ॐलोक आश्रम: कर्म और फल के बीच क्या संबंध है? भाग-1

जो हमारा सनातन धर्म है इसकी अपनी एक विशेषता है। ये वैदिक ऋषियों से लेकर औपनिषदिक काल से और अनंत ऋषियों के चिंतन और आत्म साक्षात्कार के फलस्वरूप जो ज्ञान उत्पन्न हुआ वो हमारे उपनिषदों में हमारे भगवदगीता में निबद्ध है।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

जो हमारा सनातन धर्म है इसकी अपनी एक विशेषता है। ये वैदिक ऋषियों से लेकर औपनिषदिक काल से और अनंत ऋषियों के चिंतन और आत्म साक्षात्कार के फलस्वरूप जो ज्ञान उत्पन्न हुआ वो हमारे उपनिषदों में हमारे भगवदगीता में निबद्ध है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि आत्मा न तो कभी जन्म लेता न कभी मरता है और ये जो श्रृंखला चल रही है कि व्यक्ति जन्म लेता फिर मरता है फिर जन्म लेता है तो हमारा सनातन धर्म यही मानता है कि पुनर्जन्म है, व्यक्ति किसी न किसी जीव के रूप में जन्म लेता है और कर्म करता है और वो जिस तरह का कर्म करता है वैसे ही संस्कार उसके उत्पन्न होते हैं। और वो संस्कार उसके अगले जन्म का कारण बनते हैं। व्यक्ति जैसा कर्म करता है वैसा उसको अगला जन्म मिलता है और ये एक प्रक्रिया है जो चलती रहती है।

हम किसी जन्म को नहीं कह सकते कि ये मेरा अंतिम जन्म है या फिर ये मेरा पहला जन्म है। अंतिम जन्म उसे माना जाता है जब व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है और ऐसे जन्म जो किसी संस्कार को उत्पन्न नहीं करते और व्यक्ति प्रभु में मिल जाता है या फिर व्यक्ति खुद ही ईश्वर में ही मिल जाता है और ईश्वर ही हो जाता है। ऐसा हमारी सनातन परंपरा मानती है। जबकि ईसाई और इस्लाम एक अलग थ्योरी को लेकर आगे बढ़ते हैं वो ये मानते हैं कि जब भी किसी व्यक्ति का जन्म होता है या कोई भी प्राणी गर्भ में आता है तो गॉड या अल्लाह उसके लिए एक आत्मा का सृजन करते हैं और वो प्राणी जबतक जीवित रहता है तबतक उसके साथ रहता है और जैसे ही उसकी मृत्यु होती है उसकी रूह अनंतकाल तक बड़े लंबे समय तक कयामत के दिन तक वो इंतजार करती है और जब कयामत होती है तो उसके कर्मों का मूल्यांकन होता है और उसके कर्मों के हिसाब से उसे स्वर्ग या नर्क मिलता है।

अब हम देखते है कि तर्क क्य कहता है। तर्क में कौन सी व्यवस्था ज्यादा सही जान पड़ती है। हम अगर ये मान लें कि ईश्वर ने हर प्राणी के लिए एक आत्मा बना दी तो पहला प्रश्न ये उठेगा कि कुछ आत्माओं को पशु-पक्षी बना दिया कुछ को कीड़े-मकौड़े बना दिया, कुछ को मनुष्य बना दिया। उनकी क्या गलती थी। क्यों कोई बिना गलती के कीड़ा-मकौड़ा बन गया। या कोई पशु बन गया या मनुष्य बन गया। मनुष्यों में भी देखें तो कुछ वेल-टू-डू हैं जो किसी अमीर व्यक्ति के यहां पैदा हुए। उन्हें पैदा होते ही सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त हो गईं। कोई संघर्ष नहीं है।

कुछ के लिए रहने से खाने तक का सबका संघर्ष है। अगला प्रश्न ये उठता है कि कई बच्चे ऐसे पैदा होते हैं जो अंधे हैं, लंगड़े-लूले हैं। कई पैदा होते ही मर जाते हैं। कई कुछ कर्म ही नहीं कर पाते हैं। कुछ मां के गर्भ में ही मर जाते हैं तो अगर ये मान लिया जाए कि ईश्वर ने हर जीव के लिए एक आत्मा बनाई है तो उसको किस आधार पर वो किसी को वेल-टू-डू कर रहा है और किसी को कुछ भी नहीं मिल रहा है। इसका आधार है। अगर ऐसा माने तो ईश्वर बड़ा अन्यायी और अत्याचारी ठहरेगा। जो अपनी मनमानी से किसी को तो कर्म करने के बहुत अच्छे अवसर दे दिया तो किसी को बिल्कुल कर्म करने के अवसर नहीं हैं। किसी को अंधा, लंगड़ा-लूला पैदा कर दिया।

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16 January 2023, 04:36 PM IST

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