दिल्ली में कांग्रेस के चुनाव प्रचार की ढीली पकड़, क्या आखिरी पल में करेगी पार्टी धमाल?
टॉप गियर लगाने के बाद कांग्रेस अब फिर न्यूट्रल गियर में नज़र आ रही है. खराब स्वास्थ की वजह से राहुल गांधी का अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली में प्रचार कैंसिल हुआ. इसके बाद 22-24 जनवरी को इंद्रलोक, मुस्तफाबाद और मादीपुर में होने वाली तीन रैलियां भी कैंसिल हो गईं. हालांकि पहले भी ऐसा हो चुका है कि अगर किसी रैली में राहुल गांधी नहीं पहुंच पाए तो प्रियंका गांधी ने भरपाई कर दी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. रैली में न प्रियंका गांधी नजर आईं न कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने शुरू में आम आदमी पार्टी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया था. इस दौरान कांग्रेस ने दिल्ली के सियासी माहौल में बीजेपी और AAP के खिलाफ मोर्चा खोला था. राहुल गांधी ने सीलमपुर में केजरीवाल पर तीखे हमले किए थे, जिससे यह साफ हो गया था कि कांग्रेस इस चुनाव को गंभीरता से ले रही है.
लेकिन अब कांग्रेस का रवैया थोड़ा बदलता हुआ दिखाई दे रहा है. राहुल गांधी की तबीयत खराब होने की वजह से उन्होंने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ प्रचार नहीं किया और 22-24 जनवरी को होने वाली तीन रैलियां भी कैंसिल हो गईं. हालांकि, प्रियंका गांधी ने पहले भी राहुल गांधी की अनुपस्थिति में उनकी जगह ली थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. ना प्रियंका गांधी नजर आईं, न ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे.
क्या दिल्ली में कांग्रेस का रणनीतिक बदलाव?
सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी दिल्ली कांग्रेस की धीमी गति से भी नाखुश हैं. उन्होंने इस बारे में प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव से बात की है. इसका मतलब है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि दिल्ली कांग्रेस अरविंद केजरीवाल के खिलाफ माहौल बनाने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रही है. मल्लिकार्जुन खड़गे पहले भी कह चुके हैं कि कांग्रेस का स्थानीय संगठन हमेशा पार्टी के शीर्ष नेताओं पर निर्भर रहता है, जो कि ठीक नहीं है.
'तुरुप का इक्का' बचा रही है पार्टी!
कांग्रेस के कुछ नेताओं को यह डर है कि अगर पार्टी ने केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोला और ज्यादा स्टार प्रचारक मैदान में उतारे, तो कहीं पार्टी को हार का सामना न करना पड़े. पार्टी के आंतरिक सर्वे में भी कांग्रेस को ज्यादा सीटें नहीं मिल रही हैं. अगर कांग्रेस हारती है, तो जिम्मेदारी गांधी परिवार पर आ सकती है, और पार्टी इस स्थिति से बचना चाहती है.
क्या लास्ट मोमेंट में पलटेगा खेल?
कांग्रेस अब प्रचार के आखिरी चरण में जोर देने की योजना बना रही है. पार्टी ने सोचा है कि 27 जनवरी के बाद ही अपने बड़े नेताओं को मैदान में उतारेंगे. इसके बाद, पार्टी बैक-टू-बैक रैलियां, डोर-टू-डोर रोड शो और पद यात्राएं करके लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करेगी.
दिल्ली में कांग्रेस की राह कठिन
कांग्रेस के सामने "करो या मरो" की स्थिति आ चुकी है. अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है और आम आदमी पार्टी को रोकने में सफल होती है, तो उस पर सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा देने का आरोप लग सकता है. दूसरी तरफ, अगर कांग्रेस आक्रामक होती है और केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोलने के बावजूद भी हार जाती है, तो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की लोकप्रियता पर सवाल उठ सकते हैं.


