भारत की सबसे पुरानी चलने वाली ट्रेन: नेताजी एक्सप्रेस की ऐतिहासिक यात्रा
भारतीय रेलवे ने देश के सुदूर क्षेत्रों को आपस में जोड़ते हुए सामाजिक और आर्थिक विकास को नई दिशा दी है. यह न केवल परिवहन का एक मजबूत माध्यम बना है, बल्कि करोड़ों लोगों की दैनिक ज़िंदगी का अहम हिस्सा भी बन चुका है.

भारतीय रेलवे देश की जीवनरेखा मानी जाती है. आज लाखों लोगों के लिए यात्रा का भरोसेमंद और किफायती साधन है. वंदे भारत, राजधानी, शताब्दी और तेजस जैसी आधुनिक ट्रेनों के बीच एक ऐसी भी ट्रेन है, जिसकी कहानी 158 साल पुरानी है. हम बात कर रहे हैं हावड़ा-कालका मेल की, जिसे अब नेताजी एक्सप्रेस के नाम से जाना जाता है.
हावड़ा-पेशावर एक्सप्रेस
इस ट्रेन का सफर 1 जनवरी, 1866 को हावड़ा-पेशावर एक्सप्रेस के रूप में शुरू हुआ था. शुरुआत में यह हावड़ा और दिल्ली के बीच चलती थी, लेकिन 1891 में इसका मार्ग बढ़ाकर कालका तक कर दिया गया. यह ट्रेन पूर्वी भारत के कोलकाता को हरियाणा के कालका शहर से जोड़ती है और देश के पूर्व और उत्तर भागों के बीच एक अहम संपर्क बनाती है.
ब्रिटिश काल में यह रेलगाड़ी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती थी. ब्रिटिश अधिकारी इसी ट्रेन से कोलकाता और शिमला के बीच यात्रा करते थे. इसकी ऐतिहासिक अहमियत को इस बात से भी जोड़ा जाता है कि वर्ष 1941 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश नजरबंदी से बच निकलने के लिए इसी ट्रेन का इस्तेमाल किया था. उन्होंने झारखंड के गोमोह स्टेशन से इस ट्रेन में सवार होकर अपनी ऐतिहासिक यात्रा शुरू की थी.
ट्रेन के नाम में वर्षों में कई बार बदलाव
इस ट्रेन के नाम में वर्षों में कई बार बदलाव हुआ है. पहले इसे ईस्ट इंडिया रेलवे मेल, फिर कालका मेल और अब 2021 में नेताजी की 125वीं जयंती पर इसे ‘नेताजी एक्सप्रेस’ नाम दिया गया. आज भी यह ट्रेन भारतीय रेलवे के गौरवशाली अतीत और निरंतर विकास का प्रतीक है. जहां आधुनिक रेल सेवाएं तकनीक और रफ्तार में आगे हैं. वहीं, नेताजी एक्सप्रेस देश के इतिहास और विरासत को हर दिन अपने रास्ते पर ज़िंदा रखे हुए है.