मौत पर जश्न, डांस और दावत: घाना की परंपरा से रूबरू होंगे पीएम मोदी
प्रधानमंत्री मोदी 2-3 जुलाई को घाना दौरे पर रहेंगे, जहां मौत को शोक नहीं बल्कि जश्न माना जाता है. वहां अंतिम संस्कार में डांस, म्यूजिक, खाना-पीना होता है. ताबूत भी रंगीन और अनोखे होते हैं. मान्यता है कि खुशी से विदाई देने पर मृतक की आत्मा भी प्रसन्न होती है.

भारत में जब किसी का निधन होता है तो माहौल गमगीन हो जाता है. परिवार वाले शोक में डूब जाते हैं, घर में सन्नाटा छा जाता है और सादगी से अंतिम संस्कार किया जाता है. लेकिन पश्चिम अफ्रीकी देश घाना, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 और 3 जुलाई को दौरे पर होंगे, वहां मौत को एक उत्सव की तरह मनाया जाता है.
घाना में सदियों पुरानी परंपरा है कि किसी की मृत्यु पर उसका परिवार फ्यूनरल पार्टी देता है. इस पार्टी में लोग नए और रंगीन कपड़े पहनते हैं, संगीत बजता है, नृत्य होता है और खाने-पीने का भरपूर इंतजाम होता है. परिवार के सदस्य मृतक की तस्वीर छपी टी-शर्ट पहनकर कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं.
जितनी बड़ी भीड़, उतनी बड़ी शख्सियत
घाना में मान्यता है कि मृतक की अंतिम यात्रा में जितनी अधिक भीड़ जुटेगी, उसे समाज में उतना ही मिलनसार और नेकदिल इंसान माना जाएगा. इसलिए फ्यूनरल को भव्य बनाने के लिए लोग शादी जितना या उससे भी ज्यादा खर्च करते हैं. कई बार तो इसके लिए फ्यूनरल इवेंट प्लानर्स तक हायर किए जाते हैं.
ताबूत भी बनते हैं अनोखे, पेशे और पसंद से जुड़ा डिज़ाइन
घाना में ताबूत साधारण नहीं होते. ये चमकीले रंगों में होते हैं और अक्सर मृतक के पेशे या शौक को दर्शाते हैं. जैसे—बढ़ई के लिए हथौड़े के आकार का ताबूत, मछुआरे के लिए मछली के आकार का, या जूते के आकार का ताबूत. यहां तक कि हवाई जहाज़ की शक्ल में बने ताबूत भी देखे गए हैं.
धार्मिक सेवा भी होती है, लेकिन उत्सव की भावना बनी रहती है
हालांकि, अंतिम संस्कार से पहले चर्च में धार्मिक प्रार्थना और सेवा की जाती है, लेकिन उसके बाद समारोह पूरी तरह एक उत्सव का रूप ले लेता है. लोग मानते हैं कि यदि शोक मनाने वाले नाच रहे हैं, तो मृत आत्मा भी कहीं न कहीं संतुष्ट और खुश होगी.
आलोचना भी हुई, पर परंपरा अडिग
कुछ राजनीतिक और धार्मिक नेताओं ने इस परंपरा की आलोचना की है. उनका तर्क है कि जीवित लोगों की जगह मृतकों पर खर्च करना उचित नहीं है. परंतु घानावासियों की सोच अलग है—वे मानते हैं कि जन्म और मृत्यु दोनों समान रूप से जश्न के हकदार हैं.
घाना की इस सांस्कृतिक विशिष्टता से पीएम मोदी भी होंगे रूबरू
प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के दौरान घाना की यह विशिष्ट परंपरा एक सांस्कृतिक अनुभव के रूप में सामने आ सकती है. यह दर्शाता है कि मृत्यु को भी सम्मान और उल्लास से विदा देने की एक अनोखी सोच दुनिया के अलग हिस्सों में कैसे अपनाई जाती है.


