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राजस्थान से लेकर दिल्ली तक... सावन में घेवर का स्वाद क्यों है खास? जानिए इस पारंपरिक मिठाई का इतिहास

सावन में घेवर खाने की परंपरा सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि सेहत और मौसम से जुड़ी वैज्ञानिक वजहों पर आधारित है. राजस्थान से शुरू होकर यह मिठाई आज उत्तर भारत के त्योहारों की खास पहचान बन चुकी है.

सावन का महीना आते ही शिवभक्त जहां भोलेनाथ की आराधना में डूब जाते हैं, वहीं बाजारों में घेवर की मिठास हर किसी का मन मोह लेती है. सुनहरे जालीदार घेवर की खुशबू हलवाइयों की दुकानों से लोगों को अपनी ओर खींचने लगती है. सावन में विशेष रूप से तैयार की जाने वाली यह पारंपरिक मिठाई हरियाली तीज और रक्षाबंधन जैसे त्योहारों का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सावन में ही घेवर क्यों बनाया और खाया जाता है? इसके पीछे सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि सेहत से जुड़ी कई वैज्ञानिक और ऐतिहासिक वजहें भी छिपी हैं. 

सावन में ही क्यों बनता है घेवर?

मान्यता है कि मानसून के मौसम में हवा में ज्यादा नमी होती है, जिससे वात और पित्त की समस्याएं बढ़ जाती हैं. ऐसे में पारंपरिक मिठाइयों की तुलना में घेवर में इस्तेमाल होने वाले घी, नींबू और चाशनी की अम्लीयता शरीर को संतुलन में रखने में मदद करती है. इस मिठाई को खास तरीके से फर्मेंट करके तैयार किया जाता है, जिससे ये पाचन के लिहाज से भी बेहतर मानी जाती है.

शरीर के लिए लाभदायक है घेवर

घेवर ना केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि एक सीमित मात्रा में इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें प्रयुक्त तत्व पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं और मानसून में होने वाले पेट के संक्रमण से भी बचाव करते हैं. यही कारण है कि सावन के महीने में घेवर खाना ना केवल परंपरा है, बल्कि शरीर के लिए हितकारी भी है.

घेवर का ऐतिहासिक सफर

घेवर के इतिहास को लेकर कई मत प्रचलित हैं. कुछ फूड हिस्टोरियंस का मानना है कि ये मिठाई पर्शिया से मुगलों के साथ भारत आई थी, जबकि कुछ इसे ईरानी व्यंजनों से प्रभावित मानते हैं. हालांकि, कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं, लेकिन ये स्पष्ट है कि घेवर का भारत में इतिहास काफी पुराना है और ये सदियों से भारतीय मिठाई परंपरा का हिस्सा रहा है.

राजस्थानी रिवाजों से गहरा संबंध

घेवर का गहरा नाता राजस्थान से है. हरियाली तीज के अवसर पर सिंजारे के रूप में ये मिठाई विशेष तौर पर भेजी जाती है. माना जाता है कि आमेर के राजाओं द्वारा त्योहारों के अवसर पर सांभर से घेवर मंगवाया जाता था. बाद में जब जयपुर की स्थापना हुई, तब अलग-अलग क्षेत्रों से कारीगर बुलाकर घेवर बनाने की परंपरा शुरू हुई. आज भी जयपुर समेत पूरे राजस्थान में घेवर को उत्सवों की शान माना जाता है.

राजस्थान से उत्तर भारत तक फैली मिठास

समय के साथ घेवर की मिठास राजस्थान से निकलकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा तक फैल चुकी है. सावन के महीने में हर मिठाई की दुकान पर घेवर की मांग सबसे ज्यादा होती है. इसकी लोकप्रियता ने इसे ना केवल पारंपरिक बल्कि व्यावसायिक रूप से भी एक सफल मिठाई बना दिया है.

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24 July 2025, 09:24 PM IST

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