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अगर युद्ध हुआ तो... भारत-पाक तनाव पर अरब देशों की टिकीं नजरें

भारत-पाक तनाव से सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं, बल्कि पूरा अरब क्षेत्र खतरे में है क्योंकि पाक सेना की कमजोरी खाड़ी देशों की सुरक्षा को गंभीर चुनौती दे सकती है.

भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गंभीर असर पश्चिम एशिया तक महसूस किया जा सकता हैं. अरब देशों के लिए ये स्थिति चिंता का विषय बन चुकी है, खासकर उस समय जब पूरा मध्य-पूर्व पहले से ही इजराइल-गाजा युद्ध, ईरान और अमेरिका के बीच टकराव और आतंकी संगठनों की गतिविधियों से जूझ रहा है. पाकिस्तान, जो लंबे समय से खाड़ी देशों का सामरिक और सैन्य सहयोगी रहा है, उसके युद्ध में उलझने का मतलब अरब सुरक्षा तंत्र की एक मजबूत कड़ी का कमजोर हो जाना होगा.

दरअसल, पाकिस्तान की सेना ना केवल अरब देशों के लिए प्रशिक्षण और सैन्य सलाहकार की भूमिका निभाती है, बल्कि कई बार युद्ध के हालात में भी इन देशों की रक्षा में सक्रिय रही है. ऐसे में पाकिस्तान का किसी बड़े युद्ध में उतरना पूरे क्षेत्रीय संतुलन को डगमगा सकता है.

पाकिस्तानी सेना अरब सुरक्षा व्यवस्था का अहम स्तंभ

पाकिस्तान की सेना वर्तमान में 22 से ज्यादा अरब देशों में सक्रिय भूमिका निभा रही है. ये अधिकारी रणनीतिक परामर्श, सैन्य प्रशिक्षण और खुफिया सहयोग जैसे काम करते हैं. विशेष रूप से सऊदी अरब, यूएई और कतर जैसे देशों ने बार-बार पाक सेना को संकट के समय में सुरक्षा की गारंटी के रूप में देखा है.

अनुभवहीन अरब सेनाएं और पाक पर निर्भरता

अरब देशों की सेनाओं में बड़े पैमाने पर लड़ाई या आतंकी ऑपरेशन का अनुभव नहीं है. ऐसे में इजराइल, ईरान और अन्य उभरते खतरों से निपटने के लिए ये देश पाक सेना पर काफी हद तक निर्भर हैं. पाकिस्तान की परमाणु क्षमता भी उसे इस्लामी दुनिया में एक अलग दर्जा देती है, जिससे वो सऊदी अरब जैसे देशों का खास रणनीतिक सहयोगी बन गया है.

भारत-पाक युद्ध: क्यों अरब देश होंगे बेचैन?

मध्य पूर्व पहले ही उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. ईरान की तरफ से सख्त चेतावनी दी गई है कि अगर अरब देशों ने अमेरिकी या इजराइली कार्रवाई के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल होने दिया, तो वो उन पर मिसाइलें दागेगा. ऐसे में पाकिस्तान का युद्ध में फंसना अरबों के लिए दोहरा खतरा पैदा कर सकता है- एक तरफ सुरक्षा साझेदार का कमजोर होना, दूसरी तरफ क्षेत्रीय अस्थिरता में इज़ाफा.

इतिहास में पाक सेना की भूमिका

पाक सेना 1967 और 1973 के अरब-इजराइल युद्धों में भाग ले चुकी है. 1990 के गल्फ वॉर के समय भी पाकिस्तान ने सऊदी अरब में करीब 10,000 सैनिक तैनात किए थे. हालांकि उन्होंने सीधे युद्ध में हिस्सा नहीं लिया, लेकिन मक्का और मदीना जैसे पवित्र स्थलों की रक्षा में भूमिका निभाई. पाकिस्तान ने यमन युद्ध के समय सऊदी अरब का सैन्य साथ नहीं दिया, बल्कि तटस्थ रुख अपनाया. इसका मकसद था ईरान के साथ संबंधों को बिगाड़ने से बचाना, क्योंकि ईरान के साथ उसकी सीमा लगती है और आर्थिक रिश्ते भी मजबूत हैं. हालांकि कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक पाक अधिकारियों ने यमन युद्ध में रणनीतिक सलाहकार की भूमिका निभाई थी.

भारत से युद्ध: अरब की चिंता

भारत की सैन्य ताकत पाकिस्तान से कहीं अधिक है. अगर युद्ध हुआ, तो पाकिस्तान को भारी नुकसान होने की आशंका है, जिससे उसकी सेना सालों तक रिकवर नहीं कर पाएगी. इसका सीधा असर अरब देशों की रक्षा रणनीति पर पड़ेगा, जो पाक सेना की क्षमता पर निर्भर है.

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01 May 2025, 02:11 PM IST

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