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उत्तराखंड में पिघल रहे ग्लेशियर, लेकिन तेजी से बढ़ रहा एक नया बेनाम ग्लेशियर

Uttarakhand news: मौसम परिवर्तन से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिस वजह से चिंता की स्थिति बनी हुई थी. लेकिन अब उत्तराखंड के चमोली जिले की धौलीगंगा घाटी में दो पुराने ग्लेशियरों के पास एक नया ग्लेशियर मिला है, जो तेजी से बढ़ रहा है. फिलहाल इस ग्लेशियर का कोई नाम नहीं है.

Uttarakhand news: उत्तराखंड के चमोली जिले की धौलीगंगा घाटी में दो पुराने ग्लेशियरों के पास एक नया ग्लेशियर खोजा गया है. ये ग्लेशियर भारत और तिब्बत की सीमा के करीब नीति वैली में स्थित है, जो काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसके क्षेत्रफल की बात करें तो क्षेत्रफल 48 वर्ग किलोमीटर है. ये बेनाम ग्लेशियर रांडोल्फ और रेकाना ग्लेशियर के पास पाया गया है और अबी गामी पर्वत (7354 मीटर) और गणेश पर्वत (6535 मीटर) के बीच लगभग 10 किलोमीटर लंबाई में फैला हुआ है.

सैटेलाइट डेटा से हुई स्टडी

इस नए ग्लेशियर की पहचान और अध्ययन ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. मनीष मेहता, विनीत कुमार, अजय राणा, और गौतम रावत ने किया है. उन्होंने अपने शोध में सैटेलाइट डेटा का उपयोग किया. यह अध्ययन "Manifestations of a glacier surge in central Himalaya using multi‑temporal satellite data" नाम से प्रकाशित हुआ है. अध्ययन में बताया गया कि ये ग्लेशियर "सर्ज" कर रहा है, जिसका अर्थ है कि इसका आकार तेज़ी से बढ़ रहा है.

ग्लेशियर सर्ज के कारण

डॉ. मनीष मेहता ने बताया कि ग्लेशियर सर्ज का मतलब है ग्लेशियर के आकार का अचानक और तेज़ी से बढ़ना. इसकी वजह जानने के लिए उस क्षेत्र में जाना मुश्किल है, लेकिन सैटेलाइट डेटा से इसकी तीन मुख्य वजहें मानी जा सकती हैं.

हाइड्रोलॉजिकल असंतुलन

पानी की पोरोसिटी (झरझरापन) के कारण बर्फ की परतें कमजोर हो जाती हैं और स्थिरता खो देती हैं. इससे बर्फ नीचे की ओर खिसकने लगती है.

थर्मल कंट्रास्ट

ग्लेशियर के नीचे का सतह चिकना और स्लिपरी हो जाता है. इस वजह से ग्लेशियर की ऊपरी परत और निचली परत के बीच लुब्रिकेशन बढ़ जाता है.

सेडिमेंट्री टेर्रेन में चिकनाई

पानी और मिट्टी का मिश्रण गीला और चिकना बन जाता है, जिससे ग्लेशियर की परतें एक-दूसरे पर फिसलने लगती हैं.

ग्लेशियोलॉजिकल डेटा की कमी

वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर सर्ज और जलवायु परिवर्तन के जटिल संबंधों को समझने के लिए जमीन पर ज्यादा डेटा जुटाने की जरूरत है. ग्लेशियरों के आकार और बढ़ने से आसपास के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी मिलती है.

पर्यावरण संरक्षण में मददगार

नए ग्लेशियर की खोज और उसके विस्तार का अध्ययन पर्यावरण संरक्षण और नई नीतियां बनाने में मदद कर सकता है. इससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बेहतर उपाय किए जा सकते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि मौके पर जाकर स्टडी की जाए तो बिल्कुल सटीक डेटा हासिल किया जा सकता है.
 

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05 December 2024, 04:35 PM IST

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