घर खरीदना हुआ और मुश्किल, आवासीय कीमतों की रफ्तार से पिछड़ा आम खरीददार, क्या इस साल फिर बढ़ेंगी ब्याज दरें?
रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छू रही हैं जो पिछले एक दशक से चले आ रहे प्रॉपर्टी मूल्यों में उछाल के रुझान को और तेज कर रही हैं. इस दौरान कीमतें दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी हैं. लेकिन जैसे-जैसे बाजार रफ्तार पकड़ रहा है जिसके चलते लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हैं.

भारत के प्रमुख शहरों में आवासीय संपत्तियों की कीमतें अब पहले से काफी तेज रफ्तार से बढ़ने लगी हैं. एक सर्वे के मुताबिक 2025 में घरों की औसत कीमतों में 6.3% की बढ़ोतरी और 2026 में 7.0% की बढ़ोतरी की संभावना है. यह पूर्वानुमान जून में दिए गए 6% और 5% की वृद्धि के अनुमानों से कहीं अधिक है. वर्ष 2024 में ही घरों की कीमतों में लगभग 4% की वृद्धि हो चुकी है. पिछले एक दशक से लगातार बढ़ती कीमतों की यह प्रवृत्ति अब एक बड़े सामाजिक संकट का रूप लेती जा रही है. घर खरीदना अब आम नागरिक की पहुंच से बाहर होता जा रहा है. खासकर उन लोगों के लिए जो आय के निचले स्तर पर आते हैं.
बढ़ती कीमतें, घटती पहुंच, आम लोगों की मुश्किलें
निचले और मध्यम वर्ग के कई लोग आज के शहरी और उपनगरीय बाजार में घर खरीदने के योग्य नहीं रह गए हैं. सर्वे के अनुसार मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक आंकड़े गरीब तबके को कोई लाभ नहीं पहुंचा पा रहे हैं जिससे वे काफी पिछड़ गए हैं. सीमित डिस्पोजेबल इनकम की वजह से बहुत से लोग घर खरीदने की जगह किराए पर रहने को मजबूर हैं ताकि वे नौकरी और परिवार के करीब रह सकें. रिपोर्ट के मुताबिक जैसे-जैसे घरों की खरीद मुश्किल होती जा रही है लोग किराए की ओर बढ़ रहे हैं और इसी के चलते किराया दरों में 5% से 8% तक की संभावित बढ़ोतरी देखी जा रही है जो सामान्य महंगाई दर से भी तेज है.
ब्याज दर में कटौती से भी नहीं मिल रही राहत
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती की है, जिससे दरें 5.50% तक आ गई हैं, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका असर मामूली ही रहेगा. घरों की कीमतें जिस रफ्तार से बढ़ रही हैं. वह ब्याज दरों में कमी को पीछे छोड़ रही है. मीडिया के सर्वे में शामिल 19 विशेषज्ञों में से 10 ने कहा कि आने वाले साल में घर खरीदना थोड़ा आसान हो सकता है, जबकि 9 विशेषज्ञों ने इसे और मुश्किल बताया है. यह बदलाव जून में आए सर्वे के ठीक उलट है, जहां अधिकतर विशेषज्ञ बेहतर हालात की उम्मीद कर रहे थे.
गहरी संरचनात्मक समस्याएं बनी सबसे बड़ी चुनौती
वास्तविक समस्या सिर्फ ब्याज दरों या कीमतों की नहीं बल्कि सिस्टम की संरचना की है. रियल एस्टेट के वित्तीयकरण के बाद से अफोर्डेबिलिटी में कोई सुधार नहीं किया गया है जिससे हालात और बिगड़ गए हैं. अब एक व्यक्ति के लिए घर खरीदने की औसत उम्र 30-40 से बढ़कर 45 साल हो गई है. क्रोनी कैपिटलिज्म की शुरुआत जमीन की मिल्कियत से होती है. जब जमीन कुछ अमीरों के हाथ में होती है, तो सस्ती आवास योजनाएं कैसे बनेंगी? यही वजह है कि हाउसिंग विकल्प नहीं देती, सिर्फ फ्रस्ट्रेशन देती है.


