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नेहरू से लेकर PM मोदी तक... भारत-चीन रिश्तों का उतार-चढ़ाव भरा सफर

भारत और चीन के रिश्ते आजादी से अब तक उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. नेहरू ने दोस्ती की नींव रखी, लेकिन 1962 का युद्ध बड़ा झटका साबित हुआ. शास्त्री और इंदिरा गांधी ने सख्त रुख अपनाया, जबकि राजीव गांधी ने 1988 में रिश्तों को नया आयाम दिया. वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने व्यापार बढ़ाया. मोदी के कार्यकाल में गलवान झड़प ने तनाव बढ़ाया, लेकिन हालिया समझौतों ने शांति बहाली की दिशा दिखाई.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

India China Relations History : भारत और चीन के बीच रिश्तों की कहानी स्वतंत्रता के बाद से ही जटिल रही है. हर प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में चीन के साथ अलग-अलग रणनीतियां अपनाईं, जिनका असर दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक संबंधों पर पड़ा. इसी बीच आज हम यह जानेंगे की किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कैसा रहा भारत और चीन का रिश्ता. आइए जानते है इस खबर को विस्तार से... 

प्रथम जवाहरलाल नेहरू का दौर...

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन से दोस्ती का हाथ बढ़ाया. जिसके बाद भारत ने 1950 में कम्युनिस्ट चीन को मान्यता दी और 1954 में दोनों देशों के बीच पंचशील समझौते हुए. "हिंदी-चीनी भाई-भाई" का नारा भी इसी दौर में दिया गया. लेकिन तिब्बत पर चीन के कब्जे और सीमा विवाद ने रिश्तों में दरार डाल दी. नतीजा यह हुआ कि 1962 का युद्ध हुआ जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा और विश्वास की बुनियाद हिल गई.

लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल 
लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल भले छोटा रहा, लेकिन 1965 के भारत-पाक युद्ध में चीन ने भारत को धमकी दी और सीमा पर दबाव बनाया. शास्त्री ने बिना झुके मजबूत रुख अपनाया. हालांकि बड़े स्तर पर टकराव नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने यह दिखा दिया कि भारत किसी दबाव में नहीं झुकेगा.

चीन को लेकर इंदिरा गांधी की नीति
इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भारत-चीन संबंधों में तनाव बना रहा. 1967 में नाथू ला और चो ला में दोनों सेनाओं के बीच झड़प हुई. हालांकि, उन्होंने कूटनीतिक रास्ते को भी अपनाया और 1976 में चीन से राजनयिक संबंध फिर से बहाल किए.

राजीव गांधी का ऐतिहासिक कदम
राजीव गांधी ने 1988 में चीन का दौरा  किया. यह दौरा 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद किसी प्रधानमंत्री का पहला दौरा था. राजीव गांधी के इस ऐतिहासिक यात्रा ने दोनों देशों के बीच कूटनीति और व्यापार के नए रास्ते खोले. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्मजोशी भी आई.

अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपने कार्यकाल के दौरान चीन का दौरा किया.उनके प्रयासों से सीमा विवाद पर विशेष प्रतिनिधि तंत्र बना और 2006 में नाथू ला दर्रा व्यापार के लिए खोला गया. उनके दौर में रिश्ते बेहतर हुए, हालांकि सीमा विवाद पूरी तरह सुलझ नहीं पाया.

मनमोहन सिंह की संतुलित नीति
मनमोहन सिंह ने 2008 और 2013 में चीन का दौरा किया. उनके समय में दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग तेजी से बढ़ा. हालांकि, 2013 में लद्दाख में चीनी घुसपैठ ने तनाव बढ़ा दिया. इसके बावजूद कूटनीति के जरिए स्थिति को संभाल लिया गया.

नरेंद्र मोदी का कार्यकाल
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में रिश्तों में उतार-चढ़ाव साफ दिखे. शी जिनपिंग ने 2014 में भारत का दौरा किया जिसके बाद पीएम मोदी ने 2015 में चीन का दौरा किया. शुरुआत में व्यापार और सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने की कोशिश हुई, लेकिन 2020 में गलवान घाटी की हिंसक झड़प ने माहौल बिगाड़ दिया. मोदी सरकार ने कठोर कदम उठाए—सीमा पर सैन्य तैनाती बढ़ाई और चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया. हालांकि, अब 2024 और 2025 में दोनों देशों के बीच हुई बैठकों में सीमा पर शांति और कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली जैसे बड़े कदम उठाए गए. जिससे अब ये लग रहा है कि दोनों देशों के रिश्ते पहले की तुलना में ठीक हो सकते है.

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02 September 2025, 12:28 PM IST

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