ॐलोक आश्रम: भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध क्यों होने दिया? भाग-1
हम भगवद गीता के उस पड़ाव पर हैं जहां अर्जुन मोह में ग्रस्त होकर बहुत तरह के प्रश्न पूछ चुके हैं भगवान कृष्ण से और ये कह रहे हैं कि इस युद्ध को करने से क्या फायदा।
हम भगवद गीता के उस पड़ाव पर हैं जहां अर्जुन मोह में ग्रस्त होकर बहुत तरह के प्रश्न पूछ चुके हैं भगवान कृष्ण से और ये कह रहे हैं कि इस युद्ध को करने से क्या फायदा। जहां मैं लोगों को मारूंगा, अपने रिश्तेदारों को मारूंगा, बच्चे अनाथ हो जाएंगे, महिलाएं विधवा हो जाएंगी। समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा और इतनी तबाही होगी। इस तबाही को करके मुझे क्या मिलेगा। राज्य मिलेगा और उस राज्य के लिए मैं युद्ध करूं। इससे अच्छा तो मैं कहीं भिक्षा मांग लू और भीख मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर लूं कम से कम इतनी मारकाट तो बच जाएगी। ये तर्क अर्जुन दे रहे हैं और ये तर्क आज भी हम देखें तो ये ऊपर से देखने में बड़े अच्छे लग रहे हैं। चलो दुर्योधन लालची था तो दे देते उसको राज्य।
अगर आपके पांच लोगों के अभावपूर्ण जीवन व्यतीत कर लेने से इतनी बड़ी मारकाट रूक सकती है तो क्यों न यह मारकाट रोक दी। भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध क्यों होने दिया ये एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। प्रश्न इस बात का नहीं था कि लोग मरेंगे या नहीं मरेंगे, बात ये है कि हमें अपने विरुद्ध हुए अत्याचारों का प्रतिकार करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। हमें अन्याय का विरोध करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। अगर धर्म की मांग युद्ध हो तो हमें युद्ध करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। हमें अन्याय सहना चाहिए या नहीं सहना चाहिए, प्रश्न यह महत्वपूर्ण था। अगर हमारे शांत रह जाने से या भाग जाने से अन्याय जीत जाता है तो होगा क्या? आज अगर सौ लोगों पर अन्याय हुआ है तो कल वो अन्याय हजार लोगों पर हो जाएगा वो हजार भी सरेंडर कर देंगे तो लाख लोगों पर हो जाएगा, लाख भी सरेंडर कर देंगे तो करोड़ों पर हो जाएगा और उस अत्याचार और अन्याय की सीमा बढ़ती रहेगी। किसी न किसी लेवल पर उसको रोकना जरूरी है। पहली बात तो ये है दूसरी बात भगवान कृष्ण इसको तार्किक रूप से बता रहे हैं कि वास्तव में कितनी बच्चों वाली बातें अर्जुन कर रहा था।
भगवान कृष्ण बता रहे हैं अर्जुन को। भगवान कृष्ण पहले मंद-मंद मुस्कुराए और फिर अर्जुन से बात करने लगे। भगवान कृष्ण को लग रहा है कि किस तरह अर्जुन विपरीत सोच रहा है। वे अर्जुन से कहते हैं तुम्हें यह मोह कैसे विपरीत जगह पर हो गया। ये तुम्हारी बेइज्जती कराने वाला है। अगर तुम यह युद्ध नहीं करोगे तो लोग यह मानेंगे कि अर्जुन युद्ध से डरकर भाग गया था। जो आज तुम्हें महारथी कह रहे हैं कल वो भी तुम्हें कायर कहकर तुम्हारा प्रतिकार करेंगे। तुम्हारा अपमान करेंगे।
हे पार्थ, हे अर्जुन, नपुंसक मत बनो। जो हृदय की दुर्बलता है उसको छोड़ो और खड़े हो जाओ। इन वचनों में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि ये जो तुम ज्ञान की बातें कर रहे हो, जो विश्व शांति की बातें तुम लगाए हुए हो। ये तुम्हारी कोई ज्ञान की बातें नहीं हैं तुम डर रहे हो। तुम नपुंसकता को प्राप्त करना चाह रहे हैं तुम भाग रहे हो तुम वर्तमान परिस्थितियों से भाग रहे हो। ये ना तो तुम्हें शोभा देता और न ये तुम्हारे लिए श्रेयस्कर है। ये तुम्हें बिल्कुल नहीं करना चाहिए। भगवान कृष्ण ने ये यथार्य़ पहले अर्जुन के सामने रखा कि तुम मोह से ग्रस्त हो गए हो, तुम नपुंसकों की तरह बातें कर रहे हो, तुम डर गए हो। अब वो इसकी तात्विक विवेचना कर रहे हैं।