ॐलोक आश्रम: भक्ति मार्ग क्यों श्रेष्ठ है? भाग-1
भगवदगीता में ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग तीनों मार्ग बताए गए हैं लेकिन जो सबसे अच्छा मार्ग उत्तम मार्ग भक्ति मार्ग है। कोई भी व्यक्ति है जो प्रभु के पास जाना चाहता है। इस जीवन में सफलता चाहता है परलौकिक जीवन में सफलता चाहता है अथवा मोक्ष ही चाहता है कुछ भी वो जीवन में नहीं चाहता है।
भगवदगीता में ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग तीनों मार्ग बताए गए हैं लेकिन जो सबसे अच्छा मार्ग उत्तम मार्ग भक्ति मार्ग है। कोई भी व्यक्ति है जो प्रभु के पास जाना चाहता है। इस जीवन में सफलता चाहता है परलौकिक जीवन में सफलता चाहता है अथवा मोक्ष ही चाहता है कुछ भी वो जीवन में नहीं चाहता है। उसे केवल एक ही प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु हमें भक्ति दो। भक्त होना एक ओर तो सबसे आसान है और दूसरी ओर सबसे कठिन काम भी है क्योंकि भक्त किसी न किसी आकांक्षा से जुड़ा होता है। कुछ न कुछ भक्त को चाहिए होता है। जब आप किसी आकांक्षा से जुड़े है कुछ आपको चाहिए। वह भक्ति नहीं है वह प्रेम नहीं है। भक्ति प्रेम का विराट स्वरूप है। प्रेम बदले में कुछ नहीं चाहता। असली भक्ति वही है जो बदले में कुछ न चाहे। अगर आपने बदले में कुछ भी मांग लिया तो वो सौदा हो गया वह भक्ति नहीं हुई।
भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि किस तरह का भक्त मुझे प्रिय है। जिसे कोई अपेक्षा नहीं है जो हर ओर सिर्फ और सिर्फ पवित्रता ही देख रहा है, अच्छाई ही देख रहा है। जो उदासीन है। अच्छा है बुरा है वो सबसे उदासीन है। निष्पक्ष है। जिसकी व्यथाएं जा चुकी हैं। कोई शोक नहीं है उसे। उसके पास कोई दुख कोई संताप नहीं है। किसी चीज का कोई आरंभ नहीं है। किसी चीज की कोई इच्छा नहीं रह गई है। ऐसा भक्त मुझे प्रिय है। जो भी व्यक्ति कोई अपेक्षा लेकर किसी के पास जाता है, किसी की भक्ति करता है किसी से प्रेम करता है उसके जीवन में दुखों का आना तय हो गया है। उसके जीवन में असफलता आनी तय हो गई है क्योंकि उसका प्रेम उसकी भक्ति उसकी अपेक्षा के पीछे चल रही है। अगर उसकी अपेक्षा पूरी होती है तो वह भक्त है उसे प्रेम है। उसे प्रेम वास्तव में नहीं है। उसे प्रेम अपनी अपेक्षा से है। वो अपेक्षा पूरी करने के लिए वह प्रेम कर रहा है।
अपेक्षा पूरी होने के लिए वो भक्ति कर रहा है। जैसे ही उसकी अपेक्षा पूरी हुई वो विरत हो गया। वह भक्ति भक्ति नहीं है। सच्चा भक्त दिल में कोई अपेक्षा नहीं रखेगा। मजा आपको भक्ति में ही आएगा। अगर आपको भजन करने में मजा आ रहा है। भगवान का ध्यान करने में मजा आ रहा है। आपको भगवान के साथ तल्लीन होने में मजा आ रहा है तभी आप भक्त हैं। आप किसी चीज के लिए भगवान के पास जा रहे हैं और वो चीज चाह रहे हैं वो सफलता चाह रहे हैं और उसके लिए प्रेम कर रहे हैं उसके लिए भक्ति कर रहे हैं। उसके लिए चढ़ावा चढ़ा रहे हैं या उसके लिए भजन गा रहे हैं तब आप प्रभु के आनंद को प्राप्त नहीं हो सकते। आपको ईश्वरीय आनंद प्राप्त नहीं हो सकता। तब अगर आपकी वो अपेक्षा पूरी होगी तो एक लौकिक सुख थोड़ी देर के लिए मिलेगा। अपेक्षा पूरी नहीं हुई तो आप फिर दुखी हो जाओगे। सर्वत्र पवित्रता देखने वाला, सर्वत्र कल्याण देखने वाला, अच्छाइयों को देखने वाला ऐसा व्यक्ति।
हम जीवन को दो तरह देखते हैं अच्छा और बुरा। एक गिलास है आधा भरा हुआ। उसको हम दो तरह से देखेंगे। वो आधा भरा है आधा खाली है। कोई व्यक्ति अपने जीवन में आने वाले दुखों के लिए ईश्वर को कोसता है या ईश्वर से पूछता है कि हे भगवान मुझे इतना दुख क्यों दिया। इस दुख के लिए मुझे ही क्यों चुना। उसी परिस्थिति में रहने वाला व्यक्ति ईश्वर को धन्यवाद देता है कि प्रभु मुझे इतना सुख तो दिया। एक व्यक्ति है जिसके एक हाथ नहीं है वो ईश्वर को धन्यवाद देता है कि मेरा एक्सीडेंट हुआ उसमें मेरा एक हाथ कट गया, मेरे दोनों हाथ कट सकते थे लेकिन एक ही कटा। हे प्रभु कम से कम तूने मेरा एक हाथ तो सुरक्षित रखा। दूसरा व्यक्ति यह सोच सकता है कि मेरा एक हाथ कट गया। मैं ईश्वर की इतनी पूजा करता हूं। बाकी लोगों के दो हाथ हैं मेरे एक ही हाथ हैं।