ॐलोक आश्रम: प्रभु ने यह सृष्टि क्यों की?
कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि प्रभु ने ये सृष्टि क्यों की। कुछ लोग कहते हैं कि यह सृष्टि प्रभु की लीला है।
कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि प्रभु ने ये सृष्टि क्यों की। कुछ लोग कहते हैं कि यह सृष्टि प्रभु की लीला है। प्रभु मनोरंजन के लिए सृष्टि करते हैं। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि ईश्वर ने यह सृष्टि क्यों की क्या ईश्वर को इस बात की भूख है कि लोग उसकी पूजा करें, लोग उसकी उपासना करें। ईश्वर ने सृष्टि क्यों कर रखी है। ईश्वर ने सृष्टि की और फिर कह रहे हैं कि मेरी पूजा करो तब मैं तुम्हें मुक्ति दूंगा। अगर मुक्ति देनी थी तो सृष्टि ही क्यों की और सृष्टि की है तो मुक्ति देने की क्या आवश्यकता है। सृष्टि कैसे आई। क्या ईश्वर ने सृष्टि की है।
अगर ईश्वर सृष्टिकर्ता है तो सृष्टि कर्म हुई और कर्म ईश्वर ने किए। जो कर्ता है वह भोक्ता भी होगा। जो नियम किसी के भी ऊपर लागू होते हैं वो ईश्वर के ऊपर भी लागू होंगे क्योंकि नियम तो नियम हैं। ऐसे नियम जो चुनकर लोगों पर लागू हों वह स्वछंद नियम होते हैं। उन नियमों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। जो प्राकृतिक नियम हैं वो सबपर लागू होते हैं। तर्कशास्त्रीय नियम सबपर लागू होने चाहिए। अगर ईश्वर सृष्टिकर्ता है। सृष्टिरूपी कार्य उसने संपन्न किया है तो इसका जो भी फल हो अच्छा या बुरा वह ईश्वर को लगेगा। ईश्वर भी उस कर्म से बंधेगा। तो क्या ईश्वर बंधनयुक्त है। क्या ईश्वर कर्मकर्ता है। क्या कर्म ईश्वर को बांध देते हैं। अगर ईश्वर नित्यमुक्त है तो वह कर्म कैसे कर सकता है। कर्म क्यों करता है। कर्म करने का क्या प्रयोजन है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि न तो ईश्वर में कर्तृत्व है न तो उसने सृष्टि की है, न कोई कर्म किया है ईश्वर ने और जो सृजन प्रभु ने किया है ऐसा कर्म प्रभु नहीं करते और ना कोई कर्म फल का संयोग ईश्वर में होता है। स्वभाव है जो कि प्रवर्तित होता रहता है बहता रहता है। यह किसका स्वभाव है। यह ईश्वर का स्वभाव है, प्रकृति का स्वभाव है। प्रकृति ईश्वर से अलग है। क्या है ये।
यह संसार जो हमें दिखाई दे रहा है। इस संसार के तीन आधारभूत उपादान हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भगवान कृष्ण ने भगवदगीता में बताया था कि सत्व, रजस और तमस ये तीन उपादान है जो इस समस्त संसार का कारण हैं। प्रकृति त्रिगुणात्मिका है। आज विज्ञान भी मान रहा है कि प्रकृति त्रिगुणात्मिका है। इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन। इसके नीचे भी अगर आप जाएंगे तो त्रिगुणात्मिका ही मिल रही हैं। सत्व के अपने कार्य है, रजस के अपने कार्य हैं और तमस के अपने कार्य हैं। इन कार्यों का स्वभाव है और उन स्वभाव के हिसाब से ही ये कार्य करते रहते हैं। जैसे इलेक्ट्रॉन का अपना स्वभाव है, प्रोटोन का अपना स्वभाव है, न्यूट्रॉन का अपना स्वभाव है। ये इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, न्यूट्रॉन किस रूप में मिलेंगे इससे यह पता चलता है या इससे यह निर्धारित होता है कि वह कौन सा तत्व बनेगा। अगर एक इलेक्ट्रॉन रहेगा तो हाइड्रोजन बन जाएगा। दो इलेक्ट्रॉन, दो प्रोटोन, दो न्यूट्रॉन है तो हीलियम बन जाएगा। तीन हैं तो लिथियम चार हैं तो बैरेलियम फिर बोरॉन। वही इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन अलग अलग संख्याओं में एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं तो गुण प्रदर्शित करते हैं उनको हम अलग-अलग तत्वों के रूप में जानते हैं। किसी को हम आक्सीजन के रूप में जानते हैं, किसी को हाइड्रोजन के रूप में तो किसी को सोने के रूप में तो किसी को चांदी के रूप में जानते हैं। ये गुण हैं जो इन्हीं तत्वों के द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। ये गुण जिन्हें हम फिर तत्व कहते हैं।
आक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बन, लोहा, सल्फर ये फिर जब आपस में मिलकर बहुत सारे केमिकल्स बनाते हैं फिर वो केमिकल आगे कार्य करते हैं। इसी तरह सृष्टि हो जाती है। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि प्रकृति के ये जो गुण हैं सत्व, रजस, तमस इनके ही द्वारा संसार के समस्त कार्य किए जाते हैं। ईश्वर न तो कर्ता है चूंकि वह कर्ता नहीं है तो भोक्ता भी नहीं है। न ही उसके अंदर कर्तृत्व आता है यह स्वभाव है। जैसे पानी बरसता है। पानी जाता नहीं, आता नहीं। कहीं नहीं जाता। पानी को कोई नहीं बताता है कि कहां जाना है। नाली कहां है, नदी कहां है, महानदी कहां है, समुद्र कहां है। ये पानी को कोई नहीं बताता। पानी का स्वभाव ही है बहना। दुनिया में कहीं भी पानी बरसे वह बहते बहते समुद्र में जाकर मिल जाता है। वह उसका स्वभाव है अपने स्वभाव के अनुसार चलता है पानी। नदी का कोई कर्तृत्व नहीं है। बाढ़ आ जाए नदी का कोई रोष नहीं। उसका स्वभाव ही बहना है। इसी तरह प्रभु का स्वभाव है और इस स्वभाव के कारण जो प्रकृति है उसकी त्रिगुमात्मक स्वभाव के कारण कार्य होते रहते हैं। उन्हीं के परिणामस्वरूप ये सृष्टि होती है और प्रलय होता है। सृष्टि और प्रलय की यह परंपरा चलती रहती है।