'यूक्रेन को अरबों के हथियार, भारत पर टैरिफ का वार...', अमेरिका की नीति पर फिर उठे सवाल
दुनिया में शांति का संदेश देने वाला अमेरिका अब अपने ही फैसलों से कठघरे में खड़ा नजर आ रहा है. एक तरफ वह रूस-यूक्रेन युद्ध को "असहनीय" बताता है, दूसरी तरफ उसी युद्ध में यूक्रेन को अब तक 66 अरब डॉलर से ज्यादा की सैन्य मदद भेज चुका है जिसमें मिसाइल, ड्रोन, बख्तरबंद वाहन और गोला-बारूद तक शामिल हैं.

America Double Standards: दुनिया का सबसे शक्तीशाली देश अमेरिका एक तरफ युद्ध को रोकने का दावा करता है तो वहीं दूसरी ओर हथियारों की सप्लाई कर रहा है यानी अमेरिका की कथनी और करनी में फर्क साफ नजर आ रहा है. हमेशा से रूस-यूक्रेन युद्ध को 'असहनीय' कहते आया अमेरिका अब खुद इस युद्ध में हथियार, तकनीक और पैसा झोंक रहा है. इतना ही नहीं यूक्रेन को 66 अरब डॉलर से अधिक की सैन्य मदद देने वाले अमेरिका ने अब भारत पर 50% टैरिफ लगाकर एक और विवाद खड़ा कर दिया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर युद्ध को बढ़ावा दे रहा है. इसी वजह से अमेरिका ने भारत से आने वाले उत्पादों पर 50% आयात शुल्क (टैरिफ) लगा दिया है. हालांकि, भारत ने इस कदम को 'अनुचित और तर्कहीन' करार देते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है. अब सवाल उठता है कि क्या यह अमेरिका की शांति नीति है या वैश्विक सत्ता का हथियार?
मदद के नाम पर हथियारों की बौछार
24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर बड़ा हमला किया. इसके बाद से अमेरिका यूक्रेन का सबसे बड़ा सैन्य और आर्थिक सहयोगी बन गया है. 12 मार्च 2025 तक, अमेरिका यूक्रेन को करीब $66.9 अरब डॉलर (5,86,746 करोड़ रुपये) की सैन्य सहायता दे चुका है. इस मदद में पैट्रियट मिसाइल सिस्टम से लेकर ब्रैडली बख्तरबंद वाहन, स्टिंगर और जैवलिन मिसाइलें, हजारों ड्रोन, अरबों राउंड गोला-बारूद, प्रेसिडेंशियल ड्रॉडाउन से 31 अरब डॉलर के हथियार शामिल है.
अमेरिका ने ‘प्रेसिडेंशियल ड्रॉडाउन अथॉरिटी’ के तहत अपने सैन्य स्टॉक से यूक्रेन को अब तक $31.7 अरब डॉलर (2.78 लाख करोड़ रुपये) के हथियार भेजे हैं. यह अधिकार राष्ट्रपति को देता है कि वे सीधे तौर पर हथियार भेज सकें, और 2021 से अब तक इसका 55 बार इस्तेमाल हो चुका है.
175 अरब डॉलर की कुल सहायता
अब तक अमेरिकी कांग्रेस यूक्रेन को पांच बड़े सहायता पैकेज पास कर चुकी है, जिनकी कुल राशि $175 अरब डॉलर (15,34,720 करोड़ रुपये) है. इनमें से $128 अरब डॉलर (11,22,653 करोड़ रुपये) आर्थिक और प्रशासनिक जरूरतों के लिए भी हैं सिर्फ युद्ध नहीं, यूक्रेन की व्यवस्था को भी संभालने के लिए.
नाटो की भी पूरी ताकत मैदान में
यूक्रेन को केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि करीब 50 देशों ने सैन्य मदद भेजी है. इसमें शामिल हैं- 10 लॉन्ग-रेंज MLRS, 178 लंबी दूरी की तोपें, लगभग 1 लाख गोले, 2.5 लाख एंटी-टैंक हथियार, 359 टैंक, 629 लड़ाकू वाहन, 8,214 एयर डिफेंस मिसाइलें, 88 हथियारबंद ड्रोन. नाटो के पास 3.4 मिलियन सक्रिय सैनिक, 22,377 एयरक्राफ्ट और 11,495 टैंक हैं. लेकिन रिपोर्ट्स बताती हैं कि रूस की वॉर-इकोनॉमी इतनी तेज है कि वह वही हथियार 3 महीने में बना लेता है, जो नाटो एक साल में बनाता है.
भारत को लेकर दोहरा मापदंड?
अमेरिका वही है जिसने अब भारत पर 50% का टैरिफ लगा दिया है. यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उठाया, यह आरोप लगाते हुए कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर युद्ध को फंड कर रहा है. इससे पहले अमेरिका 25% का टैरिफ पहले ही लगा चुका था. अब बड़ा सवाल यही है कि अगर भारत द्वारा रूस से सस्ता तेल खरीदना युद्ध में योगदान है, तो अमेरिका द्वारा यूक्रेन को मिसाइलें, ड्रोन और टैंक भेजना क्या है? क्या अमेरिका का असली चेहरा अब पूरी दुनिया के सामने आ रहा है . एक ऐसा देश जो शांति की बात करता है लेकिन हथियारों की बरसात करता है?


