SCO समिट 2025: दुनिया की नजरें तियानजिन पर, मोदी-पुतिन और जिनपिंग की बैठक से बनेगी नई वैश्विक धुरी
सात साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के तिआनजिन में SCO शिखर सम्मेलन के लिए कदम रखा, जहां उनका शानदार स्वागत हुआ. इस खास मौके पर मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अहम द्विपक्षीय वार्ता करेंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के 50% टैरिफ के फैसले के बीच यह दौरा भारत की स्मार्ट कूटनीतिक रणनीति का आईना है. जो वैश्विक मंच पर देश की ताकत और प्रभाव को दर्शाता है.

Tianjin SCO Summit 2025 : चीन के तिआनजिन शहर में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात साल बाद कदम रखा, तो वहां केवल लाल कालीन नहीं बिछा था, बल्कि एशिया की नई राजनीतिक धुरी के निर्माण का संकेत भी दिखाई दिया. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे पीएम मोदी का जबरदस्त स्वागत किया गया, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब वैश्विक मंच पर निर्णायक भूमिका में है.
भारत-चीन सांस्कृतिक मैत्री को नई ऊंचाई
अमेरिका के खिलाफ भारत का बड़ा कदम
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ नीति के बीच पीएम मोदी का यह दौरा भारत की रणनीतिक सूझबूझ का परिचायक है. अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ के बीच भारत का यह कूटनीतिक कदम न केवल एशिया, बल्कि पूरे विश्व में संदेश देने वाला है कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं, बल्कि दिशा तय करने वाला राष्ट्र है. प्रधानमंत्री की शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन से होने वाली वन-टू-वन वार्ताएं इस बात को स्पष्ट करेंगी कि आने वाले समय में वैश्विक शक्ति का केंद्र एशिया की ओर स्थानांतरित हो सकता है.
SCO का मंच और यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि
यूक्रेन युद्ध ने विश्व राजनीति को दो स्पष्ट खेमों में बांट दिया है. रूस और पश्चिमी देशों के बीच दरार गहराती जा रही है, और अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में भी जटिलताएं रही हैं. ऐसे में SCO का मंच भारत, चीन और रूस के लिए एक साझा कूटनीतिक संदेश देने का अवसर बन गया है. SCO समिट सिर्फ बहुपक्षीय संवाद का स्थान नहीं, बल्कि यह दर्शाने का अवसर है कि एशिया अब वैश्विक राजनीति के फैसलों का मुख्य केंद्र बन रहा है.
मोदी-पुतिन और मोदी-शी मुलाकात पर अंतरराष्ट्रीय निगाहें
राष्ट्रपति पुतिन के साथ पीएम मोदी की बैठक में दिसंबर में प्रस्तावित भारत यात्रा की योजना पर चर्चा होगी. इसके अलावा, शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी के बीच चीनी धरती पर सात वर्षों बाद होने वाली आमने-सामने की बैठक पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं. यह मुलाकात भारत-चीन संबंधों की दिशा तय कर सकती है.
रणनीतिक संतुलन का नया केंद्र
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत, चीन और रूस एशियाई धुरी बनाकर अमेरिका और यूरोप को टक्कर देंगे? क्या इससे भारत-अमेरिका संबंधों में बदलाव आएगा? और क्या भारत-चीन सीमा विवादों पर कोई ठोस पहल हो पाएगी? प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक नीति स्पष्ट है न किसी के खिलाफ, न किसी के साथ, बल्कि सबके साथ. यही वजह है कि भारत अब केवल मंच पर उपस्थित देश नहीं, बल्कि रणनीति बनाने वाला देश बन चुका है. 21वीं सदी का केंद्र एशिया बनता जा रहा है, और तिआनजिन में पीएम मोदी की मौजूदगी इसका प्रमाण है.
क्षेत्रीय सहयोग से वैश्विक असर तक...
शंघाई सहयोग संगठन में अब 10 सदस्य देश शामिल हैं चीन, भारत, रूस, ईरान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और बेलारूस. जुलाई 2024 में बेलारूस के शामिल होने के बाद यह संगठन एक शक्तिशाली क्षेत्रीय समूह में बदल चुका है. चीन रवाना होने से पहले जापान के प्रतिष्ठित समाचार पत्र 'योमिउरी शिंबुन' को दिए गए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और चीन के बीच स्थिर और सौहार्दपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों का क्षेत्रीय और वैश्विक शांति एवं समृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
तिआनजिन बना नई विश्व राजनीति का केंद्र
आज जब वैश्विक शक्ति समीकरण तेजी से बदल रहे हैं, भारत की भूमिका और भी अधिक प्रासंगिक हो गई है. तिआनजिन में मोदी की मौजूदगी यह संदेश देती है कि भारत अब केवल दर्शक नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति का निर्णायक खिलाड़ी है. यह मंच केवल SCO सम्मेलन नहीं बल्कि 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था के पुनर्निर्माण की आधारशिला भी है.


