते। यह अवस्था तभी आती है जब आप फल से असंतृप्त हो जाते हो। फल से आपका कोई रिश्ता नहीं रहता। जब आप भगवदप्राप्ति की अवस्था तक पहुंच जाते हो, भगवान की प्राप्ति की अवस्था आती है तो वही अवस्था आपकी होती है। अगर एक भक्त है वह भगवान की पूजा करता है कि हे भगवान हमें पास करा दो। हमें अच्छे नंबरों से पास करा दो। हमारा यहां एडमिशन दिलवा दो। हे प्रभु कुछ धन की प्राप्ति हो जाए। हे प्रभु नौकरी लग जाए। हे प्रभु बेटे की शादी हो जाए। मुझे बहुत सारी जमीन-जायदाद मिल जाएंष मुझे अपार संपत्ति हासिल हजाएं, संसार की सारी सुख-सुविधाएं मुझे मिल जाएं, बहुत इस प्रकार की इच्छाएं हैं जिसको मन में रखकर लोग तरह-तरह की तीर्थयात्राओं में जाते हैं और तरह-तरह की मन्नत मांगते हैं। दुर्गम पहाड़ों और नदियो को पार कर भगवान के दर्शन करने पहुंचते हैं और अपने मन की मुरादें उस भगवान से मांगते हैं।

मनुष्य के अंदर ये इच्छा रहती है ये कामना रहती है कि मैं इतने कष्ट उठाकर तीर्थ करके भगवान के पास आया तो भगवान मेरी हर मुरादें पूरी करेंगे। इस तरह की भक्ति बहुत ही सकाम और बहुत छोटी भक्ति है। जब व्यक्ति इस भक्ति से ऊपर उठता है तब वो प्रभु की कृपा चाहता है इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहता है। वह प्रभु की कृपा चाहता है और उसे भक्ति में आनंद आने लगता है। वह उस आनंद का उपभोग करता है। इससे भी परे चले जाता है व्यक्ति। वह कुछ चाहता ही नहीं। भक्ति में सराबोर हो जाता है उसे अपने आप की भी सुध नहीं रहती। यही निष्काम भक्ति है। इसी तरह से जब व्यक्ति ध्यान लगाता है उसी समय वह ध्यान के द्वारा भगवान को पाना चाहता है। फल प्राप्ति की इच्छा होती है। वह फल प्राप्ति के रूप में भगवद की प्राप्ति भगवद का साक्षात्कार चाहता है। वह भी कामना है। ईश्वर को पाने की इच्छा भी अपने आप में एक इच्छा है। वह कामना है लेकिन उस कामना का भी परित्याग आवश्यक है। ध्यान व्यक्ति लगाता रहता है और धीरे-धीरे समाधि की अवस्था में पहुंचता है और निर्वीक समाधि की अवस्था में पहुंचता है और सबकुछ भूल जाता है वह अपने आप को भी भूल जाता है।

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17 December 2022, 06:30 PM IST

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