Badrinath Dham: 'जब तक झोड़ू सांगला ना खाए, नारायण नहीं लगाते भोग'.... बद्रीनाथ धाम की अनोखी परंपरा जान कर रह जाएंगे हैरान!
बद्रीनाथ धाम में भगवान को दोपहर का खाना देने से पहले एक अजीब परंपरा निभाई जाती है — पहले कॉकरोच, गाय और पक्षियों को भोग लगाया जाता है फिर भगवान को राजभोग दिया जाता है. सदियों से चलती आ रही ये परंपरा ना सिर्फ हैरान करती है बल्कि इसके पीछे की सोच भी बड़ी गहरी है.

Badrinath Dham: जब रसोई में कॉकरोच दिख जाए तो हम तुरंत उसे भगाने की कोशिश करते हैं. लेकिन उत्तराखंड के प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम में इन छोटे से जीवों को सम्मानपूर्वक भगवान के भोजन से पहले भोग चढ़ाया जाता है. जी हां, बद्रीनाथ में भगवान नारायण को दोपहर का राजभोग चढ़ाने से पहले कॉकरोच (स्थानीय भाषा में झोड़ू सांगला), गाय और पक्षियों को पहले भोग लगाया जाता है. यह परंपरा न सिर्फ अनोखी है, बल्कि सदियों पुरानी धार्मिक आस्था और जीवों के प्रति करुणा का भी संदेश देती है.
कॉकरोचों के लिए भी चढ़ता है भोग
बद्रीनाथ मंदिर में हर दिन भगवान विष्णु को चार बार अलग-अलग भोग अर्पित किए जाते हैं — सुबह पंचमेवा, फिर बाल भोग, दोपहर में राजभोग और शाम को दूध-भात. लेकिन दोपहर के भोग से पहले सबसे पहले भोग चढ़ाया जाता है मंदिर के पास रहने वाले कॉकरोचों को, जिन्हें तप्तकुंड के पास गरुड़ कुटी में विशेष रूप से चावल का भोग दिया जाता है.
गाय और पक्षियों को भी मिलता है पहला हिस्सा
इसी परंपरा के तहत मंदिर परिसर में मौजूद गायों और पक्षियों को भी पहले भोजन कराया जाता है. तब जाकर भगवान नारायण को उनका भव्य राजभोग अर्पित किया जाता है जिसमें केसर चावल, दाल-चावल और लड्डू शामिल होते हैं.
क्यों निभाई जाती है यह परंपरा?
पूर्व धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के अनुसार, यह परंपरा भगवान नारायण की 'सर्वजीव तृप्ति' की भावना से जुड़ी है. उनका मानना है कि भगवान तब तक भोजन ग्रहण नहीं करते जब तक उनके आस-पास रहने वाले जीव-जंतु संतुष्ट न हो जाएं.
शंकराचार्य से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में जब बद्रीनाथ धाम की पुनर्स्थापना की थी, तब उन्होंने भगवान विष्णु की मूर्ति को तप्तकुंड से निकालकर गरुड़ शिला के नीचे स्थापित किया था. उसी स्थान पर आज भी कॉकरोच निवास करते हैं और यहीं से इस अद्भुत परंपरा की शुरुआत मानी जाती है.
आस्था में विज्ञान की झलक
जहां एक ओर यह परंपरा धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद खास है, वहीं यह संदेश भी देती है कि प्रकृति में हर जीव का सम्मान जरूरी है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा. बद्रीनाथ की यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर सिर्फ मंदिरों में नहीं, हर जीव में बसते हैं.
बद्रीनाथ धाम की यह परंपरा आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में धैर्य, करुणा और समता का अनोखा उदाहरण है. कॉकरोच से लेकर गाय और पक्षियों तक, जब सभी को सम्मान मिलता है, तभी भगवान का भोग पूरा माना जाता है.