रूस-यूक्रेन युद्ध: तीन साल बाद कौन किस हाल में? जंग अभी भी है जारी... शांति के लिए पद छोड़ने को तैयार हैं ज़ेलेंस्की
यूक्रेन आर्थिक दबाव और अमेरिका की घटती मदद से जूझ रहा है, जबकि रूस की अर्थव्यवस्था भी सुस्त पड़ने लगी है. ज़ेलेंस्की ने शांति के बदले पद छोड़ने की बात तक कह दी, तो वहीं ट्रम्प यूक्रेन को सपोर्ट देने से पीछे हट रहे हैं. ये जंग अब सिर्फ़ मैदान तक सीमित नहीं, बल्कि राजनीति और आम लोगों की ज़िंदगी पर भी भारी पड़ रही है. पूरी कहानी पढ़ें!

Russia Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध को अब तीन साल हो चुके हैं, लेकिन हालात सुधरने की बजाय और बिगड़ते जा रहे हैं. यूक्रेन पर चौतरफा दबाव है—आर्थिक मोर्चे पर मंदी की मार, सेना के लिए लगातार संघर्ष और अब अमेरिका से मिलने वाली मदद पर भी अनिश्चितता. दूसरी ओर, रूस भी आर्थिक सुस्ती और बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है. इस लड़ाई का असर सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया पर इसके असर दिख रहे हैं.
यूक्रेन की मुश्किलें बढ़ीं, अमेरिका का रुख बदला
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को इस युद्ध में सबसे बड़े सहयोगी अमेरिका से अब पहले जैसा समर्थन नहीं मिल रहा. अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभालते ही यूक्रेन पर सख्त रुख अपना लिया है. ट्रंप ने न सिर्फ ज़ेलेंस्की को "तानाशाह" कहकर हमला बोला, बल्कि यह भी साफ कर दिया कि वह यूक्रेन को बिना शर्त समर्थन देने के पक्ष में नहीं हैं.
ट्रंप का फोकस अब युद्ध में दी गई आर्थिक मदद की भरपाई करने पर है. अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन खनिज संसाधनों के सौदे में उन्हें प्राथमिकता दे, लेकिन बदले में यूक्रेन सुरक्षा की ठोस गारंटी मांग रहा है. इसी बीच, ट्रंप प्रशासन ने रूस के साथ बातचीत भी शुरू कर दी है, लेकिन खास बात यह है कि इन वार्ताओं में अब तक यूक्रेन को शामिल नहीं किया गया है.
ज़ेलेंस्की ने दिया बड़ा बयान – "अगर शांति चाहिए तो पद भी छोड़ दूं!"
यूक्रेन के लिए हालात इतने कठिन हो चुके हैं कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की तक को कहना पड़ा कि अगर उनके पद छोड़ने से शांति स्थापित हो सकती है, तो वह इसके लिए भी तैयार हैं. उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर बदले में यूक्रेन को नाटो की सदस्यता मिल जाए, तो वह खुशी-खुशी पद से हटने को तैयार होंगे. लेकिन असल सवाल यह है कि क्या सच में शांति इतनी आसान है?
रूस और यूक्रेन पर युद्ध का आर्थिक बोझ
इस युद्ध ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है. रूस में मुद्रास्फीति 9.5% तक पहुंच चुकी है, जबकि यूक्रेन में यह 12% तक जा चुकी है. रूस का जीडीपी पहले -1.3% गिरा था, लेकिन अब यह 3.6% बढ़ चुका है. हालांकि, अब वहां आर्थिक ठहराव के संकेत दिखने लगे हैं. दूसरी तरफ, यूक्रेन की जीडीपी पहले 36% तक गिर गई थी, लेकिन अब यह 5.3% बढ़ चुकी है. हालांकि, आगे इसमें गिरावट का अनुमान जताया जा रहा है.
यूक्रेन के पास धातु और खनिज संसाधनों का बड़ा भंडार है, जिसकी कीमत 11 ट्रिलियन डॉलर तक आंकी जा रही है. वहीं, रूस अभी तक प्रतिबंधों के बावजूद तेल और गैस से पैसे कमा रहा है, जिससे उसकी युद्ध मशीन चलती रही है.
युद्ध का सबसे बड़ा नुकसान – जानमाल की हानि
इस जंग में अब तक हजारों यूक्रेनी नागरिक मारे जा चुके हैं और 60 लाख से ज्यादा लोग शरणार्थी बनकर विदेशों में रह रहे हैं. दोनों देशों की सेनाओं को भी भारी नुकसान हुआ है. पश्चिमी रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों तरफ से अब तक लाखों सैनिक मारे या घायल हो चुके हैं, हालांकि सही आंकड़े अब तक गुप्त रखे गए हैं.
तीन साल बाद भी यह युद्ध खत्म होने के कोई ठोस संकेत नहीं दे रहा. अमेरिका का बदला हुआ रुख, रूस की आर्थिक सुस्ती और यूक्रेन की लगातार बिगड़ती स्थिति इसे और उलझा रही है. क्या शांति वार्ता का कोई हल निकलेगा, या यह लड़ाई यूं ही चलती रहेगी? दुनिया की नजरें अब इसी पर टिकी हैं.


