गेहूं जिसे हम सेहत समझते रहे, वही बिगाड़ रहा है शरीर, आयुर्वेदिक डॉक्टर की चेतावनी ने रोज़मर्रा की थाली पर उठाए सवाल
उत्तर भारत की थाली में रोज दिखने वाली गेहूं की रोटी अब सवालों में है। आयुर्वेदिक डॉक्टर ने इसे सेहत का दुश्मन बताया और विकल्प अपनाने की सलाह दी।

लाइफ स्टाइल न्यूज. उत्तर भारत में रोटी बिना खाना अधूरा माना जाता है। ज्यादातर घरों में गेहूं की रोटी रोज बनती है। बाजार का पैक्ड आटा अब आम हो गया है। रोटी नरम और सफेद दिखती है। लोग इसे बेहतर मान लेते हैं। लेकिन आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ. सलीम जैदी का कहना है कि यही आदत शरीर को नुकसान पहुंचा रही है। उनका दावा है कि गेहूं को हम जरूरत से ज्यादा हल्के में लेते हैं। असल में यही सेहत की जड़ में समस्या बन रहा है।
पुराने जमाने का गेहूं क्या था?
डॉक्टर बताते हैं कि पहले जो गेहूं खाया जाता था वह देसी किस्म का होता था। उसमें फाइबर भरपूर होता था। प्रोटीन और मिनरल्स संतुलित रहते थे। यह पेट को साफ रखता था। शरीर को ताकत देता था। पाचन धीरे और सही रहता था। उस गेहूं से बनी रोटी भारी नहीं लगती थी। कमजोरी और गैस जैसी समस्याएं कम दिखती थीं।
आज का गेहूं कैसे बदल गया?
आज इस्तेमाल होने वाला गेहूं हाइब्रिड किस्म का है। इसे ज्यादा उत्पादन के लिए बदला गया है। पीसने की प्रक्रिया में भूसी निकल जाती है। फाइबर लगभग खत्म हो जाता है। जिंक और मैग्नीशियम जैसे तत्व नहीं बचते। डॉक्टर के अनुसार यह गेहूं शरीर को सिर्फ तेजी से शुगर देता है। इससे पेट पर बोझ पड़ता है। लंबे समय में असर दिखने लगता है।
पेट पर क्या असर डालता है गेहूं?
आज के गेहूं में ग्लूटेन ज्यादा होता है। कई लोगों को यह पचता नहीं है। पेट फूलने की शिकायत होती है। एसिडिटी बढ़ती है। खाना देर से पचता है। कुछ लोगों को हर समय भारीपन लगता है। धीरे-धीरे थकान बढ़ती है। डॉक्टर कहते हैं कि लोग कारण नहीं समझ पाते। दोष रोज की रोटी में छिपा रहता है।
क्या गेहूं छोड़ना जरूरी है?
डॉक्टर का कहना है कि अगर शरीर बार-बार संकेत दे रहा है तो गेहूं कम करना चाहिए। पूरी तरह छोड़ने का फैसला हर किसी का अलग हो सकता है। लेकिन लगातार पेट खराब रहता है तो बदलाव जरूरी है। वही खाना सही नहीं जो रोज नुकसान करे। आदत बदलना मुश्किल होता है। लेकिन सेहत के लिए जरूरी होता है।
मिलेट्स क्यों बताए गए बेहतर विकल्प?
डॉक्टर गेहूं की जगह मिलेट्स लेने की सलाह देते हैं। ज्वार, बाजरा और रागी को बेहतर मानते हैं। इनमें फाइबर ज्यादा होता है। पाचन हल्का रहता है। ऊर्जा धीरे मिलती है। पेट साफ रहता है। ब्लड शुगर तेजी से नहीं बढ़ती। रोटी भारी नहीं लगती। शरीर में हल्कापन महसूस होता है।
क्या अपनाने से पहले सावधानी जरूरी?
डॉक्टर की बात सोशल मीडिया वीडियो पर आधारित बताई गई है। हर शरीर अलग होता है। किसी को फायदा, किसी को दिक्कत हो सकती है। इसलिए अचानक बड़ा बदलाव सही नहीं। किसी एक्सपर्ट से सलाह जरूरी है। धीरे-धीरे विकल्प अपनाना बेहतर है। सेहत ट्रेंड से नहीं, समझ से सुधरती है। यही इस चेतावनी का असली मतलब है।


