दोनों देशों की दोस्ती और साझेदारी पीढ़ियों से...भारत-ओमान मंच पर पुराने संबंधों को याद करते हुए बोले PM मोदी
भारत–ओमान शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के सदियों पुराने सांस्कृतिक, व्यापारिक और मानवीय संबंधों को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि भारत और ओमान केवल भौगोलिक रूप से नहीं, बल्कि पीढ़ियों से जुड़े हैं.

नई दिल्ली : भारत–ओमान शिखर सम्मेलन के दौरान गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मस्कट पहुंचे. अपने संबोधन में उन्होंने दोनों देशों के रिश्तों को केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि पीढ़ियों से जुड़ा हुआ बताया. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और ओमान का संबंध समय की सीमाओं से परे है और यह सदियों से चला आ रहा एक संतुलित एवं सुंदर साझापन है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि व्यापार के माध्यम से दोनों देशों के बीच न केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान हुआ, बल्कि संस्कृति, परंपराओं और जीवन मूल्यों का भी गहरा परिचय बना.
आपको बता दें कि वास्तविकता यह है कि भारत और ओमान के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध अत्यंत प्राचीन और मजबूत रहे हैं. ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि ईसा पूर्व शास्त्रीय युग में भी दोनों क्षेत्रों के बीच सक्रिय व्यापारिक संपर्क था. पुरातात्विक उत्खननों और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि भारत के पश्चिमी तट, विशेषकर गुजरात और मालाबार क्षेत्र, ओमान के साथ व्यापार के प्रमुख केंद्र थे. इन संपर्कों ने दोनों सभ्यताओं को एक-दूसरे के रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक मूल्यों से परिचित कराया.
सुल्तान काबूस को सम्मान और शांति की विरासत
मैसूर और ओमान के राजनयिक रिश्ते
इतिहासकारों के अनुसार, भारत के मैसूर राज्य और ओमान के बीच राजनयिक एवं व्यापारिक संबंध भी उल्लेखनीय रहे हैं. ख्वाजा अब्दुल कादिर और मोहिबल हसन जैसे इतिहासकारों के लेखन में हैदर अली और टीपू सुल्तान के विदेशी व्यापारिक संबंधों का विस्तृत वर्णन मिलता है. इन स्रोतों के अनुसार, प्राचीन काल से ही भारतीय और अरब व्यापारी दक्षिण-पश्चिमी भारतीय बंदरगाहों और फारस की खाड़ी के बीच व्यापार का संचालन करते थे, जिसमें समृद्ध व्यापारी परिवारों की अहम भूमिका थी.
अंग्रेजों के के नियंत्रण के बाद बड़ा झटका
जब अरब सागर के समुद्री मार्गों पर पहले पुर्तगालियों और बाद में अंग्रेज़ों का नियंत्रण बढ़ा, तो पारंपरिक व्यापारिक ढांचे को बड़ा झटका लगा. अधिकांश भारतीय शासक इस एकाधिकार के सामने असहाय रहे. हालांकि हैदर अली और बाद में टीपू सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र में यूरोपीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाकर स्वदेशी व्यापारिक हितों की रक्षा करने का प्रयास किया, जो उस समय एक साहसिक कदम माना गया.
मंगलौर से मस्कट तक चावल व्यापार
ओमान और मैसूर के बीच चावल व्यापार विशेष रूप से महत्वपूर्ण था. ओमान की खाद्य आवश्यकताओं में भारतीय चावल की बड़ी भूमिका थी. जब मंगलौर बंदरगाह से चावल का निर्यात रोका गया, तो ओमान में संकट उत्पन्न हो गया. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच राजनयिक संवाद शुरू हुआ, जिसके परिणामस्वरूप मस्कट में मैसूर का स्थायी दूत नियुक्त किया गया. जिस निवास में यह दूत रहता था, उसे ‘बैत-उल-नवाब’ कहा जाता था, जो दोनों देशों के घनिष्ठ संबंधों का प्रतीक बन गया.
ओमान में भारतीय समुदाय की अभिलेखीय विरासत
आधुनिक काल में भी भारत और ओमान के रिश्ते जीवंत बने हुए हैं. मई 2024 में मस्कट स्थित भारतीय दूतावास ने राष्ट्रीय अभिलेखागार, भारत के सहयोग से “द ओमान कलेक्शन” नामक एक विशेष परियोजना शुरू की. इसके अंतर्गत पिछले दो सौ वर्षों से ओमान में रह रहे भारतीय परिवारों से जुड़े हजारों दुर्लभ दस्तावेज़ों का डिजिटलीकरण किया गया. इन अभिलेखों में व्यापारिक रिकॉर्ड, निजी डायरियां, पत्र और पासपोर्ट शामिल हैं, जो बहुभाषी ऐतिहासिक धरोहर को संजोए हुए हैं.
‘मांडवी से मस्कट’ व्याख्यान श्रृंखला
इस अभिलेखीय प्रयास को और समृद्ध बनाने के लिए भारतीय दूतावास ने ‘मांडवी से मस्कट’ नामक व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया. कई महीनों तक चली इस पहल में भारत, ओमान, अमेरिका और यूएई के विद्वानों ने भाग लिया. इन चर्चाओं के माध्यम से भारत-ओमान संबंधों के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को नए दृष्टिकोण से समझने का अवसर मिला.
ओमान में भारतीय प्रवासी समुदाय की भूमिका
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ओमान में बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक निवास करते हैं, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, इंजीनियरिंग, वित्त और सेवा क्षेत्रों में सक्रिय हैं. उनकी शैक्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए ओमान में अनेक भारतीय स्कूल संचालित हो रहे हैं. भारतीय सामाजिक क्लब, धार्मिक संस्थान और सांस्कृतिक संगठन न केवल भारतीय परंपराओं को जीवित रखते हैं, बल्कि ओमानी समाज के साथ सांस्कृतिक सौहार्द को भी मजबूत करते हैं.
प्रवासी भारतीयों का सम्मान और योगदान
ओमान में भारतीय समुदाय के दीर्घकालिक योगदान को भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार के माध्यम से मान्यता दी जाती रही है. ये सम्मान इस बात को रेखांकित करते हैं कि प्रवासी भारतीय भारत-ओमान संबंधों को मजबूत करने में एक सेतु की भूमिका निभा रहे हैं और दोनों देशों के बीच मित्रता को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं.


