बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन में भीतरघात, सहनी और राजद के बीच टकराव
वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने बिहार महागठबंधन में डिप्टी सीएम पद और 60 सीटों की मांग की है, जिसे राजद ने खारिज कर दिया है. इस विवाद से महागठबंधन की एकता पर सवाल उठे हैं और आगामी चुनाव की रणनीति प्रभावित हो सकती है.

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन की सरकार बनने पर खुद को डिप्टी मुख्यमंत्री बनाने का दावा किया है. उन्होंने कहा है कि महागठबंधन के मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगे, जबकि वे खुद डिप्टी सीएम की भूमिका निभाएंगे. हालांकि, राजद के वरिष्ठ नेता और प्रधान महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी ने मोतिहारी में एक कार्यक्रम के दौरान इस दावे को खारिज कर दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि अभी तक महागठबंधन में किसी पद को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है और यह दावा केवल सहनी की व्यक्तिगत उम्मीदें हैं.
अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा कि कोई भी कुछ भी कह सकता है, क्योंकि यह लोकतंत्र है, लेकिन पदों को लेकर अभी तक कुछ तय नहीं हुआ है. यह बयान महागठबंधन के भीतर नेतृत्व और सीट बंटवारे को लेकर बढ़ती खींचतान की ओर इशारा करता है.
60 सीटों की मांग
मुकेश सहनी की डिप्टी सीएम बनने की मांग के साथ-साथ उन्होंने अपनी पार्टी के लिए 60 सीटों की भी मांग की है, जो राजद और कांग्रेस जैसे बड़े सहयोगियों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है. बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें राजद पहले ही प्रमुख भूमिका निभाना चाहती है. इसलिए, वीआईपी की यह मांग गठबंधन की एकता को कमजोर कर सकती है. राजनीतिक जानकार इसे सहनी की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा मानते हैं, जिससे वे अधिक सीटें पाने की कोशिश कर रहे हैं.
वीआईपी का प्रभाव मुख्य रूप से मछुआरा समुदाय और कुछ पिछड़ी जातियों तक सीमित है. 2020 के चुनावों में वीआईपी ने चार सीटें जीती थीं, लेकिन तब वे एनडीए के साथ थे. अब महागठबंधन में शामिल होकर सहनी अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करना चाहते हैं. हालांकि, 60 सीटों का दावा असंभव लगता है क्योंकि महागठबंधन में छह पार्टियां शामिल हैं और राजद-कांग्रेस जैसे बड़े दल मिलकर 150 से ज्यादा सीटें मांग सकते हैं.
महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल
Mukesh Sahni
मुकेश सहनी की मांग और राजद के इंकार ने महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. बिहार में एनडीए के खिलाफ मजबूत विपक्षी गठबंधन की जरूरत है, लेकिन अंदरूनी मतभेद गठबंधन को कमजोर कर सकते हैं. कांग्रेस और वाम दलों की भी अपनी सीट मांगें हैं, जो स्थिति को और जटिल बना रही हैं.
2025 के चुनाव से पहले महागठबंधन को नेतृत्व और सीट बंटवारे के विवाद को सुलझाना होगा ताकि गठबंधन में सामंजस्य बना रहे. सहनी की मांग को पूरी तरह नजरअंदाज करना भी जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि उनका मछुआरा समुदाय में खास प्रभाव है. दूसरी ओर, उन्हें अधिक अधिकार देने से कांग्रेस और अन्य सहयोगियों में असंतोष बढ़ सकता है. इन सबका असर महागठबंधन की चुनावी रणनीति और मजबूती पर पड़ेगा.


