ॐलोक आश्रम: भक्ति मार्ग क्यों श्रेष्ठ है? भाग-3
भगवान कह रहे हैं कि अगर सच्चा भक्त बनना है। प्रभु के रास्ते में आगे बढ़ना है, जीवन में खुश रहना है तो जीवन को पवित्रता से देखो।
ॐलोक आश्रम: भगवान कह रहे हैं कि अगर सच्चा भक्त बनना है। प्रभु के रास्ते में आगे बढ़ना है, जीवन में खुश रहना है तो जीवन को पवित्रता से देखो। जीवन को जीने के ढंग में सकारात्मकता लाओ। जो प्रभु ने दिया है उसके लिए प्रभु को धन्यवाद दो। जीवन में उदासीन होना जरूरी है। जीवन में तटस्थ होना जरूरी है। हम जीवन में दो भावों से घिरे होते हैं। दो तरह के लोगों से घिरे होते हैं। एक को हम अपना हितैषी मानते हैं दूसरे को हम अपना शत्रु मानते हैं। जो हितैषी व्यक्ति होता है उस व्यक्ति के लिए हम नियमों के विरुद्ध जाकर कुछ भी काम करते हैं और जो हमारा शत्रुता है उसके लिए हम नियमों के विरुद्ध जाकर हम उसका बुरा करने में लग जाते हैं। इस तरह से हम इस संसार की वासनाओं के बीच फंस जाते हैं।
हम अच्छाई और बुराई के बीच फंस जाते हैं। जो हमें प्रिय है हम उसके लिए काम करने लग जाते हैं और जो हमें अप्रिय है हम उसके विरोध में काम करने लगते हैं। हम किसी के पक्ष में और किसी के विरोध में इस तरह काम करने लगते हैं। जिनके पक्ष में और जिनके विरोध में हम काम कर रहे होते हैं उसका प्रतिफल भी हमें उसी रूप में प्राप्त होता है। परिणामस्वरूप यह होता है कि बहुत सारे लोग हमारे विरोधी बन जाते हैं। बहुत सारे लोग हमारे समर्थक बन जाते हैं।
कई बार ऐसा भी होता है कि जिसे हम विरोध मान रहे होते हैं वह विरोधी नहीं होता है और हम एक ऐसे चक्र में फंस जाते हैं। इस चक्र से बचने का तरीका है कि आप उदासीन रहें। उदासीन का तात्पर्य यह है कि आपका किसी से कोई विरोध नहीं है और किसी से कोई विशेष प्रेम भी नहीं है। अगर विरोध नहीं है तो किसी का भी आप बुरा नहीं करेंगे नियमों के विरुद्ध जाकर। किसी से प्रेम नहीं है तो नियमों के विरुद्ध जाकर किसी का समर्थन भी नहीं करेंगे। आपको अगर प्रमोशन देना है तो आप योग्य उम्मीदवार को प्रमोशन देंगे यह नहीं देखेंगे कि मेरे पक्ष का कौन है। अगर आपको किसी के विरुद्ध काम करना पड़ जाए तो जो सबसे नकारा और निकम्मा व्यक्ति जो है आप उसके विरुद्ध काम करेंगे। उस समय यह नहीं देखेंगे कि यह तो अपना आदमी है इसको बचा लो और यह दूसरे पाले का है इसको निपटा दो।