27 साल बाद बदला दिल्ली का खेल, भाजपा की बंपर जीत! AAP को तगड़ा झटका, लेकिन कैसे?
27 साल बाद दिल्ली में भाजपा ने जबरदस्त वापसी की और AAP का दशक भर पुराना किला ढहा दिया. इस जीत के पीछे झुग्गीवासियों का समर्थन, मध्यम वर्ग की नाराजगी, मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण और मुफ्त सुविधाओं का मास्टरस्ट्रोक रहा. मोदी की अपील के आगे केजरीवाल की चमक फीकी पड़ गई और भाजपा ने हरियाणा-यूपी से सटी सीटों पर कब्जा जमा लिया. लेकिन आखिर AAP के पारंपरिक वोटर भाजपा की तरफ क्यों झुके? महिलाओं ने इस बार भगवा पार्टी को क्यों चुना? और फ्री बिजली-पानी पर भाजपा ने कौन सा मास्टरस्ट्रोक खेला? पूरी कहानी जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर!

Delhi Election 2025: दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 27 साल के लंबे इंतजार के बाद जबरदस्त जीत दर्ज की और आम आदमी पार्टी (AAP) के 10 साल के शासन का अंत कर दिया. ये वही दिल्ली है, जहां भाजपा लंबे समय तक सत्ता हासिल नहीं कर पा रही थी, लेकिन इस बार नतीजे चौंकाने वाले रहे. भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत के पीछे कई फैक्टर रहे—दलित वोट बैंक में सेंध, मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण, मध्यम वर्ग की नाराजगी और मुफ्त सुविधाओं का वादा. आइए, समझते हैं कि कैसे भाजपा ने अपनी रणनीति से दिल्ली के चुनावी गणित को पूरी तरह बदल दिया.
झुग्गियों में दलित वोट बैंक पर पकड़, AAP को तगड़ा झटका
दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाला गरीब तबका AAP का पक्का वोटर माना जाता था. मुफ्त बिजली-पानी और मोहल्ला क्लीनिक जैसी योजनाओं ने इस तबके को पार्टी से जोड़े रखा था. लेकिन इस बार भाजपा ने इस वोट बैंक में जबरदस्त सेंध लगा दी. भाजपा ने झुग्गीवासियों से "हर गरीब को पक्का मकान" देने का वादा किया, साथ ही मुफ्त बिजली-पानी की सुविधा जारी रखने का भरोसा दिलाया. इन वादों के कारण 20% दलित वोट बंट गए, जिससे AAP को बड़ा नुकसान हुआ. हरियाणा और महाराष्ट्र में पहले ही दलित वोट भाजपा की ओर लौट रहे थे, और अब दिल्ली में भी यही ट्रेंड देखने को मिला.
मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण, लेकिन कांग्रेस नाकाम
दिल्ली में 13% मुस्लिम आबादी है, और कई सीटों पर उनका वोट नतीजों को प्रभावित करता है. बीते चुनावों में मुस्लिम मतदाता AAP के साथ मजबूती से खड़े थे, लेकिन इस बार मामला थोड़ा बदला. करावल नगर और मुस्तफाबाद जैसी सीटों पर ध्रुवीकरण का असर साफ दिखा. ये वे इलाके हैं, जहां 2020 में दंगे हुए थे. भाजपा उम्मीदवार मोहन सिंह बिष्ट और कपिल मिश्रा ने बड़ी जीत हासिल की. हालांकि, कांग्रेस मुस्लिम वोटों को पूरी तरह AAP से नहीं खींच पाई, लेकिन भाजपा को इसका फायदा मिला.
मध्यम वर्ग की नाराजगी बनी भाजपा की ताकत
दिल्ली में मध्यम वर्ग के 40% मतदाता हैं, और ये परंपरागत रूप से भाजपा और AAP के बीच बंटे रहते हैं. लेकिन इस बार, बिजली-पानी मुफ्त मिलने के बावजूद, इस तबके ने भाजपा का साथ दिया.
इसके पीछे कई कारण थे—
➛ खराब सड़कों और बढ़ते ट्रैफिक जाम से परेशान लोग
➛ वायु प्रदूषण और यमुना नदी की दयनीय हालत
➛ गंदगी और टूटी-फूटी गलियां
➛ सरकारी कर्मचारियों के लिए 8वें वेतन आयोग की घोषणा
➛ 12.75 लाख तक की आय पर टैक्स माफी का वादा
भाजपा ने RWA, व्यापारी संगठनों और बाजार संघों से लगातार संपर्क बनाए रखा, जिससे मध्यम वर्ग का समर्थन उसे मिला.
फ्रीबीज़ पर मास्टरस्ट्रोक, AAP की रणनीति पर भारी पड़ा
2020 में जब भाजपा ने AAP की फ्री योजनाओं को "रेवड़ी कल्चर" कहा था, तो उसे नुकसान हुआ था. लोगों को लगा था कि भाजपा सत्ता में आई तो मुफ्त बिजली-पानी खत्म हो जाएगा. लेकिन इस बार भाजपा ने रणनीति बदली और साफ कह दिया कि सभी मुफ्त योजनाएं जारी रहेंगी. इतना ही नहीं, भाजपा ने AAP के महिलाओं को 2,100 रुपये महीना देने के वादे को काउंटर करने के लिए 2,500 रुपये महीना देने का ऐलान कर दिया. इससे महिला वोटरों का झुकाव भी भाजपा की ओर बढ़ा. दिल्ली में 41 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया था, और इस बार उन्होंने AAP के बजाय भाजपा को ज्यादा तवज्जो दी.
मोदी का करिश्मा, केजरीवाल की चमक फीकी
दिल्ली में मुख्यमंत्री के तौर पर AAP ने अरविंद केजरीवाल को सबसे बड़ा चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा. उन्होंने जनता से कहा कि अगर AAP जीती तो वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन भाजपा के पास नरेंद्र मोदी का करिश्मा था. मोदी ने 27 साल बाद दिल्ली में भाजपा को मौका देने की अपील की, और जनता ने इस पर भरोसा दिखाया. केजरीवाल की छवि को भ्रष्टाचार घोटालों और "शीश महल" विवाद ने बड़ा नुकसान पहुंचाया. भाजपा ने चुनाव को क्षेत्रीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर लड़ने की रणनीति अपनाई, और "डबल इंजन की सरकार" का वादा किया.
बाहरी और पश्चिमी दिल्ली में भाजपा का वर्चस्व
भाजपा ने इस बार चुनावी गणित को इस तरह साधा कि उसे दिल्ली के बाहरी इलाकों और पश्चिमी दिल्ली की ज्यादातर सीटों पर जबरदस्त सफलता मिली. AAP के पास मजबूत संगठन था, लेकिन भाजपा की गहरी रणनीति, मजबूत कैम्पेनिंग और मोदी फैक्टर ने उसे पीछे छोड़ दिया. 27 साल बाद दिल्ली की राजनीति का रंग बदल गया और राजधानी पूरी तरह भगवा रंग में रंग गई.


