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भारत से तेल,गैस की खरीद बंद करें... यूरोपीय देशों से बोले ट्रंप- इंडिया पर अमेरिका जैसा टैरिफ लगाए

अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीद को लेकर दबाव बढ़ा दिया है और अब यूरोपीय देशों से भी भारत पर प्रतिबंध लगाने की अपील की है. वॉशिंगटन का आरोप है कि भारत रूसी तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध को समर्थन दे रहा है. भारत ने इसे दोहरा रवैया बताते हुए विरोध जताया है. तियानजिन में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में यह मुद्दा प्रमुख चर्चा का विषय रहेगा.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

US Sanctions on India oil Import : अमेरिका और भारत के बीच रूस से तेल आयात को लेकर जारी खींचतान अब और गहराती जा रही है. ट्रंप प्रशासन ने इस मुद्दे पर भारत पर पहले से ही 50% टैरिफ लागू कर दिया है, लेकिन अब अमेरिका का रुख और सख्त होता दिखाई दे रहा है. व्हाइट हाउस ने यूरोपीय देशों से भी अपील की है कि वे भारत पर वही प्रतिबंध लागू करें जो खुद अमेरिका ने किए हैं. इसके तहत यूरोप से यह अपेक्षा की जा रही है कि वे भारत के साथ ऊर्जा व्यापार को पूरी तरह बंद करें और सेकेंडरी टैरिफ लगाएं ताकि भारत पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव बनाया जा सके.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठेगा भारत का तेल व्यापार मुद्दा

यह विवाद अब केवल द्विपक्षीय स्तर पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चर्चा का विषय बन गया है. आने वाले दिनों में चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का शिखर सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है. इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल होंगे. कूटनीतिक सूत्रों का मानना है कि इस शिखर सम्मेलन के इतर होने वाली मोदी-पुतिन-शी मुलाकात में अमेरिकी प्रतिबंध, भारत पर लगाई गई टैरिफ, और रूस-यूक्रेन युद्ध पर विशेष चर्चा होने की पूरी संभावना है.

भारत दे रहा रूस को आर्थिक मदद
अमेरिका का सीधा आरोप है कि भारत रूस से कच्चा तेल खरीदकर उसे अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहायता दे रहा है, जिससे यूक्रेन युद्ध को “ईंधन” मिल रहा है. अमेरिकी प्रशासन का यह भी कहना है कि भारत की यह नीति मॉस्को को राहत देने का काम कर रही है और इससे युद्ध को रोकने की उनकी कोशिशें प्रभावित हो रही हैं. इस आधार पर ही ट्रंप प्रशासन ने भारत से आने वाले कई निर्यात उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगा दिया है.

भारत ने यूरोप और चीन की तरफ उठाई उंगली
भारत ने अमेरिकी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए यह तर्क दिया है कि केवल भारत ही नहीं, बल्कि यूरोपीय देश और चीन भी रूस से बड़े पैमाने पर तेल और गैस खरीद रहे हैं, फिर भी उन पर कोई प्रतिबंध या दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई. भारत का यह भी कहना है कि पश्चिमी देशों का यह दोहरा रवैया न केवल अनुचित है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति के सिद्धांतों के भी खिलाफ है.

ट्रंप प्रशासन नाराज, यूरोप की भूमिका पर भी सवाल
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन न केवल भारत, बल्कि यूरोपीय देशों से भी नाराज़ है. हालांकि कई यूरोपीय नेता सार्वजनिक रूप से यूक्रेन में शांति के पक्ष में बयान दे रहे हैं और ट्रंप की युद्ध समाप्ति की कोशिशों का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन पर्दे के पीछे वे अलास्का में हुई ट्रंप-पुतिन वार्ता की प्रगति को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि यूरोपीय देशों का यूक्रेन पर “बेहतर सौदे” का दबाव डालना ही युद्ध को लंबा खींच रहा है.

तियानजिन बैठक बन सकती है भू-राजनीतिक मोड़
एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान तियानजिन में होने वाली मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग की मुलाकात इस पूरे विवाद में एक निर्णायक मोड़ ला सकती है. यह बैठक न केवल भारत के ऊर्जा व्यापार के भविष्य को तय करेगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर शक्ति संतुलन और अमेरिका के साथ रिश्तों पर भी प्रभाव डालेगी. कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह वार्ता भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक परीक्षा होगी, जिसमें उसे अमेरिका, रूस और चीन के साथ संतुलन बनाकर चलना होगा.

वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीतिक कसौटी
रूस से तेल खरीद के मसले पर अमेरिका का सख्त रुख और भारत की आत्मनिर्भर विदेश नीति इस समय आमने-सामने हैं. यूरोप को भी इस विवाद में खींच लाने की कोशिश यह दर्शाती है कि यह मामला केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक राजनीति का एक अहम मोर्चा बन चुका है. आने वाले दिनों में भारत को इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूती से रखनी होगी, ताकि वह दबाव में आए बिना अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके.

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31 August 2025, 08:52 AM IST

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