आरोपी पर एडल्ट की तरह नहीं, नाबालिग के तौर पर चलेगा मुकदमा... पुणे पोर्श केस में पुलिस को झटका
पुणे पोर्श हादसे में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने आरोपी 17 वर्षीय किशोर को वयस्क नहीं बल्कि नाबालिग मानते हुए किशोर न्याय अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया है.

पिछले साल मई में पुणे के कल्याणी नगर में हुए पोर्श हादसे में बड़ा मोड़ आया है. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि इस भीषण हादसे के मुख्य आरोपी 17 साल के किशोर पर किशोर न्याय अधिनियम के तहत ही मुकदमा चलेगा. बोर्ड ने पुणे पुलिस की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें आरोपी को वयस्क के तौर पर मुकदमे का सामना करने की मांग की गई थी.
यह वही मामला है जिसमें एक नशे में धुत किशोर ने अपने पिता की हाई-परफॉर्मेंस इलेक्ट्रिक पोर्श कार से बाइक सवार दो आईटी प्रोफेशनल्स को टक्कर मार दी थी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी. इस फैसले ने एक बार फिर देशभर में किशोर अपराध से जुड़े कानूनों को लेकर बहस छेड़ दी है.
पुलिस की याचिका खारिज
मंगलवार को आए जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के फैसले के अनुसार, हादसे में शामिल किशोर को बाल अपराधी (Child in Conflict with Law) के तौर पर ही देखा जाएगा और मुकदमा भी उसी के अनुसार चलेगा. पुणे पुलिस ने अपनी याचिका में यह तर्क दिया था कि यह एक जघन्य अपराध है और इसमें केवल लापरवाही नहीं, बल्कि सबूतों से छेड़छाड़ जैसे गंभीर आरोप भी शामिल हैं. हालांकि, बोर्ड ने यह तर्क अस्वीकार कर दिया और कहा कि किशोर को नाबालिग के रूप में ही ट्रायल का सामना करना होगा.
हादसे के कुछ घंटे बाद ही मिल गई थी जमानत
यह हादसा 19 मई, 2023 को पुणे के कल्याणी नगर इलाके में हुआ था, जिसमें अनिश अवधिया और अश्विनी कोस्टा की मौत हो गई थी. हादसे के कुछ ही घंटे बाद आरोपी को जमानत दे दी गई थी, जिसकी शर्तों में केवल सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखना शामिल था. यह फैसला देशभर में आलोचना का कारण बना और भारी जन आक्रोश के बाद आरोपी को तीन दिन बाद पुणे के बाल सुधार गृह भेजा गया.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी दी थी राहत
25 जून 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी आरोपी को राहत देते हुए जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा बाल सुधार गृह भेजे जाने के आदेश को अवैध करार दिया. कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय कानून को पूरी तरह लागू किया जाना चाहिए और आरोपी को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में जहां अपराध की प्रकृति अत्यंत गंभीर हो, वहां कानून में सुधार की जरूरत है. हालांकि, मौजूदा कानूनों के अनुसार अगर आरोपी की उम्र 18 वर्ष से कम है, तो उसे किशोर माना जाएगा, चाहे अपराध कितना भी गंभीर क्यों ना हो.


