‘43 रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंका’, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा- क्या सैटेलाइट से देख रहे थे?
सुप्रीम कोर्ट ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र में जबरन छोड़ने के आरोपों वाली याचिका को बिना सबूत के काल्पनिक बताते हुए खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा में जबरन छोड़ दिए जाने के आरोप वाली याचिका को बिना ठोस सबूत के दाखिल बताया और खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता ने भारत से रोहिंग्या लोगों के निर्वासन पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई 2025 के लिए तय की है.
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों को काल्पनिक करार दिया और कहा कि बिना पुख्ता सबूत के इस तरह की याचिका दायर करना न्यायपालिका का समय खराब करना है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुरक्षा और संप्रभुता के मामलों में बिना तथ्य के आरोप गंभीर चिंता का विषय हैं.
रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन पर याचिका ठुकराई
याचिका में दावा किया गया था कि भारत सरकार ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अंतरराष्ट्रीय जल में फेंक कर जबरन म्यांमार भेज दिया, जहां वे लाइफ जैकेट के सहारे तैरते हुए पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्य कांत ने इस दावे को आधारहीन और काल्पनिक बताया. उन्होंने वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस से सवाल किया कि ऐसी गढ़ी हुई कहानियां आप हर बार कैसे लाते हैं? क्या याचिकाकर्ता खुद वहां मौजूद था? अगर था तो कैसे दिल्ली वापस आ गया? या फिर दिल्ली से सैटेलाइट के जरिए देख रहा था?
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट पर भी सवाल
वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इन रोहिंग्या शरणार्थियों को पीड़ित माना गया है और उन्हें जबरन निर्वासित नहीं किया जाना चाहिए. इस पर जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि हम इस रिपोर्ट पर भी अपनी राय बनाएंगे. भारत से बाहर बैठे लोग हमारी सुरक्षा और संप्रभुता को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं.
सरकार की नीति पर विवादित दलील
याचिकाकर्ता के पक्षकार ने ये भी तर्क दिया कि भारत सरकार ने पहले बांग्लादेश के चकमा शरणार्थियों को नागरिकता दी थी, इसलिए रोहिंग्या को भी समान अधिकार मिलने चाहिए. इस दलील को कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि ये सरकार की नीति का मामला है और भारत में आने वाले शरणार्थियों को सरकार के निर्देशों के अनुसार ही व्यवहार किया जाता है.
अगली सुनवाई 31 जुलाई को
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रोहिंग्या मामलों की सुनवाई चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की बेंच करेगी. इससे पहले 8 मई को एक तीन सदस्यीय बेंच ने सरकार की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. अब इस मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी.


