ॐलोक आश्रम: ईश्वर तक पहुंचने का सबसे सुगम रास्ता कौन सा है? भाग-3

उस समय वो जो आनंद का अनुभव करने लगता है वह एक अलग तरह का आनंद होता है और उस अवस्था में पहुंचने के बाद न तो कोई इच्छा रहती है और न कोई विचार रहता है। वह अवस्था पहुंचती है।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

ॐलोक आश्रम: उस समय वो जो आनंद का अनुभव करने लगता है वह एक अलग तरह का आनंद होता है और उस अवस्था में पहुंचने के बाद न तो कोई इच्छा रहती है और न कोई विचार रहता है। वह अवस्था पहुंचती है। उसी तरह से वही अवस्था में पहुंचता है जब व्यक्ति अपने सारे कर्मों को प्रभु के चरणों में समर्पित करके चलता रहता है। धीरे-धीरे वो प्रभु के प्रति ही अनन्य रूप से समर्पित हो जाता है और उस अवस्था तक पहुंचता है जब स्वभावत: वह कर्मों से विलुप्त हो जाता है। फल की इच्छा ही नहीं रह जाती क्योंकि वह कोई कर्म करता ही नहीं है। कर्म होते जाते हैं। जिस तरह पानी अपने कर्म करके नहीं बहता उसका स्वभाव ही है बहना और वह बहता चला जाता है। जैसे हवा अपने आप बहती चली जाती है वो कोई इसके लिए प्रयास नहीं करती है।

बादल को कोई नहीं कहता कि अब तुम गरजो। गरजना उसके स्वभाव में है, उसका स्वभाव है। इसी तरह व्यक्ति कर्म करता नहीं है उस समय उससे कर्म होते जाते हैं। चूंकि स्थित है जीवित है इसलिए कर्म हो रहे हैं और उनमें वह कोई कोशिश नहीं कर रहा है। उसकी कोई इच्छा नहीं लगा रहा है उसका कोई प्रयोजन नहीं है कर्म करने का। यह अवस्था आ जाती है और ये श्रेष्ठतम अवस्था है। इस अवस्था की ओर आप जितनी दूर बढ़ते जाओगे आप जीवन में श्रेष्ठता के प्राप्त करते जाओगे। आप देखोगे कि इस संसार में जो निम्नतम बिंदु पर लोग दिखाई दे रहे हैं वो कर्मों से उतने ही ज्यादा लिप्त हैं। इच्छाओं-वासनाओं में उतने ही ज्यादा जकड़े हुए हैं। जो आपको किसी भी क्षेत्र में उच्चतम बिंदु पर दिखाई दे रहे हैं लंबे समय से उनको आप देखोगे कि उन्होंने एक तटस्थता की स्थिति प्राप्त कर ली है। उन्होंन अपने मस्तिष्क को ऐसी अवस्था में स्थिर कर लिया है कि परिणामों से वो काफी हद तक तटस्थ हो गए हैं।

जब आप अपनी चेतना का विकास करते जाते हो तब आप इस अवस्था में पहुंच जाते हो। इस संसार में किसकी कौन सी अवस्था रहेगी ये निर्धारित करता है कि उसके मस्तिष्क की अवस्था कैसी है उसकी चेतना की अवस्था क्या है। एक बच्चा चाहे कितना ही गरीब है। आपने देखा होगा कि रेलवे स्टेशन पर कोई कुली है। कोई रिक्शा चलाता है। कोई ऑटो चलाता है तो कई सब्जी बेचता है। उसका बेटा आईआईटी क्वालिफाई कर जाता है, उसका बेटा मेडिकल पास कर डाक्टर बन जाता है। उसके बेटे का चयन सेना में हो जाता है, उसका बेटा यूपीएससी पास कर आईएएस बन जाता है और कोई डीएम तो कोई एसपी बन जाता है क्योंकि वो निरंतर अपने परिश्रम से अपने मेहनत से चेतना के स्तर को उन्नत कर लेता है। वो पढ़ाई-लिखाई कर रहा है। सारे विरोधों के बावजूद, सारी सांसारिक बाधाओं के बावजूद वो अपनी चेतना को विकसित करने में लगा हुआ है और वह सफलता प्राप्त कर लेता है।

आपको जीवन में भी सफलता प्राप्त करनी है, लौकिक जीवन में भी सफलता प्राप्त करनी है तो आपको अपनी चेतना का स्तर बढ़ाना पड़ेगा। आपको एकाग्रचित्तता लानी पड़ेगी। एकाग्रचित्तता वैसे भी आती है। आप काम कर रहे हो अपने ध्यान को एक जगह केन्द्रित करोगे तो वैसे भी आ जाएगी लेकिन अगर आप आसन-प्राणायाम का अभ्यास कर रहे हो तो आसानी से आ सकती है। यह एक अवस्था आ गई है इसके बाद ध्यान की अवस्था में और ऊपर उठो फिर उसके बाद कर्म फलों का आप आत्यंतिक परित्याग कर दो। जो परमात्मा को चाहने वाले हैं। परमात्मा की अवस्था में पहुंचने वाले हैं वो फलों का आत्यंतिक त्याग करके निर्विकल्पक समाधि के द्वारा साक्षात्कार ब्रह्म का कर लेते हैं। ईश्वर का साक्षात्कार कर लेते हैं। वह निर्विकल्पक और परम अवस्था आ जाती है जिसे भगवान कृष्ण कहते हैं कि वो परम और श्रेष्ठ अवस्था है। वह ईश्वरत्व की अवस्था है वह भगवान की अवस्था है। ऐसी अवस्था प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य है। हर व्यक्ति को इसी दिशा में अग्रसर होना चाहिए। इस जीवन में जो जितना प्राप्त कर सके उतना ही उसके लिए वह श्रेष्ठ है।

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18 December 2022, 04:52 PM IST

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