ॐलोक आश्रम: हम श्राद्ध क्यों मनाते हैं?

हमें अपनी संस्कृति को समझना आवश्यक है। भारतीय संस्कृति बहुत प्राचीन है और इस संस्कृति में सभी तत्वों का समावेश किया गया है। पाश्चात्य संस्कृति अगर आप देखें तो आज बात उठ रही है पशु अधिकारों की

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हमें अपनी संस्कृति को समझना आवश्यक है। भारतीय संस्कृति बहुत प्राचीन है और इस संस्कृति में सभी तत्वों का समावेश किया गया है। पाश्चात्य संस्कृति अगर आप देखें तो आज बात उठ रही है पशु अधिकारों की। सस्टेनेबल डेवलपमेंट की, वृक्षों की, नदियों की। वहां वृद्धों के लिए आज ओल्ड एज होम्स बनाए जा रहे हैं। भारतीय संस्कृति के जो निर्माता थे जो ऋषि थे जो तत्वदर्शी थे उन्होंने इस संस्कृति के तारों को आपस में इस तरह से गूंथ दिया कि भविष्य में इस तरह की समस्याएं नहीं आएं। इस तरह का विकास हो, मानव इस तरह का जीवन जीए कि सबलोग खुश रहें। मनुष्य खुश रहे। जीव-जन्तु खुश रहें। प्रकृति खुश रहे। एक उल्लास का माहौल पूरे समाज में बना रहे।

श्राद्ध जैसा की नाम से ही स्पष्ट है एक श्रद्धा भाव है हमारे पूर्वजों के प्रति। हम जो कुछ भी हैं वो हम अपने पूर्वजों के ही उत्पाद हैं प्रोडक्ट हैं। आज हमारे पास जो संपत्ति है वह पूर्वजों की ही हैं। हम जो कुछ भी हैं हमारे जो भी जींस हैं वो भी हमारे पूर्वजों के ही हैं। हमारे पूर्वजों ने जो मेहनत की, परिश्रम किया उससे जो उनकी जेनेटिकल ग्रोथ हुई वह सब हमारे अंदर परिलक्षित होती है। हर व्यक्ति को अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। आप समाज में देखें आपको दो तरह के व्यक्ति मिलेंगे। एक व्यक्ति वैसा मिलेगा जिसे जन्म के साथ ही उनके माता-पिता उनके लिए अच्छी-खासी संपत्ति छोड़कर गए, अच्छे खासे संस्कार उनको देकर गए। वहीं दूसरी ओर ऐसे लोग मिलेंगे जिनके लिए उनके पूर्वज उनके लिए कुछ छोड़कर नहीं गए।

कई लोग बेसहारा है कई लोगों के पास बताने के लिए कोई नहीं है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। उनकी रक्षा करने वाला भी कोई नहीं है वह समाज में इसी तरह से घूम रहे हैं। इन दो परिस्थितियों में अगर हमें चुनना हो तो हम उस परिस्थिति को चुनेंगे जहां पूर्वज हमारे लिए बहुत कुछ संपत्ति भी छोड़कर जाएं, संस्कार भी छोड़कर जाएं। हम खुद भी चाहते हैं कि हमारा अगर बच्चा है तो हम उसको सुख-सुविधाएं दें। उसे विकास का अवसर दें उसे अच्छी शिक्षा दें। वह स्वस्थ रहे। वह विकसित हो। ये तभी संभव है जब हम भी अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें। ये समाज में, व्यक्ति में कुछ गुण होते हैं जिन गुणों को समाज एप्रीसियेट करता है वो गुण धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं और जिन गुणों को समाज तिरस्कृत करता है वो गुण खत्म होते जाते हैं।

ये समाज में लोगों के जीने का, समाज में गुणों की वृद्धि करने का ये तरीका है। आप केवल कानून बना दें, कानून लिख दें, जेल का प्रोविजन कर दें, सजा और पेनेल्टी का प्रोविजन कर दें तो ऐसा करने से समस्या खत्म नहीं होगी। भारत में दो कानून एक साथ आए। सती प्रथा का अंत और दहेज प्रथा का अंत। सती प्रथा के अंत का कानून तुरंत लागू हो गया और खत्म हो गई सती प्रथा तुरंत ही। उसके पहले भी बहुत कम थी लेकिन दहेज निरोध कानून लाने  बावजूद दहेज प्रथा खत्म नहीं हुई। क्यों, क्योंकि जबतक सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलेगी तब कानून बना देने से समस्या का निदान नहीं होगा। श्राद्ध वो सामाजिक स्वीकृति है कि हमें अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव रखना है। साल में 15 दिन ये निश्चित किए गए हैं और अगर आप ये 15 दिनों को देखेंगे तो ये 15 दिन ऐसे हैं कि जिसमें प्राचीन भारत के व्यक्ति लगभग खाली होते थे। यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां पक्षियों का भी कल्याण हो जाता है। मनुष्य थोड़ा-थोड़ा सामान निकालकर जो पितरों के लिए अर्पण करते हैं वस्तुत: उससे हमारे साथ पर्यावरण में मौजूद बहुत सारे पशु-पक्षी ऐसे हैं, कीट-पतंगे ऐसे हैं। हमारे जो चीटियां हैं चीटें हैं इन सबको भोजन मिल जाता है। इन सबका भी कल्याण हो जाता है। जो सर्वसमावेशी संस्कृति है आज इसपर रिसर्च चल रही है, इसपर बात हो रही है कि सबका विकास जरूरी है।

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19 December 2022, 05:26 PM IST

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